Friday, November 22, 2024
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जानिए साउथ के महान राजा की कहानियां!

आज हम आपको साउथ के महान राजा की कहानी बताने जा रहे हैं! भारत के इतिहास में कई चक्रवर्ती हिंदू सम्राट हुए हैं। सम्राट कृष्णदेवराय के बिना वह लिस्‍ट पूरी नहीं होगी। 16वीं सदी में जब दिल्‍ली सल्‍तनत का किला ढहने लगा तो दक्षिण में विजयनगर साम्राज्‍य उभर रहा था। 1509 में कृष्णदेवराय ने विजयनगर का राजकाज संभाला। अगले 20 साल में उन्‍होंने बीजापुर, गोलकोंडा के सुल्‍तानों को हराया। बहमनी सल्‍तनत ढहाई और ओडिशा के गजपतियों को भी पानी पिला दिया। कृष्णदेवराय उस समय के सबसे शक्तिशाली हिंदू सम्राट थे। यह ऐसा तथ्‍य था जिससे उस वक्‍त उत्‍तर भारत पर नजरें गड़ाए बैठा मुगल वंश का संस्‍थापक बाबर भलीभांति परिचित था। कृष्णदेवराय का साम्राज्‍य उस वक्‍त पूरे भारतीय महाद्वीप में सबसे बड़ा था। युद्ध में चतुराई से अचानक योजनाएं बदलने के लिए विख्‍यात रहे कृष्णदेवराय ने कई मौकों पर हार को जीत में बदला। कृष्णदेवराय के युद्ध कौशल की वीरगाथाएं कवियों ने खूब लिखी हैं। वे साहित्‍य और कला, दर्शन के भी उतने ही कुशल जौहरी थे। कृष्णदेवराय ने अपने दरबार में आठ तेलुगु कवि रखे थे जिन्‍हें ‘अष्‍टदिग्‍गज’ कहा जाता था। इन्‍हीं में से एक थे पंडित रामकृष्‍ण जिन्‍हें दुनिया तेनालीराम के नाम से जानती है। कृष्णदेवराय के जैसे ही बाद में मुगल बादशाह अकबर ने भी अपने दरबार में नवरत्‍न रखे। कृष्णदेवराय-तेनालीराम की तरह अकबर-बीरबल के चुटीले किस्‍से खूब मशहूर हैं।

तुलुव राजवंश में जन्‍मे कृष्‍णदेव राय का साम्राज्‍य आज के कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और उत्‍तरी तमिलनाडु तक फैला था। उनके राज में विजयनगर ने भारतीय संस्‍कृति को सहेजकर रखना सिखाया। कृष्णदेवराय ने हजारों मंदिर बनाए, बहुतों का जीर्णोद्धार कराया। कृष्णदेवराय के राज में विजयनगर एक आधुनिक शहर की शक्ल ले रहा था। उनके समय में जो नहरें और सिंचाई की व्यवस्था बनीं, उनमें से कई तो आज भी काम आती हैं। भारतीय संस्‍कृति में कृष्णदेवराय का योगदान अप्रतिम है। वह खुद संस्‍कृत, तमिल, कन्‍नड़ और तेलुगु भाषाएं जानते थे। हालांकि राजकाज की भाषा कन्‍नड़ हुआ करती थी। इसके बावजूद, कृष्णदेवराय ने कई भाषाओं के कवियों को संरक्षण दिया। उनके काल को तेलुगु साहित्‍य का स्‍वर्णकाल कहा जाता है। कृष्णदेवराय ने अमुक्तमल्यादा नाम से एक तेलुगु महाकाव्‍य लिखा है।

इतिहासकारों के बीच आम राय है कि कृष्णदेवराय सैन्‍य प्रशासन और राजकाज में निपुण थे। वह बेहद सख्‍त प्रशासक थे और अपने मंत्रियों पर पूरा नियंत्रण रखते थे। कृष्णदेवराय का मत था कि राजा को हमेशा धर्म के अनुसार आचरण करना चाहिए। कृष्णदेवराय के शासन करते समय कई विदेशी यात्री भी विजयनगर आए। खेती को बढ़ावा देने के लिए कृष्णदेवराय ने राज्‍य में बांध और नहरों का जाल सा बिछा दिया। उस वक्‍त गोवा में शासन कर रहे पुर्तगालियों से विजयनगर का खूब व्‍यापार होता था। रोज सुबह उठकर कसरत करना सम्राट कृष्णदेवराय का शौक था। इसके बाद वह पहलवानों संग कुश्‍ती भी लड़ते।

सम्राट कृष्‍णदेवराय ने अपने शासनकाल में कई शत्रुओं को हराया। सत्‍ता संभालते ही कृष्‍णदेवराय ने दक्‍कन के सुल्‍तानों की लूटपाट पर रोक लगाई। पांच छोटे-छोटे राज्‍यों में बंटे बहमनी सुल्‍तानों से लगातार संघर्ष चलता ही रहता था। ओडिशा के गजपतियों और समुद्री व्‍यापार पर नियंत्रण रखने वाले पुर्तगालियों से भी कृष्‍णदेवराय ने डटकर मुकाबला किया। कृष्‍णदेवराय के सैन्‍य कौशल से जुड़ी एक कहानी खूब सुनी-सुनाई जाती है। ओडिशा के राजा की बेटी से विवाह के बाद उन्‍होंने चोलमंडल साम्राज्‍य पर आक्रमण का फैसला किया। जब कृष्‍णदेवराय केटावरम शहर पहुंचे तो पाया कि नदी उफना आई है और उसे पार करना मुश्किल है।

सम्राट ने सैनिकों को आदेश दिया कि नदी के बहाव को कम करने के लिए कई जगह कटाव करें। कुछ ही देर में रास्‍ता साफ हो गया। केटावरम के पास एक लाख की पैदल सेना और 3,000 घुड़सवार थे, इसके बावजूद कृष्णदेवराय ने विजय पताका लहराई। सम्राट कृष्णदेवराय की वीरता के चर्चे मुगल सम्राट बाबर तक पहुंच रहे थे। उन दिनों बाबर उत्‍तर भारत पर नजरें गड़ाए बैठा था। उसकी राय में कृष्णदेवराय पूरे उपमहाद्वीप के सबसे शक्तिशाली राजा थे जिनका साम्राज्‍य सबसे बड़ा था।

1524 में कृष्‍णदेवराय ने अपने पुत्र को युवराज बनाया।कृष्‍णदेवराय के सैन्‍य कौशल से जुड़ी एक कहानी खूब सुनी-सुनाई जाती है। ओडिशा के राजा की बेटी से विवाह के बाद उन्‍होंने चोलमंडल साम्राज्‍य पर आक्रमण का फैसला किया। जब कृष्‍णदेवराय केटावरम शहर पहुंचे तो पाया कि नदी उफना आई है और उसे पार करना मुश्किल है। लेकिन उन्‍हें किसी जहर देकर मार दिया। कृष्‍णदेवराय को अपने प्रधानमंत्री पर संदेह था, उन्‍होंने उसे नेत्रहीन करवा दिया। बेलगाम पर हमले की तैयारी करते हुए कृष्‍णदेवराय की तबीयत बिगड़ी और 1529 में उनका निधन हो गया। उनके बाद विजयनगर की गद्दी भाई अच्‍युतदेव राय ने संभाली।

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