आज हम आपको छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले की तीर-धनुष वाली कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं! छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले से करीब 70 किलोमीटर दूर बसे शिवतराई गांव की पहचान पूरी दुनिया में है। देश की राजधानी से दिल्ली से तकरीबन 1081 किलोमीटर दूर बसे इस गांव की तीरंदाजी के लिए पहचान है। आदिवासी बाहुल्य इस गांव का नाम शिवतराई है। शिवतराई गांव के घर-घर में एक तीरंदाज है। ये सब कुछ संभव गांव के रहने वाले कॉन्स्टेबल की वजह से हुआ है। 2004 से अब तक वह कॉन्स्टेबल ‘द्रोणाचार्य’ की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। घनघोर जंगल में बसे गांव में वह लड़के और लड़कियों को देशी जुगाड़ से तीरंदाजी सीखा रहे हैं। दुनिया की नजरों में इस गांव को कॉन्स्टेबल ने चैंपियन बना दिया है। अब दूर-दूर से लोग गांव की कहानी समझने आते हैं। दरअसल, शिवतराई और उसके गांव के आसपास के इलाकों में तीरंदाजों की कोई कमी नहीं है। यह कमाल शिवताई के लाल इतवारीराज की वजह से हुआ है। बच्चों को प्रशिक्षित करने वाले इतवारीराज खुद भी कई खेलों में माहिर हैं। इतवारीराज तीरंदाजी, कबड्डी और दौड़ने में माहिर हैं। खेल के प्रति समर्पित इतवारीराज इस इलाके में तीरंदाजी अकादमी चलाते हैं। इतवारीराज संयुक्त एमपी में ग्रामीण और क्षेत्रीय टूर्नामेंट में भाग लेते थे। 1992 में आयोजित क्षेत्रीय दौड़ प्रतियोगिता में उन्होंने पहला स्थान पार किया था। तब से यह सिलसिला लगातार बरकरार है।
काफी संघर्घ और मेहनत के बाद 16 अक्टूबर 1998 को इतवारीराज को पुलिस की नौकरी मिली। इसके बाद समाजिक सरोकार से लबरेज इतवारीराज पिछले कई सालों से गांव के आस-पास के बच्चों को तीरंदाजी की ट्रेनिंग दे रहे हैं। इस दौरान उनके सैकड़ों स्टूडेंट ने राज्यस्तरीय और राष्ट्रीय स्तर के मुकाबलों में भाग लिए। यही वजह है कि दूर-दराज के लोग अब शिवतराई गांव को चैंपियन का गांव कहते हैं।
दरअसल, आदिवासी बाहुल्य इस जंगली इलाके में कई बरस पहले तक लोग धीर-धनुष का इस्तेमाल शिकार के लिए किया करते थे। धीरे धीरे लोग जागरूक होते गए और शिकार करना छोड़ दिए। गांववालों के बच्चे भी पढ़ने लिखने में लग गए और अपने पूर्वजों की इस परंपरा से धीरे-धीरे दूर होते गए। ऐसे में इतवारीराज ने बच्चों को अवसर देकर गांव की पुरानी परंपरा को नए तरीके से जोड़कर अवसर देने का एक नया तरीका सोचा है।
शुरुआती दौर में इतवारीराज ने सन 2004 में अपनी तनख्वाह से चार लड़के और लड़कियों को तीरंदाजी सिखाना शुरू किया। समय के साथ बच्चों के अच्छे प्रदर्शन को देखकर धीरे-धीरे इतवारी ने पूरे गांव के तकरीबन 250 से 300 बच्चे को तीरंदाजी सिखा दी। अब यह बच्चे देशभर में अपने तीरंदाजी के लिए पहचाने जाने लगे हैं। इतवारी सिंह की मेहनत और बच्चों की लगन को देखकर सरकार ने भी उनकी मदद की। विगत कुछ साल पहले सरकार की ओर से इस गांव में खेलो इंडिया लघु केंद्र ट्रेनिंग सेंटर खोला गया। खेल से संबधित अलग-अलग सुविधाएं उपलब्ध कराई गई।
शिवतराई गांव बिलासपुर जिले के कोटा ब्लॉक से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आदिवासी गांव शिवतराई तीरंदाज में राज्यस्तर पर 500 से अधिक और राष्ट्रीयस्तर पर 186 मेडल जीत चुके हैं। इतवारीराज के बेटे अभिलाष राज भी तीरंदाजी में माहिर हैं। उसके समेत चार खिलाड़ियों को छत्तीसगढ़ में तीरंदाजी का सबसे बड़ा सम्मान प्रवीरचंद भंजदेव पुरस्कार भी मिल चुका है। इस अवॉर्ड को पाने वाला एक खिलाड़ी संतराम बैगा भी है। प्रदर्शन के आधार पर शासन ने संतराम को शिवतराई के स्कूल में भृत्य की नौकरी भी दी है।
संतराम के अलावा भागवत पार्ते और खेम सिंह भी स्पोर्ट्स कोटे के आधार पर आर्मी में नौकरी कर रहे हैं। शिवतराई के ही अगहन सिंह भी राजा प्रवीरचंद भंजदेव पुरस्कार पा चुके हैं। फिलहाल शिवतराई स्कूल मैदान में मिनी, जूनियर और सीनियर वर्ग में बालक और बालिका मिलाकर ढाई से तीन सौ के आस-पास बच्चे प्रशिक्षण ले रहे हैं।
इतवारी को यह विश्वास है कि आने वाले दिनों में शिवतराई के खिलाड़ियों का नाम निश्चित तौर पर दुनिया के बेहतरीन तीरंदाजों में गिना जाएगा। वे इसके लिए हर संभव प्रयास करने की बात कह रहें हैं। उनके इस समर्पण से लगता है कि महाभारत काल में एकलव्य गुरु द्रोण की तलाश में था ताकि उसकी प्रतिभा में निखार आए। इतवारी ने खुद कई एकलव्य तलाश कर लिए ताकि वे उनके हुनर को सही दिशा की ओर रूख दे सकें। उनकी इच्छा है कि दुनिया के नक्शे पर शिवतराई गांव नाम हो और छत्तीसगढ़ का हरेक व्यक्ति इस पर गर्व करे।
वहीं, शिवतराई गांव में राज्य सरकार की तरफ से खेलो इंडिया का सेंटर और उप केंद्र दोनों खुलवाया गया। बाकी बचे हुए समान भी पहुंच गए हैं। कुछ सामान बचा हुआ है जो कोरिया से आने वाला है। साथ ही यहां के बच्चो के लिए रिकब इंटरनेशल और बाकी बटरेस निशाना लगाने वाला बॉक्स और ऑफिस व्यवस्थित हो गए हैं। पहले हम लोग इंडियन ऑर्चरी खेलते थे, उसका रेंज 50 मीटर का टूर्नामेंट होता था। अब हमारी भी इच्छा है और राज्य सरकार की भी इच्छा है कि इस गांव और छत्तीसगढ के बच्चे भी इंटरनेशनल खेलें।उन्होंने कहा कि रिकब में हम मिनिमम 70मीटर टूर्नामेंट खेलते हैं तो कम से कम 100 मीटर का मैदान हो। इसलिए एक नये मैदान का चयन भी हुआ है, जिसका कार्य जल्द होने की संभावना है।