Monday, December 23, 2024
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जानिए 1971 के बैटल ऑफ गंगासागर की कहानी!

आज हम आपको 1971 के बैटल ऑफ गंगासागर की कहानी सुनाने जा रहे है! जो जीते हैं देश के लिए , वो देश के लिए अपना लहू बहाते हैं, माँ भारती के चरणों में अपना शीश चढ़ाकर, देश की लाज बचाते हैं। परवाह नहीं करते अपनी जान की, देश के लिए, हँसते-हँसते अपनी जान लुटाते हैं। हमारी भारतीय सेना या कहें हमारे जवानों के वीर, साहस और पराक्रम की जितनी तरीफ की जाए कम हैं। भारत माता की रक्षा के लिए हमारे बहादुर सैनिकों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए लेकिन, कभी उसपर आंच नहीं आने दी। पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी देश जो हमेशा भारत पर कब्जा या उसपर आक्रमण करने की मंशा पाले बैठे रहते हैं, उन्हें हमारे रणबांकुरों ने ही धूल चटाई है। आज हम फिर एक बार बात पाकिस्तान की ही करेंगे। ऐसा पड़ोसी देश जो युद्ध में कई दफे शिकस्त खाने के बाद भी सुधरता नहीं है। आज से 52 साल पहले साल 1971 में उसने पूर्वी पाकिस्तान या कहें आज के बांग्लादेश पर कहर बरपाया था। लेकिन, उसकी यह नापाक हरकत हमारे वीर जवानों ने फेल कर दी थी। आज शौर्यगाथा सीरीज के चौथे एपिसोड में हम बात करेंगे द बैटल ऑफ गंगासागर या कहें गंगासागर की लड़ाई के बारे में। आज हम आपको उस युद्ध के बारे में बताएंगे, जिसके बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ और जिसके बाद 93000 पाक सैनिकों ने भारत की सेना के आगे आत्मसमर्पण कर दिया था। ऑपरेशन ट्राइडेंट की तरह गंगासागर की लड़ाई भी 3 दिसंबर 1971 को शुरू हुई थी और 13 दिन तक चली थी। इस लड़ाई का अंत 16 दिंसबर 1971 को हुआ था। 13 दिन तक चले इस युद्ध के बाद पाकिस्तान के हाथ से आधी जमीन निकल चुकी थी और दुनिया के सामने बांग्लादेश एक नए राष्ट्र के रूप में सामने आया था। 16 दिसंबर का ही वो दिन था जब पाकिस्तान के 93000 सैनिकों ने भारत के सामने सरेंडर कर दिया था। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 16 दिसंबर ही वो दिन था जब सैनिकों का इतना बड़ा सरेंडर दुनिया ने देखा था। गंगासागर बंगाल की खाड़ी के कॉन्टिनेंटल शैल्फ में कोलकाता से 140 किलोमीटर दक्षिण में एक द्वीप है। वर्तमान में यह भारत के अधिकार क्षेत्र में आता है। पश्चिम बंगाल सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण में है।

तारीख थी 2-3 दिसंबर और साल 1971। गंगासागर की लड़ाई की शुरुआत आधी रात को हुई थी। भारत के 14 गार्ड की अल्फा और ब्रावो कंपनियो ने पूर्वी पाकिस्तान में गंगासागर के पास पाकिस्तान के नियंत्रण वाले इलाके में मार्च करना शुरू कर दिया। मार्च करना इतना भी आसान नहीं था। दलदली इलाका था। सैनिकों के पैर घुटनों तक धंसे जा रहे थे। यह देखते हुए सभी सैनिकों को एक कतार में चलने को कहा गया था। सैनिक जहा मार्च कर रहे थे वहां से एक अखौरा रेल्वे स्टेशन था जो 4 किलोमीटर की दूरी पर था। रेलवे ट्रैक को सतह से 8 से 10 फीट ऊंचाी पर बनाया गया था। अल्फा कंपनी को रेलवे ट्रैक के दाहिने तो वहीं ब्रावो कंपनी को लाइन के बाएं तरफ चलने को कहा गया था। इस ऑपरेशन की जिम्मेदारी दो लांस नायक गुलाब सिंह और अल्बर्ट एक्का के कंधों पर थी। उन्हें आदेश थे कि दिखते ही पाक सैनिकों पर हमला बोल दिया जाए।

भारत के सैनिकों की आहट का पता पाकिस्तान को कैसे चला। ब्रावो कंपनी के कमांडर मेजर ओपी कोहली ने एक चैनल से बातचीत में बताया कि ब्रावो कंपनी के सैनिक रेलवे ट्रैक से बाईं तरफ से थोड़ा नीचे चल रहे थे। तब तक पाकिस्तान को पता भी न था। तभी अचानक एक सैनिक का पैर पाक के बिछाए ट्रिप प्लेयर वायर पर पड़ गया। इसका नतीजा यह हुआ कि अचानक रात में आतिशबाजी जैसा नजारा हो गया। अल्बर्ट एक्का जहां उस वक्त खड़े थे वहां से पाकिस्तान का बंकर 40 फीट की दूरी पर था। आसमान में रोशनी फैलते ही पाकिस्तान को पता चल गया। उनके एक सैनिक ने चिल्लाकर पूछा- कौन है? इधर से इक्का ने जोर से कहा- तेरा बाप। इसके बाद इक्का ने आव देखा न ताव और दौड़कर पाकिस्तानी सैनिक के पेट में अपनी संगीन घोंप दी।

पाकिस्तान सैनिक पर हमले के बाद पाकिस्तानी सैनिकों ने हमला बोल दिया। एक्का को पाक सैनिकों की ओर से बांह में गोली लगी। हालांकि, अलबर्ट एक्का के हमले के बाद ताबाही मच गई। भारतीय सौनिकों ने पूरा नियंत्रण अपने कब्जे में ले लिया। पाकिस्तानी सैनिकों ने अल्फा और ब्रावो कंपनी पर हमला करना शुरू कर दिया। 120 सैनिकों वाली दोनों कंपनियां जवाबी हमले के चलते अलग-अलग हो गईं। यह एक रणनीति का हिस्सा था। ए कंपनी आग बढ़ती चली गई तो वहीं बी कंपनी तालाब की तरफ मुड़ गई। बी कंपनी ने एक-एक कर पाकिस्तानियों के बंकर नष्ट करने शुरू कर दिए। उधर एक्का गोली लगने के बाद भी दुश्मनों पर हमला किए जा रहे थे। वो मेजर कोहली के साथ चल रहे थे।

अलबर्ट इक्का को पाकिस्तान की तरफ से दूसरी गोली लगी। यह गोली उनके गर्दन को छीलते हुए निकल गई। एक्का तुरंत जमीन पर गिर पड़े। लेकिन, तुरंत बाद उठ खड़े हुए और साथ चलने लगे। दूसरी ओर पाकिस्तान लगातार फायरिंग कर रहे थे। जरूरत थी पड़ोसी देश की गोलीबारी को शांत करना। यहां अलबर्ट एक्का ने सूझबूझ का परिचय दिया। अलबर्ट इक्का ने खून से सनी अपनी हथेलियों को अपनी पैंट से पोछा और गन पर अपनी पकड़ मजबूत की। एक्का को इस बात का अंदाजा था कि जैसे-जैसे खून और उनकी बॉडी से निकलेगा वैसे-वैसे उनकी पकड़ ढीली पड़ती जाएगी। इक्का की नजर अपनी बेल्ट में लटके हुए हैंड ग्रेनेड पर जाती है। वह तुरंत उसकी पिन निकालकर इमारत के अंदर एक छेद के जरिए लुढ़का देते हैं। पाकिस्तान सैनिक कुछ समझ पाते एक विस्फोट हुआ और उनके परखच्चे उड़ गए। अलबर्ट इक्का ने घायल होने के बावजूद अपनी संगीन से पाकिस्तानी सैनिकों पर हमला जारी रखा। एक्का ने पाकिस्तानी सैनिकों के खून के छींटों से अपनी आस्तीन पोछी। एक्का ने शहीद होते होते युद्ध भारत की तरफ मोड़ दिया था। अल्बर्ट एक्का को उनकी बहादुरी के लिए भारत का सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र दिया गया था। बिहार और ब्रिगेड ऑफ गार्ड्स के किसी भी सैनिक को दिया गया यह पहला सम्मान था।

3 दिसंबर 1971 से 16 दिसंबर के बीच कहीं भी पाकिस्तान की सेना भारी नहीं पड़ी। इस लड़ाई का अंत भारत की जीत के साथ हुआ। 16 दिसंबर 1971 को हार स्वीकार करते हुए शाम 4 बजकर 35 मिनट पर लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने 93 हजार पाकिस्तान सैनिकों के साथ सरेंडर करल दिया। नियाजी ने भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए थे। इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान नया बांग्लादेश बन चुका था। दुनिया के नक्शे में उसका भी नाम शामिल हो गया था। इस युद्द में भारत की शान बढ़ गई थी। उस समय इंदिरा गांधी की सरकार थी। भारत ने इस लड़ाई से दुनिया का नक्शा ही बदल दिया था। नया देश बांग्लादेश का जन्म दुनिया के बड़ी राजनीतिक घटनाओं में से एक था। 1971 में नए बांग्लादेश के राष्ट्रपति बने थे शेख मुजीबर रहमान। बाद में इन्हें प्रधानमंत्री भी बनाया गया था। हालांकि 15 अगस्त 1975 में सैनिक तख्तापलट के बाद उनकी हत्या कर दी गई थी।

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