आज हम आपको ठाकुर लवली पांडे की कहानी बताने जा रहे हैं! चंबल के बीहड़ में सालों से डाकुओं का अड्डा रहा है। एक जमाने में चंबल के आसपास के गांवों में डाकुओं का ऐसा खौफ था कि लोग बाहर निकलने से भी डरते थे। देश में कई बड़े डकैत हुए इनमें से कई महिलाएं भी थीं। चंबल में जितनी भी लड़कियां डाकू बनीं उन्होंने किसी न किसी मजबूरी की वजह से ही हथियार उठाए थे। या तो उन्हें जबरदस्ती उनके घर से उठा लिया गया या फिर वो बदले की आग में जलते हुए डाकू बनीं। ज्यादातर डकैत या तो गुर्जर समुदाय से थी या फिर राजपूत, लेकिन आज हम जिस लड़की की बात कर रहे हैं वो ब्राह्मण समाज से आती थी और उसने किसी मजबूरी में नहीं बल्कि अपनी मर्जी से अपने प्यार को पाने के लिए डाकू बनने का फैसला लिया था। उन दिनों चंबल के बीहड़ों में गुर्जर डाकुओं का राज था। चंबल के आसपास के राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के गांवों में अक्सर डाकू आ धमकते थे। मारपीट, लूटपाट, हत्याए, किडनैपिंग, फिरौती मांगने जैसी घटनाएं अक्सर सामने आती थीं। डाकुओं से बचने के लिए गांव के लोग उनकी कोई बात से इनकार नहीं करते थे। नब्बे के उसी दौर में उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के भरेह गांव में अक्सर डाकुओं का हमला होता था। गांव में अक्सर डाकू रज्जन गुर्जर लूटपाट मचाता था।
इसी गांव में रहती थी किरण पांडे जिसे लवली के नाम से भी जाना जाता था। लवली बेहद खूबसूरत थी। वो ब्राह्मण परिवार में पैदा हुई। पिता हरिशंकर शास्त्री ने ब्राह्मण घराने में ही उसकी शादी भी की, लेकिन पति के साथ उसके रिश्ते कभी अच्छे नहीं रहे। शादी के थोड़े समय बाद ही उसे पति ने तलाक दे दिया। पति ने जब छोड़ दिया तो वो वापस अपने गांव भरेह आ गई। पहले पिता के साथ रहने लगी, लेकिन थोड़े समय बाद ही पिता की मौत हो गई तो वो अकेले ही गांव में मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन चलाने लगी।
लवली जवान थी और अकेली भी। गांव में आने वाले डाकू रज्जन को वो पसंद करने लगी। दोनों गांव में ही एक-दूसरे के करीब आने लगे। गांव के लोगों को ये बर्दाश्त नहीं हो रहा था कि एक ब्राह्मण परिवार की बेटी इस तरह डाकू के साथ मौज मस्ती कर रही है। गांववाले लवली पर उंगलियां उठाने लगे, लेकिन लवली पांडे तो डाकू रज्जन को अपना दिल दे बैठी थी। पहले वो छुपकर डाकू रज्जन से मिलती थी, लेकिन बाद में उसने रज्जन के साथ गांव के एक मंदिर में ही शादी कर ली और फि उसके साथ ही चंबल में चली गई।
डाकू के प्यार में लवली गांव छोड़कर जंगल में आ चुकी थी। चंबल के बीहड़ में भी वो डाकू रज्जन गुर्जर के साथ खुश थी। रज्जन ने उसे डकैतों के बीच दस्यु सुंदरी घोषित किया। उसके हाथ में बंदूक थमाई गई। वो भी अब डकैतों के गैंग की एक सदस्य बन चुकी थी। रज्जन गुर्जर ने ही उसे बंदूक चलाना सिखाया और फिर धीरे-धीरे वो रज्जन के गैंग में की खुंखार डाकू बन गई। आसपास के गांवों में वो भी लूटपाट करने वाले डाकुओं में अब वो भी जाने लगी।
लवली पांडे का खौफ बढ़ने लगा था। 1998 के आसपास लवली पांडे चंबल की बड़ी डाकुओं में से एक माना जाता था। उसपर कई लूटपाट, किडनैपिंग और हत्याओं के कई आरोप लग चुके थे। 5 दिसंबर 1999 के दिन लवली पांडे ने एक रिटायर्ड प्रिंसिपल रामस्वरूप शर्मा की किडनैपिंग की। रामस्वरूप शर्मा मध्यप्रदेश के रहने वाले थे कुछ दिन पहले ही स्कूल से रिटायर हुए थे। वो रोज सुबह मॉर्निंग वाक के लिए जाते थे। 15 दिसबंर की सुबह भी वो वॉक के लिए निकले, लेकिन लौटकर घर नहीं आए। परिवार वालों ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाई।
करीब एक हफ्ते बाद रामस्वरूप शर्मा के घर एक लेटर आया। ये खत बकायदा प्रिंटेड लेटरहेड पर था। इस लेटर हेड पर लवली पांडे का नाम, पता लिखा गया था। साथ ही इसमें 6 लाख की फिरौती की मांग की गई थी। दरअसल उस दिन रामस्वरूप को रास्ते से ही डाकू लवली के गिरोह ने किडनैप कर लिया था। रामस्वरूप शर्मा की अपने इलाके में खासी इज्जत थी। उनके अपहरण की खबर हर तरफ फैल गई और साथ ही इस लेटरहेड का जिक्र में लोगों में चर्चा का विषय बन गया।
रिटायर्ड प्रिंसिपल रामस्वरूप शर्मा डकैतों के चंगूल में थे और मांग की गई थी फिरौती की। लवली पांड ने इसमें लिखा था कि माता की भेंट के रूप में करीब 6 लाख रूपये भिजवाएं। ये हैरान करने वाला मामला था कि डाकू भी लेटरहेड पर फिरौती की मांग कर रहे थे। लवली पांडे के जुर्म पहले ही काफी बढ़ चुके थे और इस घटना के बाद तो वो पुलिस की हिट लिस्ट में आ गई थी। उसके खिलाफ 50 हज़ार के ईनाम की घोषणा की गई।
इसके बाद भी काफी सालों तक लवली और रज्जन गुर्जर का आतंक मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के गांवों में रहा, लेकिन 2000 में पुलिस ने एक एनकाउंटर में लवली को मार गिराया। इस एनकाउंटर में डाकू रज्जन गुर्जर भी मारा गया और इस तरह से दहशत का अंत हुआ।