जानिए बिहार के गैंगवार की कहानी!

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आज हम आपको बिहार के गैंगवार की कहानी सुनाने जा रहे हैं! बाहुबली आनंद मोहन को गुरुवार को रिहा कर दिया गया। इसके साथ ही 1994 की वो कहानी फिर से सुर्खियों में आ गई, जिसमें एक जिलाधिकारी को पीट-पीटकर मार डाला गया था। जिस भीड़ ने जिलाधिकारी पर हमला किया वो एक आनंद मोहन के करीबी बाहुबली कौशलेंद्र शुक्ला के अंतिम संस्कार में आई थी। जिलाधिकारी  जी कृष्णैया की हत्या की कहानी जानने से पहले आपको उस दौर के बारे में जानना होगा। उस दौर की राजनीति के बारे में जानना होगा। ये मंडल का दौर था। उस दौर में मंडल और कमंडल की राजनीति करने वाले आमने-सामने थे।  बिहार में ये राजनीति अपने चरम पर थी। राज्य में जगह-जगह जातीय दंगे भी हो रहे थे। 1995 में राज्य में विधानसभा चुनाव होने थे। इससे पहले 1994 में वैशाली लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुए। इस सीट पर जनता दल का मुकाबला बाहुबली से नेता बने आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद से था। आनंद मोहन ने बिहार पीपुल्स पार्टी के नाम से नया क्षेत्रीय दल बनाया था। अगड़े-पिछड़े की राजनीति के इस दौर में राजपूत नेता आनंद मोहन अगड़ों की राजनीति कर रहा था। उसे डॉन कौशलेंद्र शुक्ला उर्फ छोटन का भी समर्थन मिला। इस चुनाव में जनता दल विरोधी सभी जातियों को एकजुट करके लवली आनंद जीतने में सफल रहीं।   नतीजे घोषित होने के बाद मतगणना स्थल से निकलते आनंद मोहन ने दावा किया कि वह छह महीने में बिहार का सीएम होगा। उस वक्त आनंद मोहन के साथ कौशलेंद्र शुक्ला उर्फ छोटन भी थे। छोटन की गिनती उन दिनों बड़े माफियाओं में होती थी। छोटन 1995 विधानसभा चुनाव के लिए केसरिया सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे।  

 छोटन का प्रचार तभी से शुरू था। चार दिसंबर 1994 की रात भी छोटन शुक्ला केसरिया से चुनाव प्रचार कर देर रात लौट रहे थे। इसी बीच, किसी ने उनकी कार को बीच सड़क गोलियों से भून दिया। AK-47 से ये हमला हुआ था। उस हमले में कौशलेंद्र कुमार शुक्ला व उनके चार समर्थकों की मौके पर ही मौत हो गई।

इस हत्याकांड ने बिहार में एक नई गैंगवार की शुरुआत कर दी। अगले दिन यानी पांच दिसंबर को छोटन की शव यात्रा निकाली गई। इसमें हजारों की भीड़ उमड़ी। लोग आक्रोशित थे। इसी बीच, पटना से गोपालगंज लौटते वक्त गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की कार इस शव यात्रा में फंस गई। 

कृष्णैया को देख भीड़ में से किसी ने आवाज दी, भुटकुनवा छोटन का भाई, ले लो बदला, इहे हउवे डीएमवा। फिर क्या था, भीड़ ने डीएम की कार पर हमला कर दिया। जिलाधिकारी कृष्णैया को इतना पीटा कि उनकी मौके पर ही मौत हो गई। करीब चार से पांच घंटे बाद पुलिस ने डीएम के शव को अपने कब्जे में लिया। पूरे जिले में कर्फ्यू लगा दिया गया। भीड़ को उकसाने का आरोप आनंद मोहन पर लगा। 2007 में अदालत ने आनंद मोहन को मौत की सजा सुनाई। हालांकि, एक साल बाद पटना उच्च न्यायालय ने मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। पिछले 15 साल से वह बिहार की सहरसा जेल में सजा काट रहा था। अब बिहार सरकार ने जेल नियमों में संशोधन कर दिया है। इस संशोधन के चलते आनंद मोहन को गुरुवार को रिहा कर दिया।

छोटन की हत्या के बाद उसके छोटे भाई भुटकुन के अंदर बदले की आग तेजी से सुलगने लगी। कहा जाता है कि वो खुद ही शार्प शूटर था। उसने उत्तर बिहार के हाजीपुर जोन में रेलवे टेंडरों पर नजर गड़ाए यूपी के माफिया श्रीप्रकाश शुक्ला से मदद ली और दी। भुटकुन को लगता था उसके भाई की हत्या बृजबिहारी ने कराई है।  

भुटकुन की नजर बृजबिहारी प्रसाद पर थी। उन दिनों बृजबिहारी ने अपनी पर्सनल सुरक्षा भी मजबूत कर रखी थी। बृजबिहारी का दाहिना हाथ ओंकार सिंह था। ओंकार खुद शार्पशूटर था। ओंकार ठेके भी लेता था और बृजबिहारी का मनी मैनेजमेंट भी करता था। भुटकुन ने पहले ओंकार को ही रास्ते से हटाया।

भुटकुन कुछ भी करके बृजबिहारी को मारना चाहता था, लेकिन इससे पहले ही भुटकुन की हत्या हो गई। उसके अपने ही बॉडीगार्ड दीपक सिंह ने भुटकुन को AK-47 से भून दिया। इससे भुटकुन और छोटन का तीसरा भाई विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना आगबबूला हो गया। भुटकुन की तरह मुन्ना ने भी बृजबिहारी से बदला लेने की ठानी।  

कहा जाता है कि सूरजभान सिंह, श्रीप्रकाश शुक्ल , राजन तिवारी सरीखे बाहुबलियों ने मुन्ना शुक्ला का साथ दिया। उधर, मंत्री बृजबिहारी प्रसाद इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा घोटाले में फंस गए थे। लालू यादव को सीबीआई जांच करानी पड़ी। जेल जाने से बचने के लिए बृजबिहारी अस्पताल में भर्ती हो गए। 13 जून, 1998  को रात आठ बजे के आसपास बृजबिहारी प्रसाद अस्पताल परिसर में बॉडी गार्ड्स के साथ टहलने निकले थे। तभी एक एम्बेसेडर कार अस्पताल में घुसी। बृज बिहारी से बीस कदम दूर पर कार चालक ने ब्रेक लगाया और फिर फायरिंग शुरू हो गई।

AK-47 की तड़तड़ाहट से पूरा बिहार दहल गया। मंत्री बृज बिहारी के साथ उनके एक बॉडीगार्ड और दो अन्य लोग मौके पर ही मारे गए। आरोप मुन्ना शुक्ला पर लगा। इस हत्या के मामले में सूरजभान, मुन्ना शुक्ला, राजन तिवारी समेत आठ लोगों को निचली अदालत ने दोषी करार दिया लेकिन 2014 में पटना हाईकोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया।  मौजूदा दौर में इन सभी के परिवार बिहार की राजनीति में सक्रिय हैं।