आखिर फूलन देवी को कौन नहीं जानता! ये कहानी है उस लड़की की जो समाज के उस वर्ग से आती थी जिसपर अत्याचार करना गांव के ठाकुर अपनी शान समझते थे। ये सच है दर्द की इंतेहा पार करने वाली गांव की एक सीधी-साधी लड़की का जिसको समाज ने मजबूर किया बंदूक उठाने पर। फूलन देवी जिसके नाम से शायद हर कोई वाकिफ हो। 1963 में उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के गोरहा गांव में एक बेहद गरीब परिवार में पैदा हुई फूलन का बचपन से ही दुखों से चोली-दामन का साथ रहा, जो फूलन के अंदर गुस्से के रूप में तब्दील होता रहा। कहते हैं जब फूलन दस साल की थी तो उसके चाचा ने उसके पिता की जमीन को हड़प ली। परिवार बेहद दुखी था, लेकिन फूलन के अंदर गुस्सा था और इसी गुस्से में फूलन ने अपने चाचा के बेटे पर ईंट से हमला कर किया।
दस साल की उम्र में ही फूलन की शादी भी कर दी गई और वो भी गांव के ही एक अधेड़ उम्र से शख्स से। दस साल की फूलन शादी करके जब अपने पति के घर पहुंची तो शुरू हुई अत्याचार की कहानी। फूलन का पति उसके साथ रोज मारपीट करता, उसका रेप करता। दस साल की लड़की ये झेल पाई, वो बेहद बीमार रहने लगी। इसी दौरान वो अपने मायके लौटकर आई तो ससुरल में उसके पति ने दूसरी शादी कर ली। मायके वालों ने उसे वापस ससुराल भेज दिया लेकिन वहां उसके ऊपर अत्याचार और बढ़ गए। अब जुल्म ढाने वालों में उसके पति की दूसरी बीवी भी शामिल थी। आखिरकार फूलन देवी ने तंग आकर चंबल की बीहड़ को चुना। घर छोड़कर वो डाकुओं के साथ मिल गई।
चंबल में फूलन को डाकू विक्रम मल्लाह का साथ मिला। दोनों साथ में खुश थे, लेकिन ये बात दूसरे गैंग यानी ठाकुरों को पसंद नहीं आई। डाकू लाला ठाकुर और श्रीराम ठाकुर ने विक्रम मल्लाह की हत्या कर दी और फूलन एक बार फिर अकेली हो गई। विक्रम की हत्या के बाद ठाकुर गैंग ने फूलन देवी का अपहरण किया और बेहमई गांव में कैद कर लिया। कहते हैं तीन हफ्ते तक उसे बंदी बनाकर रखा गया और गांव के अलग-अलग ठाकुरों ने उसके साथ बलात्कार किया। तीन हफ्ते तक 18 साल की फूलन देवी ये जुल्म सहती रही और फिर बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाकर वहां से चंबल की बीहड़ों में भागी।
चंबल में फूलन ने खुद को इतना मजबूत बनाया कि वो ठाकुरों से बदला ले सके। कड़ी मेहनत और बदले की आग ने वो काम किया जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। 1981 में बेहमई गांव में फुलन वापस लौट के आई। इस बार वो गांव की कमजोर लड़की नहीं बल्कि चंबल के बीहड़ों में तपी डाकू फूलन देवी थी और यही आकर फूलन देवी ने 22 ठाकुरों को गोलियों से भून डाला था। जैसे ही ये खबर फैली पूरे देश में हड़कंप मच गया। एक साथ 22 लोगों की हत्या हर कोई सन्न था।
इस घटना के बाद पूरे देश में फूलन की गिरफ्तारी को लेकर आवाज़ें उठने लगी। पुलिस पर दवाब था डाकू फूलन देवी को गिरफ्तार करने का। वो बन चुकी थी बैंडिट क्वीन, लेकिन चंबल के बीहड़ से उसे पकड़ना कोई आसान काम नहीं था। ठाकुरों की हत्या पर देश की राजनीति भी गर्मा गई। उस वक्त उत्तर प्रदेश में वीपी सिंह मुख्यमंत्री थे। इस घटना के बाद उन्हें भी अपनी कुर्सी गवांनी पड़ी। पुलिस की तमाम कोशिशों का बावजूद फूलन देवी को पकड़ना नामुमकिन हो रहा था। बाद में इस काम की जिम्मेदारी पुलिस अधिकारी राजेन्द्र चतुर्वेदी को दी गई। कहते हैं, उन्होंने ही फूलन देवी को आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार किया।
फूलन पर 22 हत्या, 30 डकैती और 18 किडनैपिंग के केस दर्ज हुए। ग्यारह साल तक फूलन जेल में रहीं, लेकिन बाद में फूलन देवी ने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और मिर्जापुर सीट से वो सांसद भी बन गई। पहले गांव की मुश्किल ज़िंदगी फिर चंबल के बीहड़ और अब संसद तक का सफर। ऐसा लगा शायद फूलन देवी की ज़िंदगी अब पटरी पर आ जाएगी। उन्होंने उम्मेद सिंह नाम के एक शख्स से शादी भी की, लेकिन 2001 में फूलन देवी की हत्या कर दी गई। दिल्ली में उनके घर के बाहर ही उन्हें गोलियों से भून डाला।
फूलन देवी के मुश्किल जीवन और उनके डाकू बनने की पूरी कहानी उस वक्त लोगों के सामने आई जब उनपर एक फिल्म बनी। शेखर कपूर ने बैंडिट क्वीन के नाम से ये फिल्म बनाई जो काफी हिट रही। फिल्म को कई नेशनल अवार्ड्स भी मिले। सीमा विश्वास ने फिल्म में फूलन देवी का रोल प्ले किया जिसके लिए उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड मिला। हालांकि पहले लंबे समय तक इस फिल्म का विरोध भी हुआ, यहां तक की खुद फूलन देवी नहीं चाहतीं थी कि ये फिल्म रिलीज हो लेकिन जब रिलीज हुई तो इसे खूब पसंद किया गया। इस फिल्म से पहले माला सेन ने फूलन देवी पर एक किताब भी लिखी थी जिसके आधार पर ही ये फिल्म बनी।