आज हम आपको राजनीति के धुरंधर मदन लाल खुराना की कहानी सुनाने जा रहे हैं! दिल्ली में अगर डीटीसी का किराया बढ़ जाए या फिर दूध के दामों में बढ़ोतरी हो जाए तो यह शख्स दिल्ली की सड़कों पर उतर जाता था। इसकी एक एक आवाज पर दिल्ली थम जाती थी। जनता के मुद्दों के लिए ये आंदोलन से कभी पीछे नहीं हटा। दिल्ली के पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने की बात हो या फिर अनॉथराइज्ड कॉलोनियों को नियमित करने की। यह नेता हमेशा सबसे आगे खड़ा रहा। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब दिल्ली में सिख विरोधी दंगे भड़के तो इस शख्स ने अपने गढ़ मोती नगर को दंगाइयों से दूर रखा। साथ ही करोल बाग से लेकर राजौरी गार्डन तक दंगों का प्रभाव नहीं पड़ने दिया। इतना ही नहीं इस शख्स ने उस दौर में दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में जाकर दंगा प्रभावितों के पुनर्वास में अहम भूमिका अदा की। दिल्ली के लोगों के हितों लिए लगातार काम करने और यहां बीजेपी को मजबूती से खड़ा करने वाले इस शख्स को ‘दिल्ली के शेर’ की उपाधि मिली। राजनीति के धुरंधर सीरिज की तीसरी किस्त में हम आज बात कर रहे हैं ‘दिल्ली के लाल’ मदनलाल खुराना की। खुराना की नेतृत्व क्षमता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर दिल्ली को दर्जनों बार बंद कराया। पंजाब में आतंकवाद के दौर में जब भी कोई घटना होती खुराना दिल्ली में बंद का आह्वान कर देते थे। खास बात थी कि उनका कोई भी बंद असफल नहीं रहा। ये उनके संगठन क्षमता का ही कमाल था कि उनके बंद के आह्वान पर दिल्ली में बाजार बंद हो जाते थे। दिल्ली बिल्कुल थम जाती थी। छात्र राजनीति से मुख्य धारा की राजनीति करने मदन लाल खुराना दिल्ली आए। यहां उस समय दिल्ली में नगर निगम हुआ करता था। उन्होंने जनसंघ कार्यकर्ता के रूप में दिल्ली की राजनीति में पहला कदम रखा। यहां उन्होंने अपने कॉलेज के साथी विजय कुमार मल्होत्रा और केदार नाथ साहनी के साथ मिलकर जनसंघ के दिल्ली चैप्टर की स्थापना की। बाद में ये तीनों दिल्ली बीजेपी की रीढ़ की हड्डी बन गए। खुराना 1965 से 1967 तक जनसंघ के महासचिव रहे। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद खुराना ने दिल्ली में बीजेपी को मजबूत करने के लिए काफी सक्रियता के साथ काम किया। उन्होंने दिल्ली में बीजेपी को ना सिर्फ खड़ा किया बल्कि कांग्रेस के मुकाबले मजबूत भी बनाया। दिल्ली के पंजाबी नेताओं की बात करें मदन लाल खुराना आखिरी पंजाबी नेता थे जिन्होंने दिल्ली की राजनीति में अपनी जबरदस्त दबदबा दिखाया। इससे पहले नगर निगम में बलराज खन्ना की जबरदस्त धाक हुआ करती थी। खुराना ने दिल्ली में पंजाबी और वैश्य समुदाय में बीजेपी के भरोसे को मजबूत किया। बाद में यह पार्टी का सबसे मजबूत वोट बैंक भी बना। खुराना की खास बात थी कि वे इन दो समुदाय के अलावा अन्य वर्गों में भी खासे लोकप्रिय थे। राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय रहने से पहले खुराना ने दिल्ली के एक कॉलेज में अध्यापन का कार्य भी किया।
1991 में नरसिम्हा राव की सरकार के कार्यकाल में जब 69वें संविधान संशोधन को मंजूरी मिली। यह संशोधन 1993 में लागू हुआ। इसके बाद ही दिल्ली को फिर से उसकी विधानसभा मिली। दिल्ली में फिर चुनाव हुए। उस समय बीजेपी की तरफ से नारा गूंजा था, दिल्ली का एक ही लाल, मदनलाल, मदन लाल। इस चुनाव में बीजेपी को जबरदस्त जीत मिली। बीजेपी ने 70 में 49 सीटों पर जीत हासिल की। कांग्रेस के खाते में महज 14 सीटें ही आईं। बीजेपी की जीत के हीरो रहे मदन लाल खुराना। मदन लाल खुराना का कद उस समय दिल्ली की राजनीति में काफी ऊंचा था। साथ ही उनके पीठ पर मुरली मनोहर जोशी का भी हाथ था। मुरली मनोहर जोशी ने उस समय ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ा था। उनके बाद आडवाणी ने पार्टी की कमान संभाली थी। कहा जाता है कि उस समय आडवाणी नहीं चाहते थे कि मदन लाल खुराना सीएम बनें लेकिन मुरली मनोहर जोशी ने उनके लिए आडवाणी को राजी कर लिया था। इसके बाद कभी दिल्ली में शरणार्थी बन कर पहुंचे खुराना ने दिल्ली के मुख्यमंत्री की गद्दी संभाली। खुराना 2 दिसंबर 1993 से 26 फरवरी 1996 तक दिल्ली के सीएम रहे। जैन हवाला डायरी केस में नाम आने के बाद खुराना ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उनके बाद साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया।
खुराना ने 1967 में पहाड़गंज से चुनाव जीत कर पार्षद बने। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार ओम प्रकाश माकन को हराया था। ओम प्रकाश माकन कांग्रेस के मौजूदा नेता अजय माकन के दादा और पूर्व सांसद ललित माकन के पिता थे। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में मदन लाल खुराना दिल्ली सदर लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे। हालांकि, इस चुनाव में खुराना को कांग्रेसी उम्मीदवार जगदीश टाइटलर के हाथों 66 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 1989 में हुए चुनाव में खुराना ने सदर की बजाय साउथ दिल्ली से चुनाव लड़ा। इस चुनाव में कांग्रेस के उम्मीद सुभाष चोपड़ा को एक लाख से अधिक मतों के अंतर से हरा दिया। इसके बाद बीजेपी ने उन्होंने दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी सौंप दी। इसके बाद 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में खुराना ने फिर से साउथ दिल्ली से ही मैदान में उतरने का फैसला लिया। इस बार उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार रोमेश भंडारी को 50 हजार से अधिक मतों के अंतर से हराया।
दिल्ली में मेट्रो के जिस रूप को हम देख रहे हैं उसकी परिकल्पना से लेकर आकार लेने में मदन लाल खुराना की अहम भूमिका रही। मदन लाल खुराना ने ही मुख्यमंत्री बनने के बाद दिल्ली मेट्रो की डीपीआर के लिए बजट पास किया था। इस तरह खुराना ने दिल्ली में 1993 में मेट्रो प्रोजेक्ट के शुरू होने में अहम भूमिका अदा की। खुराना के कार्यकाल में ही ई श्रीधरन को दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (DMRC) का डायरेक्टर चुना गया था। खुराना दिल्ली मेट्रो रेल निगम के अध्यक्ष भी रहे। दिल्ली वालों के लिए पीने के पानी के संकट को दूर करने के लिए खुराना ने अपने मित्र भजन लाल के साथ बैठकर यमुना विवाद को सुलझाने पर काम किया। खुराना के समय में ही धौला कुआं और सफरदजंग-एम्स फ्लाइओवर की योजना भी आकार लेना शुरू हुई थी। खुराना साफ सफाई के बड़े पैरोकार थे। दिल्ली में दिवाली से पहले सड़कों की मरम्मत से लेकर साफ-सफाई सुनिश्चित करते थे।
मदन लाल खुराना का जन्म 15 अक्टूबर 1936 को ब्रिटिश काल में पंजाब प्रांत के लायलपुर में हुआ था। अब यह पाकिस्तान में फैसलाबाद के नाम से जाना जाता है। विभाजन के कारण महज 12 साल की उम्र में उनका परिवार पाकिस्तान से दिल्ली आ गया। यहां आकर उनके परिवार कीर्ति नगर की रिफ्यूजी कॉलोनी में शरण ली। मदन लाल खुराना ने अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से की। इसके बाद मास्टर्स की पढ़ाई के लिए खुराना पूर्वोत्तर के ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय पहुंच गए। यहीं से उन्होंने छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए। यहां उन्होंने एबीवीपी में शामिल होकर 1959 में इलाहाबाद छात्र संघ के महासचिव निर्वाचित हुए। इसके बाद 1960 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के महासचिव बने। यू कहें कि खुराना ने राजनीति का ककहरा यहीं से सीखा।
जैन हवाला कांड डायरी में नाम आने के बाद मदन लाल खुराना को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा। बाद1997 के आखिर तक खुराना भी इस मामले में बरी हो गए। अब ऐसा लग रहा था कि खुराना को फिर से सीएम की गद्दी मिल जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस बार फिर लाल कृष्ण आडवाणी ने वीटो कर दिया। इसके बाद 1998 में लोकसभा चुनाव आ गए। मदन लाल खुराना को दिल्ली सदर से टिकट मिला। खुराना ने लोकसभा का चुनाव जीत लिया। जीत के बाद उन्हें अटल बिहार कैबिनेट में मंत्री बनाया गया। खुराना को संसदीय कार्य मंत्री के साथ ही पर्यटन मंत्रालय का जिम्मा दिया गया। हालांकि, खुराना के दिल में अभी भी दिल्ली ही बसी थी। हालांकि, उस समय चुनाव से ठीक 50 दिन पहले साहिब सिंह की जगह सुषमा स्वराज को दिल्ली का सीएम बनाया गया। 1998 में ही खुराना को अटल बिहार सरकार में मंत्री पद से हटा दिया गया। 1999 में उन्हें फिर से दिल्ली सदर से लोकसभा चुनाव का टिकट मिला। खुराना इस बार भी जीते लेकिन उन्हें मंत्री पद नहीं दिया गया। चार साल तक सांसद के रूप में खुराना रहे। 2003 में सुषमा स्वराज और विजय कुमार मल्होत्रा के इनकार के बाद पार्टी ने विधानसभा चुनाव में फिर से मदन लाल खुराना को अपना चेहरा बनाया। उसी समय अटल बिहारी वाजपेयी ने खुराना को दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन का चेयरमैन भी बनाया। हालांकि, पार्टी को कांग्रेस के हाथों हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस ने 70 में 47 सीटें जीती। बीजेपी को 20 सीटें मिलीं। खुराना ने इस चुनाव में मोती नगर विधानसभा से जीत हासिल की। पार्टी की हार के कारण उन्हें विपक्ष में बैठना पड़ा। साल 2004 में मदन लाल खुराना को राजस्थान का गवर्नर बनाकर भेजा गया। करीब 8 महीने बाद ही राज्यपाल पद से इस्तीफा देकर वह फिर से सक्रिय राजनीति में आ गए। इस बीच लालकृष्ण आडवाणी से असहमतियों और उनकी सार्वजनिक आलोचना के कारण खुराना को पार्टी से निकाल दिया गया। बाद में उन्होंने माफी मांगी तो उन्हें पार्टी में एक महीने बाद वापस लिया गया। इसके बाद साल 2006 में बगावत के आरोप में उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया!
मदन लाल खुराना का 83 साल की उम्र में लंभी बीमारी के बाद निधन हो गया। उन्होंने मोती नगर स्थित अपने घर में अंतिम सांस ली थी। खुराना के परिवार में पत्नी, दो बेटे और दो बेटियां हैं। मदन लाल खुराना के एक बेटे हरीश खुराना दिल्ली बीजेपी में ही हैं। वह, बीजेपी के मीडिया विभाग में एक दशक से अधिक समय तक जुड़े हैं। फिलहाल वह बीजेपी के प्रवक्ता के साथ ही बीजेपी दिल्ली के मीडिया इंचार्ज की भी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। उनके एक बेटे विमल खुराना का भी साल 2018 में निधन हो गया था।