आज हम आपको श्री राम भगवान की सबसे बड़े सबूत रामसेतु की कहानी सुनाने जा रहे हैं! प्रधानमंत्री मोदी रविवार को तमिलनाडु के अरिचल मुनाई पहुंचे और उन्होंने समुद्र तट पर पुष्प अर्पित किए। मोदी ने वहां ‘प्राणायाम’ भी किया। उन्होंने समुद्र का जल हाथों में लेकर प्रार्थना की और अर्घ्य दिया। प्रधानमंत्री ने वहां बने राष्ट्रीय प्रतीक स्तंभ पर भी पुष्पांजलि अर्पित की। रामायण से जुड़े तमिलनाडु के मंदिरों का उनका दौरा सोमवार को उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह से ठीक पहले संपन्न हुआ है। मोदी ने श्री कोठंडारामस्वामी मंदिर में पूजा की और दर्शन किए, जो धनुषकोडी और अरिचल मुनाई की ओर जाने वाले रास्ते पर है, जहां से श्रीलंका कुछ ही दूरी पर है। तमिल में कोठंडारामस्वामी भगवान राम को धनुष और बाण से दर्शाते हैं। मोदी ने रात्रि प्रवास रामेश्वरम में किया था और इसके बाद वह अरिचल मुनाई गए। कहा जाता है कि अरिचल मुनाई वह स्थान है, जहां रामसेतु का निर्माण हुआ था। राम सेतु एक ऐसा पुल है, जो समुद्र के पार तमिलनाडु में पंबन आइलैंड को श्रीलंका के मन्नार आइलैंड से जाेड़ता है। रामसेतु का संबंध रामायण से है। मान्यता है कि श्रीराम और उनकी वानर सेना ने माता सीता को रावण से मुक्त कराने के लिए एक पुल बनाया था, जिसे रामसेतु नाम दिया गया। यह पुल मनुष्य द्वारा बनाया गया है या प्राकृतिक है इस बात पर पिछले कई वर्षों से बहस चल रही है। हालांकि राम सेतु आज भी एक रहस्य है। यही वजह है कि आज भी लोग इस सेतु के बारे में जानने में दिलचस्पी रखते हैं।
प्रोजेक्ट रामेश्वरम नाम के एक अध्ययन के जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने कहा है कि 7000 से 18000 साल पहले रामेश्वरम के आइलैंड और श्रीलंका के आइलैंड की खोज हुई थी। यानी ऐसा माना जाता है कि पुल 500-600 साल पुराना है। इस पुल की लंबाई 48 किमी है। रामायण में इस बात का उल्लेख किया गया है कि पुल तैरते हुए पत्थरों से बनाया गया है। हैरानी की बात यह है कि ऐसे तैरते हुए पत्थर आज भी रामेश्वरम में देखे जाते हैं। वाल्मीकि की रामायण में सबसे पहले राम सेतु का उल्लेख किया गया है। पौराणिक रूप से यह पुल भगवान राम की वानर सेना द्वारा निर्मित माना जाता है। सेना के एक वानर नाला ही थे, जिन्होंने सेना के अन्य सदस्यों को पुल बनाने का निर्देश दिया था। रावण से अपनी पत्नी सीता को बचाने के लिए भगवान राम को लंका पहुंचने में मदद करने के लिए पुल का निर्माण किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि सेतु बनाते समय सभी पत्थरों पर भगवान राम का नाम उकेरा गया था। इससे भी दिलचस्प बात ये है कि जब पत्थरों पर चलकर पुल पार किया गया, तो यह चमत्कार ही था कि पत्थर डूबे नहीं।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसे भगवान राम ने वानर सेना की मदद से बनवाया था। उन्हें श्रीलंका पहुंचने के लिए इस पुल का निर्माण करना पड़ा। दरअसल, रावण ने भगवान राम की पत्नी सीता का अपहरण कर उन्हें वहीं कैद कर लिया गया था। हैरानी की बात यह है कि रामायण (5000 ईसा पूर्व) का समय और पुल का कार्बन एनालिसिस का तालमेल एकदम सटीक बैठता है। हालांकि, आज भी ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है जो यह बताता है कि पुल मानव निर्मित है। 15 वीं शताब्दी तक, पुल पर चलकर जा सकते थे। रिकॉर्ड बताते हैं कि, 1480 तक पुल पूरी तरह से समुद्र तल से ऊपर था।
कई बार विवादों में रहा रामसेतु राम सेतु मुद्दा एक बड़े विवाद में तब फंस गया जब यूपीए सरकार के दौरान सेतुसमुद्रम परियोजना को हरी झंडी दिखाकर सेतु के चारों ओर ड्रेजिंग करने का प्रस्ताव दिया गया, जिसमें दक्षिणपंथी निकायों और तत्कालीन विपक्षी भाजपा ने इसे हिंदू भावनाओं पर हमला बताया। राम सेतु पर विभिन्न अध्ययनों का प्रस्ताव किया गया है, सबसे हाल ही में 2021 में, जब सरकार ने इसकी उत्पत्ति का पता लगाने के लिए एक पानी के नीचे अनुसंधान परियोजना को मंजूरी दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने बीते साल अक्टूबर महीने में रामसेतु केस से जुड़ी याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट का कहना है कि यह एक प्रशासनिक विषय है, जिस पर कोर्ट सुनवाई नहीं करेगा। मामले से जुड़ी याचिका में कहा गया है कि समुद्र का पानी ऊपर आ जाने के चलते राम सेतु के दर्शन में कठिनाई होती है। अगर दोनों तरफ कुछ दूरी तक एक दीवार बना दी जाए, तो रामसेतु आसानी से दिखाई पड़ेगा। यह याचिका हिंदू पर्सनल लॉ बॉर्ड के अध्यक्ष अशोक पांडे ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी। याचिका में ये भी कहा गया है कि दीवार बन जाने के बाद दुनिया भर के लोग पुल के दर्शन के लिए धनुषकोडी जा सकेंगे वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि कोर्ट दीवार बनाने का निर्देश कैसे दे सकता है। इसके साथ ही कोर्ट ने एक अन्य याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि राम सेतु को एक नेशनल हैरिटेज घोषित कर दिया जाए।