Friday, November 22, 2024
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जानिए RSS के खाकी पेंट की कहानी! जो आज तक है रहस्य!

आर एस एस की खाकी पेंट के बारे में तो आप जानते ही होंगे! लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस देश में भारत जोड़ो यात्रा निकाल रही है। पार्टी के भारत जोड़ो यात्रा के ट्विटर हैंडल से सोमवार को खाकी निक्कर में आग लगी होने की एक तस्वीर ट्वीट की गई। इस तस्वीर के ट्वीट होने के बाद से बीजेपी और संघ कांग्रेस पर आक्रामक हो गए हैं। भाजपा ने कांग्रेस से तुरंत इस ट्वीट और तस्वीर को हटाने की मांग की है। वहीं, कांग्रेस ने कहा कि पुतला जलाना तो लोकतांत्रिक अधिकार है। देश को जलाने वाले प्रतीकात्मक रूप से एक निक्कर के जलते दिखाए जाने पर इतने परेशान क्यों हैं? इस मामले में जो खाकी हाफ पैंट की तस्वीर दिखाई गई है, उसका भी अपना इतिहास है। भले ही अब हाफ पैंट की जगह फुल पैंट आ गई है लेकिन 90 साल तक यह खाकी हाफ पैंट संघ की पहचान रही है।

साल 1925 के विजय दशमी का दिन था। नागपुर में इस दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना की थी। हेडगेवार एक तिलकाइट कांग्रेसी, हिंदू महासभा के राजनेता और नागपुर के सामाजिक कार्यकर्ता बीएस मुंजे के राजनीतिक संरक्षक थे। आरएसएस को बनाने के लिए इसके सदस्यों ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यूरोपीय दक्षिणपंथी समूहों से प्रारंभिक प्रेरणा ली थी। संघ की वेबसाइट के अनुसार संघ की स्थापना के समय खाकी शर्ट, खाकी हाफ पैंट और खाकी टोपी उसका यूनिफॉर्म थी। यानी जिस खाकी पैंट पर आज विवाद उठा है वह, संघ की स्थापना के समय से ही उससे जुड़ी है। कई रिपोर्ट के अनुसार बताया गया कि संघ की स्थापना से बहुत पहले ही हेडगेवार अपने समर्थकों के लिए यूनिफॉर्म तय कर चुके थे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नामचीन कार्यकर्ता एचवी शेषाद्री ने हेडगेवार की जीवनी लिखी है। शेषाद्री के अनुसार जनवरी 1920 में एलवी पराजंपे ने भारत स्वयंसेवक मंडल की स्थापना की थी। इसमें हेडगेवार उनके प्रमुख सहयोगी थे। जुलाई के महीने में कोशिश की गई कि स्वंयसेवक मंडल के 1000-1500 स्वयंसेवियों को तैयार किया जाए। इन्हें नागुपर में होने वाली कांग्रेस की सालाना बैठक में योगदान देने के लिए तैयार करना था। हेडगेवार चाहते थे कि कांग्रेस के अधिवेशन में मंडल के सदस्य दूर से ही पहचान में आएं। इसके साथ ही ड्रेस में अनुसाशन भी झलके। ऐसे में उन्होंने मंडल सदस्यों के लिए खाकी शर्ट, खाकी निकर, खाकी टोपी, लंबे मोजे और जूतों का ड्रेस कोड तैयार था।

हाफ निकर के पीछे वास्तविक मंशा क्या थी इस बात की कोई ठोस जानकारी नहीं है। माना जाता है कि निकर का चुनाव संभवत शारीरिक कसरत को ध्यान में रखकर किया गया हो। वजह चाहे जो भी लेकिन यह सच है कि संघ की स्थापना से 5 साल पहले ही हेडगेवार संघ की यूनिफार्म तय कर चुके हैं। ऐसे में हाफ पैंट आरएसएस का हिस्सा होगा यह 1920 में ही तय हो चुका था। उस समय यूनिफॉर्म में खाकी टोपी भी थी लेकिन पांच साल बाद ही 1930 में खाकी टोपी के बदले काली टोपी कर दिया गया। 1939 में संघ ने अपनी शर्ट का रंग खाकी से बदलकर सफेद कर दिया था। इसके पीछे ब्रिटिश सेना की तरफ से संघ की ड्रेस और उनकी ड्रिल पर लगाई गई पाबंदी थी। बाद में संघ के जूते से लेकर बेल्ट तक में भी बदलाव किया गया। धीरे-धीरे संघ से खाकी रंग काफी हद तक गायब हो गया। बताया जाता है कि संघ में यह बदलाव समय की मांग और परिस्थितियों के अनुसार किए गए थे।

साल 2016 में संघ ने अपनी ड्रेस को लेकर महत्वपूर्ण बदलाव किया था। यह बदलाव इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि संघ की छवि एक ऐसे कठोर और कम लचीले संगठन की रही है, जिसमें सिद्धांतों के अलावा कर्मकांड को भी पत्थर की लकीर समझ जाता है। संघ ने खाकी हाफ पैंट की जगह गणवेश में भूरे रंग की फुल पैंट शामिल करने का फैसला किया था। राजस्थान के नागौर में हुई संघ की सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई ‘अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा’ की तीन दिवसीय सालाना बैठक में यह फैसला किया गया था। हालांकि, आरएसएस के महासचिव भैयाजी जोशी ने कहा था कि इसके चुनने के पीछे कोई कारण नहीं है। हालांकि, माना जाना रहा था कि हाफ पैंट का आकार और रंग युवाओं के बड़े वर्ग तक जुड़ने में अड़चन बना हुआ था। संघ को उम्मीद थी कि ड्रेस बदलने के बाद वे अधिक युवाओं को अपनी ओर आकर्षित कर पाएंगे। उस समय संघ के 90 साल के इतिहास में केवल एक बार इसकी ड्रेस बदली गई थी

 

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