आज हम आपको सबसे बड़ी शहादत की कहानी सुनाने जा रहे हैं! सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी के परिवार की शहादत को आज भी इतिहास की सबसे बड़ी शहादत माना जाता है। छोटे साहिबजादों का स्मरण आते ही लोगों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है और सिर श्रद्धा से झुक जाता है। देश में पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐलान के बाद आज 26 दिसंबर को गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी के साहस को श्रद्धांजलि देने के लिए वीर बाल दिवस पूरे देश-विदेश में मनाया जा रहा है। गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब उस स्थान पर खड़ा है, जहां साहिबजादों ने आखिरी सांस ली। अचानक आनंदपुर साहिब के किले पर हमला कर दिया। गुरु गोबिंद सिंह जी मुगलों से लड़ना चाहते थे, लेकिन अन्य सिखों ने उन्हें वहां से चलने के लिए कहा। इसके बाद गुरु गोबिंद सिंह के परिवार सहित अन्य सिखों ने आनंदपुर साहिब के किले को छोड़ दिया और वहां से निकल पड़े। जब सभी लोग सरसा नदी को पार कर रहे थे तो पानी का बहाव इतना तेज हो गया कि पूरा परिवार बिछड़ गया। बिछड़ने के बाद गुरु गोबिंद सिंह औ दो बड़े साहिबजादे बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह चमकौर पहुंच गए। माता गुजरी, दोनों छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह, बाबा फतेह सिंह और गुरु साहिब के सेवक रहे गंगू गुरु साहिब अन्य सिखों से अलग हो गए। इसके बाद गंगू इन सभी को अपने घर ले गया लेकिन उसने सरहिंद के नवाज वजीर खान को जानकारी दे दी। इसके बाद वजीर खान माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादों को कैद कर लिया।
22 दिसंबर को चमकौर की लड़ाई शुरू हुई जिसमें सिख और मुगलों की सेना आमने-सामने थी। मुगल बड़ी संख्या में थे, लेकिन सिख कुछ ही थे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों में हौसला भरा और युद्ध में डटकर सामना करने को कहा। यह युद्ध अगले दिन भी चलता रहा। युद्ध में सिखों को शहीद होता देखा दोनों बड़े साहिबजादों बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह ने एक-एक कर युद्ध में जाने की अनुमति गुरु साहिब से मांगी। गुरु साहिब ने उन्हें अनुमति दी और उन्होंने एक के बाद एक मुगल को मौत के घाट उतारना शुरू किया। इसके बाद वह दोनों भी शहीद हो गए।
26 दिसंबर को सरहिंद के नवाज वजीर खान ने माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को ठंडा बुर्ज में खुले आसमान के नीचे कैद कर दिया।मुगल बड़ी संख्या में थे, लेकिन सिख कुछ ही थे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों में हौसला भरा और युद्ध में डटकर सामना करने को कहा। यह युद्ध अगले दिन भी चलता रहा। युद्ध में सिखों को शहीद होता देखा दोनों बड़े साहिबजादों बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह ने एक-एक कर युद्ध में जाने की अनुमति गुरु साहिब से मांगी। गुरु साहिब ने उन्हें अनुमति दी और उन्होंने एक के बाद एक मुगल को मौत के घाट उतारना शुरू किया। इसके बाद वह दोनों भी शहीद हो गए। वजीर खान ने दोनों छोटे साहिबजादों को अपनी कचहरी में बुलाया और डरा-धमकाकर उन्हें धर्म परिवर्तन करने को कहा लेकिन दोनों साहिबजादों ने ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ के जयकारे लगाते हुए धर्म परिवर्तन करने से मना कर दिया। वजीर खान ने फिर धमकी देते हुए कहा कि कल तक या तो धर्म परिवर्तन करो या मरने के लिए तैयार रहो।
कहते हैं कि अगले दिन ठंडे बुर्ज में कैद माता गुजरी ने दोनों साहिबजादों को बेहद प्यार से तैयार करके दोबारा से वजीर खान की कचहरी में भेजा।मुगल बड़ी संख्या में थे, लेकिन सिख कुछ ही थे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों में हौसला भरा और युद्ध में डटकर सामना करने को कहा। यह युद्ध अगले दिन भी चलता रहा। युद्ध में सिखों को शहीद होता देखा दोनों बड़े साहिबजादों बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह ने एक-एक कर युद्ध में जाने की अनुमति गुरु साहिब से मांगी। गुरु साहिब ने उन्हें अनुमति दी और उन्होंने एक के बाद एक मुगल को मौत के घाट उतारना शुरू किया। इसके बाद वह दोनों भी शहीद हो गए। यहां फिर वजीर खान ने उन्हें धर्म परिवर्तन करने को कहा, लेकिन छोटे साहिबजादों ने मना कर दिया और फिर से जयकारे लगाने लगे। यह सुन वजीर खान तिलमिला उठा और दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चिनवाने का हुक्म दे दिया और साहिबजादों को शहीद कर दिया। यह खबर जैसे ही माता दादी माता गुजरी के पास पहुंची, उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए।