Friday, November 22, 2024
HomeIndian Newsजानिए प्रतापगढ़ के बाहुबली की अजूबी कहानी!

जानिए प्रतापगढ़ के बाहुबली की अजूबी कहानी!

आज हम आपको प्रतापगढ़ के बाहुबली की कहानी सुनाने जा रहे हैं! प्रतापगढ़ का एक लड़का जिसका नाम राजा था, अब उसे लोग बाहुबली भैया के नाम से जानते हैं! कहते हैं केन्द्र की राजनीति का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही जाता है। जरा सोचिए राजनीति की दृष्टि से कितना अहम हो जाता है ये राज्य और साथ ही यहां के राजनेता। उत्तर प्रदेश के नेताओं का जब भी जिक्र आता है तो अक्सर आंखों के सामने घूमने लगते हैं वो चेहरे जिन्हें सियासत के बाहुबली कहते हैं और इसलिए ऐसे ही नेताओं पर हमने एक सीरीज शुरू की है।’सियासत के बाहुबली’ नाम से चल रही इस सीरीज के लिए हमने भी उत्तर प्रदेश को ही सबसे पहले चुना और अब तक आपके सामने मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद की कहानी ले कर आए। इसी कड़ी में आज हम आपके लिए लाए हैं, कुंवर रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया से जुड़े सारे तथ्य। उनका राजनीतिक जीवन, उनका परिवार, उनसे जुड़े विवादऔर वो मज़ेदार किस्से जो उनकी ज़िंदगी का खास हिस्सा रहे हैं।

हत्या, हत्या की साजिश, किडनैंपिग, लूट और घोटाले जैसे कई मामलों से जुड़ा है जिनका नाम, जेल से जिनका रहा है पुराना नाता, प्रतापगढ़ में सालों से सुनाई देती है जिस नाम की गूंज, वो हैं सियासत के बाहुबली राजा भैया। देश में बेशक राजे-रजवाड़े और रियासतें खत्म हुए सालों बीत चुके हों लेकिन उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ की जनता आज भी कुंवर रघुराज प्रताप सिंह अपना राजा मानकर पूजती है। इस इलाके में सिर्फ और सिर्फ राजा भैया और उनके परिवार की हुकुमत चलती है। अपनी दबंगई से उत्तरप्रदेश की राजनीति में अपनी एक खास जगह बनाने वाले राजा भैया का विवादों से चोली-दामन का साथ रहा। कभी जेल के अंदर से तो कभी जेल के बाहर रहकर, सियासत के इस बाहुबली ने राजनीति में अपना जबरदस्त सिक्का जमाया।

राजा भैया का जन्म 31 अक्टूबर 1967 को कोलकाता में हुआ। राजा भैया के पिता प्रतापगढ़ की भदरी रियासत के उत्तराधिकारी थे, यानी रघुराज प्रताप सिंह चांदी की चम्मच लेकर ही पैदा हुए और दबंगई उनके खून में रही। राजा भैया की तरह ही उनके पिता का कद भी प्रतागढ़ में काफी ऊंचा रहा और वो हमेशा चर्चा में रहे। खासकर इंदिरा गांधी के शासन में उदय प्रताप ने काफी सुर्खियां बंटोरी। दरअसल उदय प्रताप की रियासत यानी प्रतापगढ़, कांग्रेस के पारम्परिक गढ़ रायबरेली से बेहद करीब है और इसलिए इंदिरा गांधी की इस इलाके में खासी दिलचस्पी थी। 1974 में राजा भैया के पिता उदय प्रताप ने अपनी रियासत को एक अलग राज्य घोषित कर दिया। ये बात दिल्ली तक पहुंची, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तुरंत सेना की टुकड़ी प्रतापगढ़ भेज दी। कहते हैं तब से लेकर आज तक राजा भैया के परिवार की कांग्रेस से दूरी ही रही। कांग्रेस से अलगाव की एक अन्य वजह ये भी थी कि उदय प्रताप सिंह आरएसएस से जुड़े हुए थे। हालांकि राजा भैया के दादा बजरंग बहादुर सिंह जो पंत विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति थे और हिमाचल प्रदेश के दूसरे राज्यपाल भी रहे, उनका कांग्रेस से अच्छा तालमेल रहा।

राजा भैया बेशक शाही परिवार से रहे और उनके परिवार की राजनेताओं से हमेशा नजदीकियां भी रहीं लेकिन उनके पिता कभी कोई राजनीतिक पार्टी में शामिल नहीं हुए। राजा भैया ने ही 1993 में परिवार से पहली बार राजनीति में कदम रखा। कहते हैं राजा भैया के जन्म से पहले ही उनके पिता के गुरु देवरहा बाबा ने बेटे के पैदा होने भविष्यवाणी कर दी थी। ध्यान रहे कि इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे कई बड़े नेता देवरहा बाबा के सामने सिर झुकाते थे। राजा उदय प्रताप एक बार अपनी पत्नी के साथ देवरहा बाबा के आश्रम में देवारिया गए थे, तभी उन्होंने उदय प्रताप को ये बताया कि जल्द ही उनके घर एक बेटा जन्म लेगा। राजा भैया का नाम रघुराज प्रताप सिंह भी खुद बाबा ने ही रखा था और बाबा ने ही सबसे पहले उन्हें राजा बुलाना शुरू किया। अपने पिता की तरह राजा भैया भी बाबा देवरहा के अनुयायी रहे हैं। बेशक बाबा ने अपना शरीर त्याग दिया है, लेकिन आज भी राजा भैया अपने किसी बड़े काम से पहले देवारिया में उनके आश्रम ज़रूर जाते हैं।

राजा भैया की पढ़ाई- लिखाई इलाहाबाद से हुई। सबसे पहले नारायणी आश्रम के महाप्रभु स्कूल में उन्होंने दाखिला लिया, बाद में इलाहाबाद के ही स्काउट एंड गाईड स्कूल से उन्होंने आगे की पढ़ाई की। लखनऊ यूनिवर्सिटी से राजा भैया ने ग्रेजुएशन किया। राजा भैया को घुड़सवारी का काफी शौक है इसलिए वो अक्सर खाली वक्त में घुड़सवारी करते रहते हैं। इसके अलावा निशेनाबाजी में भी वो रुचि रखते हैं। सियासत के इस बाहुबली का एक और शौक अक्सर चर्चा में रहा है और वो है एयरक्राफ्ट उड़ाना। कहते हैं एक बार तो वो प्लेन उड़ाते हुए बाल-बाल बच पाए बावजूद इसके उनका ये शौक अब भी कायम है। राजा भैया की शादी बस्ती रियासत की राजकुमारी भानवी देवी से हुई। दोनों के चार बच्चे हैं। दो बेटे, शिवराज सिंह और बृजराज सिंह जबकि दो बेटियां, राघवी और बृजेश्वरी।

राजा भैया के राजनैतिक जीवन की बात करें तो इसकी शुरुआत होती है 1993 से। इसी साल पहली बार राजा भैया ने प्रतापगढ़ की कुंडा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया। ये सीट तब कांग्रेस के नियाज हसन के पास थी। नियाज हसन पांच साल से इस सीट पर जीत दर्ज कर रहे थे लेकिन 26 साल के राजा भैया ने अकेले न सिर्फ नियाज को चुनौती दी बल्की जीत भी दर्ज की।राजा भैया बीजेपी और समाजवादी पार्टी सरकार में मंत्री भी रहे। पहली बार कल्याण सिंह सरकार में वो कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला। उसके बाद एक बार फिर बीजेपी सरकार में 1999 में वो खेल-कूद और युवा कल्याण मंत्री बने। इसी दौरान वो राजनाथ सिंह के बेहद करीब आए और आज भी उन्हें राजनाथ सिंह का खास माना जाता है। 2004 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी रघुराज प्रताप यानी राजा भैया समाजवादी पार्टी से मिल गए और उन्हें खाद्य और रसद मंत्री भी बनाया गया। ये दौर था जब राजा भैया का कद बढ़ता ही जा रहा था। उत्तरप्रदेश में उनकी दबंगई के जलवे थे। एक तरफ वो अपनी सियासी ताकत बढ़ा रहे थे। दूसरी तरफ अपराध से भी नाता खत्म नहीं हो रहा था।

2010 में भी मायावती की सरकार के दौरान ही राजा भैया एक बार फिर जेल की सलाखों के पीछे गए। इस बार उनपर पंचायत चुनाव में उम्मीदवार को धमकाने का आरोप लगा। हालांकि 2011 में फिर वो बाहर आ गए। 2012 में वो अखिलेश सरकार में मंत्री भी बन गए लेकिन एक बार फिर 2013 में उनपर हत्या का आरोप लगा। राजा भैया का नाम प्रतापगढ़ के डीएसपी जिया उल हक के मर्डर में आया। इस घटना के बाद उन्हें मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा। मामले की सीबीआई जांच हुई और सीबीआई ने राजा भैया को क्लीन चिट दे दी लेकिन डीएसपी की पत्नी ने केस को इलाहाबाद हाइकोर्ट में फाइल किया और सीबीआई ने एक बार फिर इस मामले जांच शुरू की। रघुराज प्रताप सिंह पर अब तक 47 केस दर्ज हो चुके हैं। इनमें से कई मामलों में उन्हें क्लीन चिट भी मिल चुकी है, कई मामले अब भी उनपर बने हुए हैं लेकिन बावजूद इसके उनका राजनैतिक कद कभी छोटा नहीं हुआ। 2018 में रघुराज प्रताप सिंह ने जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के नाम से अपनी पार्टी बनाई और 2022 में पहली बार इस पार्टी की तरफ से उम्मीदवार उतरे। राजा भैया की पार्टी को कुंडा के अलावा इस बार बाबागंज की सीट से भी जीत मिली। हर बाहुबली नेता की तरह राजा भैया की भी जबरदस्त फैन फॉलोइंग है। एक वर्ग उन्हें गरीबों का मसीहा मानता है। कुंडा में राजा भैया कई सामाजिक कामों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। राजा भैया का एक जनता दरबार भी लगता है। इसके अलावा लड़कियों का सामुहिक विवाह का आयोजन भी कुंडा में करवाया जाता है।

Disclaimer:

Mojo Patrakar may publish content sourced from external third-party providers. While we make every reasonable effort to verify the accuracy, reliability, and completeness of this information, Mojo Patrakar does not guarantee or endorse the views, opinions, conclusions, or authenticity of content provided by these third-party entities. Such content is presented solely for informational purposes, and it is not intended to substitute professional advice or to serve as a comprehensive basis for decision-making.

Mojo Patrakar expressly disclaims any liability for errors, omissions, or inaccuracies that may arise from third-party content, as well as any reliance readers may place upon it. Users are strongly encouraged to conduct independent verification and consult with qualified professionals as necessary before making any decisions based on information obtained through Mojo Patrakar.

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments