आज हम आपको इम्पेला पम्प डिवाइस के बारे में बताने वाले हैं! महीने भर पहले मुंबई में एक 68 वर्षीय बुजुर्ग को हर्ट अटैक आया। अटैक इतना जबर्दस्त था कि उन्हें अस्पताल के गेट से अंदर पहुंचते-पहुंचते तीन झटके लग गए। करीब तीन दशक से डाइबिटीज के मरीज रहे बुजुर्ग को कार्डियोजेनिक शॉक लगा था। यह ऐसी कंडीशन है जिसमें इंसान का दिल शरीर को पर्याप्त मात्रा में खून पहुंचाने में अचानक असक्षम हो जाता है। बुजुर्ग के दिल की भी खून सप्लाई की क्षमता 85 से 90 प्रतिशत घट गई थी। उनकी नाड़ी काम नहीं कर रही थी और ब्लड प्रेशर इतना कम था कि मशीन भी उसे नहीं माप पा रही थी। ऐसे बुरे हालात से गुजर रहे बुजुर्ग का इलाज हुआ और अब वो अस्तपाल में परिजनों और हॉस्पिटल स्टाफ से बातचीत कर रहे हैं। इतना जरूर है कि बातचीत के दौरान उनकी सांसें उखड़ने लगती हैं। बुजुर्ग अब भी नॉर्मल नहीं हो पाए, लेकिन उनका इलाज कर रहे डॉक्टर गणेश कुमार बताते हैं कि इन बुजुर्ग की तरह इमर्जेंसी वाले ज्यादातर मरीज की जिंदगी नहीं बच पाती है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ये 68 वर्षीय बुजुर्ग की जान कैसे बच गई? सबसे पहले तो बुजुर्ग को अटैक तब आया जब वो डॉक्टर के पास ही जा रहे थे। इस कारण उन्हें तुरंत इलाज मुहैया हो गया। उन्हें तुरंत कैथ लैब ले जाया गया। इस कारण उन्हें जिंदा रखने के लिए हर संभव मेडिकल सपोर्ट मिल गए। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह हुई कि एक छोटी सी डिवाइस इम्पेला की मदद उन्हें मिल गई। इम्पेला संभवतः दुनिया का सबसे छोटा हर्ट पंप है जो बाईं वेंट्रिकल से एओटा से खून को पंप करता है।
वेंट्रिकल दिल का निचला चैंबर होता है जो खून को बाहर भेजता है। एओटा दिल की सबसे बड़ी धमनी है। इम्पेला प्रति मिनट 2.5 से 5 लीटर की पर्याप्त मात्रा में ब्लड पंप कर देता है। इम्पेला की जरूरत तब पड़ती है जब लेफ्ट वेंट्रिकल ठीक से काम नहीं कर पाए जिससे शरीर को उचित मात्रा में ऑक्सिजन की आपूर्ति नहीं मिल पाती है। हर्ट पंप का आविष्कार 1960 के दशक में हुआ जब अमेरिकी विशेषज्ञों ने एक इंट्रा-एओटिक बैलून पंप (IABP) बनाया। 2008 में पहले इस्तेमाल के वक्त इम्पेला प्रति मिनट 2.5 लीटर ब्लड पंप कर पाता था, लेकिन अब उसकी क्षमता बढ़कर प्रति मिनट 5 लीटर तक हो गया है। अभी दुनियाभर में करीब 2.5 लाख मरीजों में इम्पेला का इस्तेमाल किया गया है। इनमें ज्यादातर मरीज पश्चिमी देशों के हैं।
इम्पेला की लागत सामान्य आईएबीपी के मुकाबले 10-20 गुना ज्यादा आती है। अमेरिका में आईएबीपी 1000 डॉलर (करीब 80 हजार रुपये) से कम ही है। भारत में इम्पेला का इस्तेमाल पर 20 लाख रुपये से ज्यादा का खर्च आता है। इस कारण इसका बहुत कम उपयोग होता है। कंपनी के एक अधिकारी ने बताया, ‘पिछले तीन-चार सालों में भारत में करीब 200 इम्पेला का इस्तेमाल हुआ है।’ दक्षिण भारत में कुछ अस्पतालों ने इम्पेला पंप खरीदे हैं। हालांकि, जरूररत पड़ने पर छोटे अस्पताल भी इसकी मांग करते हैं। मुंबई का एलएच हीरानंदनी अस्पताल पश्चिमी भारत का पहला हॉस्पिटल है जिसने इम्पेला पंप खरीदा और वो 68 वर्षीय बुजुर्ग पहले मरीज थे जिन्हें यह लगाया गया।
इम्पेला एंजियोप्लास्टी के दौरान पर्याप्त ब्लड पंप करता रहा। इस कारण बुजुर्ग का ऑपरेशन पूरी तरह सफल रहा। उनकी आर्टरी में जैसे ही इम्पेला को लगाया गया, वह तुरंत प्रति मिनट 4 लीटर खून सप्लाई करने लगा। जैसे ही शरीर को ऑक्सिजन मिलने लगा, डॉक्टरों ने बुजुर्ग की जाम हुई धमनियों में तीन स्टेंट डाल दिए। बुजुर्ग की दो धमनियां पहले ही 100% बंद हो चुकी थीं और तीसरी धमनी 16 नवंबर को पूरी तरह बंद हो गई। एंजियोप्लास्टी के तीन दिनों बाद इम्पेला को बुजुर्ग के दिल से निकाला गया।
सवाल है कि क्या इम्पेला जैसा जीवन रक्षक औजार हर बड़े अस्पताल में होना चाहिए? एक डॉक्टर ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर कहा कि सरकारी अस्पतालों में तो होना चाहिए क्योंकि सरकार का फोकस लागत पर नहीं जिंदगी पर होता है। जैसे ही शरीर को ऑक्सिजन मिलने लगा, डॉक्टरों ने बुजुर्ग की जाम हुई धमनियों में तीन स्टेंट डाल दिए। बुजुर्ग की दो धमनियां पहले ही 100% बंद हो चुकी थीं और तीसरी धमनी 16 नवंबर को पूरी तरह बंद हो गई। एंजियोप्लास्टी के तीन दिनों बाद इम्पेला को बुजुर्ग के दिल से निकाला गया।मंहगे उपकरणों से भी जान बच पाएं तो ज्यादा से ज्यादा जिंदगियां बचाई जानी चाहिए। बहरहाल, मुंबई के उन बुजुर्ग को अगले कुछ महीने और अस्पताल में गुजारने होंगे क्योंकि उनकी सांसे उखड़ रही हैं। इम्पेला ने उनकी जान बचा दी, उम्मीद है डॉक्टरों की देखरेख में वो नॉर्मल भी हो जाएंगे।