आज हम आपको बताएंगे कि ज्ञानवापी पर एएसआई सर्वे की रिपोर्ट क्या कहती है! वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद विवाद को लेकर एक अहम पड़ाव आया है। एएसआई ने पूरे विवादित परिसर के सर्वे किया, जिसकी रिपोर्ट वाराणसी जिला कोर्ट ने हिंदू-मुस्लिम पक्ष को सौंप दी है। रिपोर्ट का हवाला देते हुए हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि ASI ने कहा है कि मौजूदा ढांचे के निर्माण से पहले वहां एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था। रिपोर्ट में मंदिर को 17वीं शताब्दी में तोड़े जाने, मंदिर के खंभों और हिंदू देवी-देवताओं के मलबे मिलने का सबूत मिला है। हालांकि मुस्लिम पक्ष की तीखी प्रतिक्रिया आई है और इसका खंडन किया है। एएसआई सर्वे की रिपोर्ट के बाद भी मुस्लिम पक्ष में इतना विश्वास क्यों है, आइए समझते हैं। ज्ञानवापी मस्जिद समिति ने शुक्रवार को कहा कि मस्जिद का एएसआई सर्वेक्षण सिर्फ एक रिपोर्ट है, कोई फैसला नहीं, जिसके बारे में हिंदू पक्ष के वकीलों का दावा है कि इसे पहले से मौजूद मंदिर के अवशेषों पर बनाया गया था। अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने कहा कि वे एएसआई सर्वेक्षण रिपोर्ट का अध्ययन कर रहे हैं, जिसके बाद वे टिप्पणी करेंगे।
ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली समिति के सचिव मोहम्मद यासीन ने कहा, ‘यह सिर्फ एक रिपोर्ट है, कोई फैसला नहीं। कई तरह की रिपोर्ट हैं। यह इस मुद्दे पर अंतिम शब्द नहीं है।’ उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय जब पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम, 1991 से संबंधित मामले की सुनवाई करेगा तो वे समिति अपने विचार प्रस्तुत करेंगे। अधिनियम कहता है कि अयोध्या में राम मंदिर को छोड़कर किसी भी स्थान का ‘धार्मिक चरित्र’ 15 अगस्त, 1947 को मौजूद स्थान से नहीं बदला जा सकता है। मुस्लिम पक्ष के वकील अखलाक अहमद का कहना था कि इस सर्वे रिपोर्ट में सरसरी निगाह से देखा है कि जो भी फोटो हैं, ये पुराने हैं जो एडवोकेट कमीशन के समय में सामने आ चुके थे। कोई भी नया फोटो नहीं है। बस अंतर इतना ही है कि पहले केवल फोटो खींचकर दिखाए गए थे, अब इनकी नाप-जोख करके लिख दिया गया है। कोई नया सबूत नहीं मिला है।
खुदाई के बारे में उनका कहना था कि खुदाई के लिए उन्हें मना किया गया था। एएसआई के डायरेक्टर ने भी हलफनामा दायर करके कहा था कि खुदाई नहीं की जाएगी। लेकिन उन्होंने मंदिर के पश्चिमी हिस्से में जो मलबा था उसकी सफाई कराई। उसे हमें फायदा यह हुआ कि वहां हमारी जमीन पर दो मजारें थीं वह खुल गईं हैं। उन्होंने दक्खिनी तहखाने में कुछ मिट्टी निकाली है जब कुछ नहीं मिला तो उसी तरह मिट्टी छोड़ दी। हिंदू पक्ष के इस दावे पर कि पश्चिमी दीवार मंदिर की दीवार है, इस पर अखलाक अहमद बोले, ऐसा गलत है। पश्चिमी दीवार में ऐसी कोई मूर्ति नहीं लगी है जिससे कहा जा सके कि वह मंदिर की दीवार है। मुस्लिम पक्ष आगे क्या करेगा यह पूछने पर उन्होंने कहा, पूरी रिपोर्ट पढ़ने पर देखेंगे कि इसमें क्या गलत रिपोर्ट दी गई है। उस पर हम लोग ऑब्जेक्शन दाखिल करेंगे।
जो मूर्तियों और शिवलिंग पाए जाने के फोटो पर उन्होंने कहा, ये कोई बड़ी बात नहीं है। हमारी एक इमारत थी, जिसे हम नॉर्थ गेट या छत्ता द्वार कहते थे उसमें हमारे पांच किराएदार थे। वे लोग मूर्तियां बनाते थे, जो मलबा था वह पीछे की तरफ फेंक देते थे। वही मलबे में मिले हैं, यह कोई अहम सबूत नहीं है। सारी मूर्तियां खंडित हैं, टूटी हुई हैं। कोई ऐसी मूर्ति नहीं मिली जिसे कहा जाए कि भगवान शिव की मूर्ति है। या शिवलिंग मिला हो जिसके आधार पर कहा जा सके कि यह मंदिर है।
एएसआई की 839 पेज की रिपोर्ट में एएसआई की सर्वे रिपोर्ट में ये पाया गया है कि मस्जिद से पहले वहां हिंदू मंदिर था, जो तोड़कर मस्जिद बनाई गई। एएसआई ने ये पाया है कि हिन्दू मंदिर का स्ट्रक्चर 17वीं शताब्दी में तोड़ा गया है और मस्जिद बनाने में मलबे का उपयोग किया गया है। दो तहखानों में हिन्दू देवी-देवताओं का मलबा मिला है। एएसआई की रिपोर्ट में ये पाया गया है कि मस्जिद की पश्चिमी दीवार एक हिन्दू मंदिर का भाग है। पत्थर पर फारसी में मंदिर तोड़ने में आदेश और तारीख मिली है। महामुक्ति मंडप लिखा पत्थर भी मिला है। विष्णु शंकर जैन ने कहा कि वजू खाने के सर्वे के लिए मांग करेंगे।


