आज हम आपको जदयू के पूर्व सांसद धनंजय सिंह के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं! उत्तर प्रदेश की राजनीति में धनंजय सिंह का नाम बाहुबली नेताओं की श्रेणी में आता है। छात्र राजनीति से पूर्वांचल के बाहुबलियों के बीच अपनी अलग जगह बनाने वाले धनंजय सिंह अब तक कानून की गिरफ्त में नहीं आ पाए थे। 33 साल पहले उन पर पहली बार दर्ज हुआ। हालांकि, अब पहली बार अपहरण केस में सजा का ऐलान हुआ है। वह भी तब, जब गवाह मुकर गए। पुलिस की जांच और साक्ष्यों के आधार पर धनंजय को कोर्ट ने दोषी करार दिया।बाहुबली धनंजय सिंह की कहानी फिल्मी लगती है। कभी पूर्वांचल के अपराध की दुनिया में बड़े नाम को टक्कर देते वे दिखाई दिए। अपनी अलग जगह बनाई। वहीं, पुलिस से बचने के लिए उन्होंने अपनी मौत तक की खबर फैला दी थी। उनकी तीन शादियों का किस्सा भी कुछ अलग ही है। धनंजय सिंह अपने नाम और काम के लिए खासे चर्चित रहे हैं। लोगों के डर का माहौल बनाने वाले धनंजय ने जब राजनीति में कदम रखा तो अपने दम पर जौनपुर की राजनीति को कंट्रोल किया। लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर धनंजय तैयारियों में जुटे थे। लेकिन, मई 2020 के नमामि गंगे प्रोजेक्ट मैनेजर अपहरण केस में उनके खिलाफ सजा का ऐलान कर दिया गया। धनंजय को जौनपुर एमपी एमएलए कोर्ट की ओर से 7 साल की सजा सुनाई गई है। इसके अलावा उन पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। कोर्ट के आदेश के बाद धनंजय के चुनाव लड़ने का सपना टूटता दिख रहा है। धनंजय सिंह का जन्म 16 जुलाई 1975 को कोलकाता में हुआ था। जन्म के कुछ साल बाद पूरा परिवार जौनपुर आ गया। वर्ष 1990 में 10वीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान महर्षि विद्या मंदिर के शिक्षक गोविंद उनियाल की हत्या हो गई। इस हत्या मामले में धनंजय सिंह का नाम आया था। 12वीं में पहुंचे तो एक और युवक की हत्या हो गई। फिर से धनंजय सिंह का नाम आया। पुलिस ने पकड़ लिया। धनंजय सिंह ने जेल में रहते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी। जेल से ही उन्होंने तीन परीक्षाएं दी। स्कूली शिक्षा के बाद धनंजय सिंह का दाखिला लखनऊ यूनिवर्सिटी में हुआ। लखनऊ यूनिवर्सिटी में धनंजय की अभय सिंह से दोस्ती हो गई। यहां से उनकी राजनीति की शुरुआत हुई।यूनिवर्सिटी में धनंजय सिंह की निकटता अभय सिंह, बबलू सिंह और दयाशंकर सिंह बढ़ गई। लखनऊ यूनिवर्सिट में इसे ठाकुरवाद कहा जाने लगा। यूनिवर्सिटी में उन्होंने बर्चस्व बढ़ाना शुरू किया। इसके बाद ठेकों में दखलअंदाजी शुरू हुई। धनंजय सिंह की यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान उनकी दबंगई चर्चा में आ गई। हबीबुल्ला हॉस्टल केंद्र था। उनका नाम अपराध की घटनाओं में जुड़ने के बाद हॉस्टल चर्चा में आने लगा। चाकूबाजी, किडनैपिंग से लेकर गोलीबारी तक की घटनाओं में धनंजय सिंह का नाम जुड़ने लगा।
धनंजय सिंह ने यूपी के अपराध की दुनिया में वर्चस्व बनाने वालों को रेलवे के ठेकों में हाथ आजमाता देखा तो वे भी इसमें कूद पड़े। रेल ठेकों को मैनेज करने में दखल देना शुरू किया। उसी समय गुंडा टैक्स की चर्चा होने लगी। वर्ष 1997 तक धनंजय सिंह पर 12 मुकदमे दर्ज हो चुके थे। पीएचईडी विभाग के इंजीनियर गोपाल शरण श्रीवास्तव की हत्या के बाद उन पर साजिश का आरोप लगा। धनंजय फरार हो गए और 50 हजार रुपये की इनामी घोषणा हुई।
धनंजय सिंह ने पुलिस की फाइल से अपना नाम गायब कराने के लिए बड़ा खेल खेला। यह खेल ऐसा था कि पुलिस रिकॉर्ड में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। दरअसल, 17 अक्टूबर 1998 को भदोही- मिर्जापुर रोड पर स्थित एक पेट्रोल पंप पर लूट की सूचना आई। पुलिस ने तत्परता दिखाई और धनंजय सिंह को गिरफ्तार किया। इसके बाद पुलिस ने दावा किया कि धनंजय सिंह वहां से फरार हो रहे थे। इसी दौरान उन्हें मार गिराया गया। हालांकि, बाद में मामला खुला। धनंजय जीवित पाए गए तो एनकाउंटर पर सवाल खड़ा हुआ। जांच में पाया गया कि एनकाउंटर में सपा कार्यकर्ता ओम प्रकाश यादव को मार गिराया गया था। सपा ने भाजपा के खिलाफ सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन शुरू कर दिया। मानवाधिकार आयोग की ओर से गठित जांच टीम ने बड़ी गड़बड़ी पाई। जांच आयोग की रिपोर्ट के बाद 34 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड किया गया। उनके खिलाफ केस दर्ज किया गया।
धनंजय सिंह की राजनीतिक मैदान में एंट्री भी अलग ही प्रकार से हुई। दरअसल, जौनपुर के क्षेत्र में एक समय बाहुबली विनोद नाटे का वर्चस्व था। विनोद नाटे राजनीतिक मैदान में एंट्री मारने वाला था। हालांकि, उसकी रोड एक्सिडेंट में मौत हुई और धनंजय सिंह की किस्मत खुल गई। नाटे को क्षेत्र के लोग का समर्थन मिल रहा था। उसकी मौत से लोग दुखी हुए थे। एक सहानुभूति की लहर क्षेत्र में थी। इसका फायदा धनंजय सिंह ने उठा लिया। राजनीति के मैदान में एंट्री मारी। यूपी चुनाव 2002 में रारी विधानसभा से चुनावी मैदान में उतरे। जीत दर्ज कर विधायक बन गए। विधानसभा चुनाव में जीत के बाद धनंजय ने अपनी छवि बदलनी शुरू की। वे गरीबों, दबे- कुचलों की मदद करने लगे। क्षेत्र में उनकी छवि रॉबिनहुड वाली बनती गई।
अभय सिंह और धनंजय सिंह के बीच अच्छी दोस्ती थी, लेकिन बाद में दोनों के बीच अनबन शुरू हो गई। यूपी चुनाव 2002 में विधायक बनने के करीब 8 माह बाद वाराणसी के पास धनंजय सिंह के काफिले पर हमला हुआ। इस हमले का आरोप अभय सिंह पर लगाया गया। लखनऊ यूनिवर्सिटी में साथ रहने वाले अभय सिंह और धनंजय सिंह के बीच इस घटना ने दरार पैदा की। टकसाल सिनेमा के पास धनंजय के काफिले पर गोलीबारी के बाद दोनों दोस्त एक प्रकार से दुश्मन बन गए। मामले की प्राथमिकी दर्ज कराई गई। धनंजय ने इसमें अभय सिंह को आरोपी बनाया। इसके बाद दोनों अलग हो गए।
धनंजय सिंह ने पहली बार 2002 में निर्दलीय जीत दर्ज की थी। यूपी चुनाव 2007 में निषाद पार्टी के टिकट से चुनाव लड़े और जीते। हालांकि, मायावती के सत्ता में आने के बाद उन्होंने वर्ष 2008 में बसपा ज्वाइन कर लिया। मायावती ने उन पर भरोसा जताते हुए वर्ष 2009 में जौनपुर से लोकसभा सीट से प्रत्याशी बना दिया। धनंजय ने लोकसभा चुनाव जीत कर पहली बार संसद तक का सफर तय किया। हालांकि, हालांकि, इसके बाद धनंजय कोई चुनाव नहीं जीत पाए। वर्ष 2011 में मायावती ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण धनंजय को पार्टी से बर्खास्त कर दिया। यूपी चुनाव 2012 में पूर्व पत्नी जागृति सिंह को उतारा। हालांकि, सपा के पारसनाथ यादव ने उन्हें साढ़े 31 हजार वोटों से हराया। जागृति को इस चुनाव के बाद नौकरानी हत्याकांड में गिरफ्तार कर लिया गया। धनंजय पर सबूत मिटाने का आरोप लगा। इस घटना के बाद जागृति और धनंजय का तलाक हो गया।लोकसभा चुनाव 2014 में धनंजय सिंह निर्दलीय उतरे। मोदी लहर में केवल 64 हजार वोट पा सके। यूपी चुनाव 2017 में निषाद पार्टी ने एक बार फिर उन्हें मल्हनी सीट से उम्मीदवार बनाया। लेकिन, इस बार उन्हें पारसनाथ यादव के हाथों हार झेलनी पड़ी। पारसनाथ की मौत के बाद वर्ष 2020 में उप चुनाव हुआ। पारसनाथ के बेटे लकी यादव ने भी धनंजय को हराया। यूपी चुनाव 2022 में भी धनंजय मल्हनी से जीत नहीं दर्ज कर पाए। लोकसभा चुनाव 2024 में वे एक बार फिर निर्दलीय उतरने की तैयारी में थे। कैंपेन भी लॉन्च किया था। लेकिन, अब सात साल की सजा के ऐलान के बाद मुश्किल बड़ी होगी।
15 फरवरी 2022 को एसटीएफ ने धनंजय सिंह पर लगी गैर जमानती धाराओं को हटाते हुए बड़ी राहत दे दी। उन पर जमानती धाराओं के तहत आरोप निर्धारित किया गया। इसके बाद वे 17 फरवरी 2022 धनंजय सिंह ने जनता दल यूनाइटेड मल्हनी सीट पर फिर से नामांकन किया। हालांकि जीत दर्ज कर पाने में कामयाबी नहीं मिली। सरकार से राहत के बाद एक बार फिर वे जौनपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवारी पेश कर रहे थे। एनडीए से वे उम्मीदवारी की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन अब एमपी- एमएलए कोर्ट का आदेश उन पर आफत बन कर आया है। 2020 के प्रोजेक्ट मैनेजर अपहरण केस में उनके खिलाफ विशेष जज ने सात साल की जेल और 50 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। इस प्रकार धनंजय सिंह एक बार फिर सलाखों के पीछे हो गए हैं। धनंजय सिंह ने तीन शादियां की हैं। यह मामला भी खूब चर्चा में रहा है। पॉलिटिकल साइंस से एमए की डिग्री हासिल करने वाले धनंजय सिंह ने पूर्वांचल में अपनी धाक जमाई थी। धनंजय की पहली शादी 2006 में हुई थी। उनकी पहली पत्नी का नाम मीनू था। मीनू का बाद में निधन हो गया। इसके बाद धनंजय ने वर्ष 2009 में डॉ. जागृति सिंह से शादी की। धनंजय और जागृति बाद में अलग हो गए। वर्ष 2017 में धनंजय ने श्रीकला रेड्डी से तीसरी शादी की। उनकी यह शादी खूब चर्चा में रही है।