Wednesday, September 18, 2024
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जानिए कौन थी मतांगिनी हाजरा?

आज हम आपको वीरांगना मतांगिनी हाजरा की अनकही कहानी सुनाने जा रहे हैं! देश में तिरंग जिस शान से लहराता है, उसे ऊंचा रखने के लिए कई क्रांतिकारियों ने अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया। देश में ऐसे कई स्वतंत्रता सेनानी हुए जिन्होंने देश की आजादी और तिरंगे की शान के लिए अंग्रेजों को हिलाकर रख दिया। अपनी जान तक तक दे दी लेकिन उनका नाम गुमनामी के अंधेरे में खो गए। एक ऐसा ही नाम था मतांगिनी हाजरा, 73 साल की उम्र में इस वीर महिला ने जो करिश्मा कर दिया वो बिरले ही कर पाते हैं। वीर मतांगिनी का जन्म 19 अक्टूबर 1870 को पश्चिम बंगाल के मेदनीपुर जिले के तमलूक गांव के एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। मतांगिनी का जीवन बेहद कष्टों से बीता। जब वह बहुत छोटी थीं तभी उनकी शादी 60 साल के एक बुजुर्ग त्रिलोचन हाजरा से कर दी गई। वह महज 18 साल की उम्र में ही विधवा हो गईं। इसके बाद उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी राष्ट्र और दूसरों की सेवा करते हुए बिताई। 1905 में मतांगिनी ने देश की आजादी के आंदोलनों में बतौर गांधीवादी के तौर पर हिस्सा लेना शुरू कर दिया। मिदनापुर वैसे भी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बड़ा मशहूर रहा था। यहां महिला क्रांतिकारियों ने बड़े पैमाने पर आजादी की लड़ाई में भाग लिया था। मतांगिनी यहां की सबसे मशहूर स्वतंत्रता सेनानी थीं। हालांकि, एक सच ये भी है कि इनके बारे में किताबों में उतनी जानकारी उपलब्ध नहीं है। 1923 में मतांगिनी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लिया और नमक कानून को तोड़ा। बाद में अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। रिहाई के बाद भी उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई जारी रखी। इसके बाद वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक्टिव सदस्य बन गईं। एक सच्चे गांधीवादी की तरह उन्होंने खादी पहनना शुरू कर दिया। उन्हें कई बार जेल भेजा गया था।

1933 में मतांगिनी सेरमपोर में कांग्रेस के सम्मेलन में हिस्सा लिया था। पुलिस ने उनपर लाठीचार्ज कर दिय था।हालांकि, एक सच ये भी है कि इनके बारे में किताबों में उतनी जानकारी उपलब्ध नहीं है। 1923 में मतांगिनी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लिया और नमक कानून को तोड़ा। बाद में अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। रिहाई के बाद भी उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई जारी रखी। इसके बाद वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक्टिव सदस्य बन गईं। एक सच्चे गांधीवादी की तरह उन्होंने खादी पहनना शुरू कर दिया। उन्हें कई बार जेल भेजा गया था। इसी साल बंगाल के गर्वनर जॉन एंडरसन तमलूक आए लेकिन तमाम सुरक्षा के बावजूद मतांगिनी गर्वनर को काला झंडा दिखाने में कामयाब हो गईं और गर्वनर के डायस के पास जाकर काला झंडा लहरा दिया। इसके कारण मतांगिनी को 6 महीने की जेल की सजा झेलनी पड़ी थी।

अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कांग्रेस ने मेदनीपुर जिले में कई पुलिस स्टेशन और अन्य सरकारी कार्यालयों पर कब्जा करने की योजना बनाई। 73 साल की मतांगिनी ने 6 हजार के आंदोलनकारियों का नेतृत्व करते हुए तमलूक पुलिस स्टेशन कब्जाने के लिए निकलीं। जैसे ही उनका प्रदर्शन शहर के बाहर पहुंचा ब्रिटिश सैनिकों ने उन्हें रुकने का आदेश दिया। लेकिन मतांगिनी ने अंग्रेज सैनिकों के आदेश को इग्नोर करते हुए आगे बढ़ना जारी रखा।हालांकि, एक सच ये भी है कि इनके बारे में किताबों में उतनी जानकारी उपलब्ध नहीं है। 1923 में मतांगिनी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लिया और नमक कानून को तोड़ा। बाद में अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। रिहाई के बाद भी उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई जारी रखी। इसके बाद वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक्टिव सदस्य बन गईं। एक सच्चे गांधीवादी की तरह उन्होंने खादी पहनना शुरू कर दिया।

उन्हें कई बार जेल भेजा गया था।हालांकि, एक सच ये भी है कि इनके बारे में किताबों में उतनी जानकारी उपलब्ध नहीं है। 1923 में मतांगिनी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लिया और नमक कानून को तोड़ा। बाद में अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। रिहाई के बाद भी उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई जारी रखी। इसके बाद वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक्टिव सदस्य बन गईं। एक सच्चे गांधीवादी की तरह उन्होंने खादी पहनना शुरू कर दिया। उन्हें कई बार जेल भेजा गया था। वो जैसे ही आगे बढ़ीं, अंग्रेज सैनिक ने उन्हें गोली मार दी। लेकिन उन्होंने आगे बढ़ना जारी रखा और अंग्रेज सैनिकों को भीड़ की तरफ गोली नहीं चलाने को कहा। लेकिन इस दौरान उनपर अंग्रेज सैनिकों ने लगातार फायरिंग की। इस दौरान वह लगातार वंदे मातरम् का नारा लगाती रहीं और कांग्रेस झंडा पकड़े ही देश के लिए बलिदान हो गईं। 1977 में बंगाल सरकार ने मतांगिनी की याद में कोलकाता में एक मूर्ति का निर्माण किया था।

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