जानिए कौन थे वीर नायक तुकाराम?

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आज हम आपको देश के वीर नायक तुकाराम की कहानी सुनाने जा रहे हैं! 26 नवंबर 2008 के दिन मुंबई की डीबी मार्ग पुलिस के पास करीब रात 10 बजे एक खबर आई कि शहर में दो आतंकी एक सिल्वर कलर की स्कॉडा कार में सवार होकर आगे बढ़ रहे हैं। ये खबर मिलते ही डीबी मार्ग पुलिस की 15 पुलिसवालों की टीम मरीन ड्राइव पर बैरिकेडिंग के लिए आगे बढी। मकसद था उन दो आतंकियों को रोकना जो मुंबई को दहलाते हुए आगे बढ़ रहे थे। पुलिस वालों की नजरें सामने टिकी हुईं थी। थोड़ी देर बाद वो स्कॉडा कार वहां आकर रुकी। सामने पुलिस फोर्स देखकर कार आगे नहीं बढ़ रही थी। आतंकियों ने दूर से फायरिंग शुरू कर दी। पुलिस ने भी गोलियां चलाई। दोनों तरफ फायरिंग की आवाज से मुंबई की सड़कें गूंज रही थी, और फिर तभी एक सन्नाटा छा गया! ऐसा लगा कार में सवार दोनों आतंकी मारे जा चुके हैं। पुलिस की टीम से एएसआई तुकाराम ओंबले कार की तरफ आगे बढे, ये चेक करने के लिए कि क्या वाकई आतंकी ढेर हो चुके हैं। उनके हाथ में एक लाठी थी। कार के पास पहुंचे तो दोनों आतंकी नीचे गिरे हुए। ऐसा लग रहा था दोनों आतंकी मारे जा चुके हैं, लेकिन जैसे तुकाराम कार में अंदर की तरफ झुके गिरे हुए दो आतंकियों में से एक उठ खड़ा हुआ। ये आतंकी आमिर अजमल कसाब था जो मरने का नाटक कर रहा था। उसके हाथ में एक 47 थी। उसने अपनी बंदूक तुकाराम की तरफ मोड़ दी। पुलिस की पूरी टीम करीब 50 फीट दूर थी।

कसाब ने सीधा एके 47 से तुकाराम पर फायरिंग शुरू कर दी, लेकिन ये वीर जाबांज डरा नहीं। अपनी लाठी से तुकाराम ने कसाब पर हमला किया। पुलिस के डंडे से तुकाराम, आतंकी की एक 47 का डटकर मुकाबला कर रहे थे। शरीर में कसाब गोलियां उतार चुका था, लेकिन तुकाराम ने कसाब की बंदूक की बैरल को अपने हाथ से पकड़ लिया। एक हाथ से बंदूक की बैरल थामी हुई थी दूसरे हाथ से कसाब पर हमला कर रहे थे। पूरे शरीर में गोलियां आर पार हो रही थी, लेकिन उनका हाथ आतंकी के गिरेबान पर था। वो किसी भी कीमत पर इस आतंकी को आगे नहीं बढ़ने देना चाहते थे।

सामने से पुलिस की टीम हमला कर सकती थी, लेकिन मकसद था इस आतंकी को जिंदा पकड़ना और ये मुमकिन हो पाया तुकाराम ओंबले के मजबूत हौसले और वीरता से। जब तक सांस चलती रही तुकाराम ने कसाब को नहीं छोड़ा। कई गोलियां खाने के बाद भी 45 साल के तुकाराम इस 20 साल के आतंकी को बुरी तरह से पस्त कर दिया। तुकाराम की वजह से ही कसाब जिंदा गिरफ्तार हो पाया और ये साबित हो पाया कि ये हमला पाकिस्तान ने करवाया था। मुंबई को दहलाने की साजिश पाकिस्तान ने रची थी।

तुकाराम इस हमले में शहीद हो गए, लेकिन देश के नौजवानों के लिए वीरता मिसाल कायम कर गए। मुंबई से करीब 284 किलोमीटर दूर केदम्ब गांव के रहने वाले तुकाराम ओंबले। बचपन से ही पुलिस या सेना में नौकरी करने का जज्बा था। बिजली विभाग में नौकरी करते थे, लेकिन साल 1979 में पुलिस में नौकरी का मौका मिला तो बस देश सेवा के लिए तैयार हो गए और वक्त पड़ने पर अपनी जान भी देश के लिए न्यौछावर कर दी। तुकराम को उनकी वीरता के लिए अशोक चक्र दिया गया था। 26 नवंबर 2008 की ये रात बेहद भयानक थी। कसाब के अलावा पाकिस्तान के 9 और आतंकी समुद्र के रास्ते देश में घुस आए थे। कसाब उसके साथी मुंबई में अलग-अलग जगहों पर मौत का तांडव कर रहे थे। खुद कसाब और उसका दूसरा साथी इस्मायल सीएसटी पर कई यात्रियों को गोलियों से भूनकर आगे बढ़े थे। तुकाराम ने अगर कसाब को उस जगह पर जिंदा न पकड़ा होता तो पता नहीं ये आतंकी और क्या-क्या करता।

तुकाराम इस हमले में शहीद हो गए, लेकिन देश के नौजवानों के लिए वीरता मिसाल कायम कर गए। मुंबई से करीब 284 किलोमीटर दूर केदम्ब गांव के रहने वाले तुकाराम ओंबले। बचपन से ही पुलिस या सेना में नौकरी करने का जज्बा था। बिजली विभाग में नौकरी करते थे, लेकिन साल 1979 में पुलिस में नौकरी का मौका मिला तो बस देश सेवा के लिए तैयार हो गए और वक्त पड़ने पर अपनी जान भी देश के लिए न्यौछावर कर दी। तुकराम को उनकी वीरता के लिए अशोक चक्र दिया गया था। टीम एनबीटी स्वतंत्रता दिवस पर इस वीर नायक को नमन करती है।