वर्तमान में अब हर जगह मेडिकल की पढ़ाई हिंदी भाषा में की जा रही है! मध्य प्रदेश में देश में पहली बार हिंदी में एमबीबीएस के पाठ्यक्रम की शुरुआत की गई है। इसके अलावा हिंदी में चिकित्सा शिक्षा प्रदान करने के लिए मध्यप्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत एमबीबीएस प्रथम वर्ष की तीन हिंदी पुस्तकों एनाटॉमी, फिजियोलॉजी एवं बायो केमिस्ट्री का विमोचन भी हुआ है। ऐसे में देशभर में इस बात को लेकर चर्चा शुरू हो गई है कि देश में हिंदी में मेडिकल और टेक्निकल विषयों की पढ़ाई कितनी कारगर और उपयोगी हो पाएगी। इसका क्या फायदा होगा? इसमें क्या समस्या आएगी?
देश में मेडिकल और टेक्निकल की पढ़ाई की हिंदी में जरूरत क्यों हैं। इस सवाल के जवाब में अनिल जोशी का कहना है कि हमारे देश में आजादी में के 75 साल बाद भी डॉक्टर, वकील, चार्टड अकाउंटेंट या कोई अन्य हो। अगर उसकी अंग्रेजी में दक्षता नहीं है तो वह यह रोजगार नहीं हासिल कर सकता है। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि मैकाले शिक्षा पद्धति के लागू होने के बाद भारतीय भाषाओं का क्षय होता चला गया। उन्होंने कहा कि देश में हिंदी में मेडिकल भाषा में पढ़ाई गेमचेंजर है। यह इस देश की दिशा बदल देगी।
केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष ने हिंदी में मेडिकल और टेक्निकल विषयों की पढ़ाई के फायदों पर भी जवाब दिया। अनिल जोशी ने कहा कि हमारे यहां अंग्रेजी की जानकारी को बौद्धिकता का पर्याय मान लिया गया है जबकि ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि दुनिया के 20 बड़े देश जो प्रौद्योगिकी की दृष्टि से संपन्न हैं, जिनकी जीडीपी अच्छी है, उनमें से 16 अपनी भाषा में मेडिकल, इंजीनियरिंग भाषा की पढ़ाई कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर ये लोग अपनी भाषा में काम कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं।
एमबीबीएस की परीक्षा का जिक्र करते हुए कहा कि अंग्रेजी हमारे देश में प्रतिभा के सामने बाधा बन कर खड़ी हो गई थी उसे दूर करने में यह मदद करेगा। हिंदी में मेडिकल परीक्षा शुरू करने में देरी के सवाल पर अनिल जोशी ने कहा कि यह नीतिगत फैसला था। उन्होंने कहा कि विचार के स्तर पर, विषयों के स्तर पर पहले भी कई बात चर्चा हुई थी। व्यवहार और प्रतिबद्धता के कारण ऐसा नहीं हो पाया लेकिन आज प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने ऐसी प्रतिबद्धता दिखाई है।
सरकार के इस कदम से उन युवाओं के मन की एक बड़ी साध पूरी हो सकेगी जो इन विषयों को पढ़कर प्रफेशनल डॉक्टर और इंजीनियर बनना तो चाहते हैं पर, अंग्रेज़ी भाषा पर पकड़ न होने के कारण उनके सपनों पर कुठाराघात हो जाता है। साथ ही उभरते युवा, मन मसोसकर रह जाते हैं।केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष ने हिंदी में मेडिकल और टेक्निकल विषयों की पढ़ाई के फायदों पर भी जवाब दिया। अनिल जोशी ने कहा कि हमारे यहां अंग्रेजी की जानकारी को बौद्धिकता का पर्याय मान लिया गया है जबकि ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि दुनिया के 20 बड़े देश जो प्रौद्योगिकी की दृष्टि से संपन्न हैं, जिनकी जीडीपी अच्छी है, उनमें से 16 अपनी भाषा में मेडिकल, इंजीनियरिंग भाषा की पढ़ाई कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि अगर ये लोग अपनी भाषा में काम कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं। अब ये युवा अपनी भाषा में इन गूढ़ विषयों को जब पढ़ेंगे तो आसानी से उनमें वर्णित बातों को न सिर्फ तुरन्त समझ सकेंगे बल्कि अंग्रेज़ी भाषा से अजनबियों-सा रिश्ता होने के कारण जो विषय उन्हें अब तक हौआ लगा करते थे।एमबीबीएस की परीक्षा का जिक्र करते हुए कहा कि अंग्रेजी हमारे देश में प्रतिभा के सामने बाधा बन कर खड़ी हो गई थी उसे दूर करने में यह मदद करेगा। हिंदी में मेडिकल परीक्षा शुरू करने में देरी के सवाल पर अनिल जोशी ने कहा कि यह नीतिगत फैसला था। उन्होंने कहा कि विचार के स्तर पर, विषयों के स्तर पर पहले भी कई बात चर्चा हुई थी। व्यवहार और प्रतिबद्धता के कारण ऐसा नहीं हो पाया लेकिन आज प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने ऐसी प्रतिबद्धता दिखाई है।अनिल जोशी ने कहा कि हमारे यहां अंग्रेजी की जानकारी को बौद्धिकता का पर्याय मान लिया गया है जबकि ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि दुनिया के 20 बड़े देश जो प्रौद्योगिकी की दृष्टि से संपन्न हैं, जिनकी जीडीपी अच्छी है, उनमें से 16 अपनी भाषा में मेडिकल, इंजीनियरिंग भाषा की पढ़ाई कर रहे हैं। उन विषयों के गहरे से गहरे सन्दर्भो पर अब वे खुद दूसरों से विचार-विमर्श भी कर सकेंगे। लब्बोलुआब यह कि भाषा का कलेवर बदलते ही सबकुछ साफ-साफ और हल्का-हल्का नजर आने लगेगा।