सुंदरवन में 4000 ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने बाघ के हमले में अपने पतियों को खो दिया है! मंतोष मंडल अपनी पत्नी कौशल्या के साथ सुंदरवन टाइगर रिजर्व के मध्य में स्थित पीरखली गाजी वन में केकड़े इकट्ठा थे। अप्रैल 2015 में एक बंगाल टाइगर ने उनकी नाव पर हमला बोल दिया और मंतोष को मार डाला। मंतोष का शव खींचकर बाघ घने जंगल में ले गया और असहाय कौशल्या कुछ न कर सकीं। अपनी आंखों के सामने पति की दर्दनाक मौत ने उन्हें हिलाकर रख दिया लेकिन परिवार चलाने के लिए वह अभी भी जोखिम भरे इलाके में जाकर केकड़े पकड़ती हैं।
सुंदरवन एक जटिल इलाका है। जंगलों में बाघ रहते हैं और दलदल-नदियों में मगरमच्छ का डर। कौशल्या बताती हैं, यहां तक कि दोपहर में भी जब नदी के बीच में नाव होती है तब भी हम बाघों की मौजूदगी को सुन सकते हैं। मानव-पशु के संघर्ष के चलते सुंदरवन में करीब 4,000 विधवाएं हैं जिन्हें टाइगर विडो भी बोलते हैं। इन महिलाओं के पति मछली, केकड़े या शहद इकट्ठा करते वक्त बाघों का शिकार बन गए। कौशल्या की तरह ही गीता मृधा के पति गौतम भी फरवरी 2012 में बाघ का शिकार बन चुके हैं। उनके अलावा एकादशी सरदार भी हैं।
अब तक इन विधवाओं को कोई सरकारी मदद नहीं मिली थी लेकिन अब उम्मीद की एक किरण नजर आई है। फरवरी महीने में कलकत्ता हाई कोर्ट में एक पीआईएल दाखिल की गई है जिसमें टाइगर अटैक के पीड़ितों की आबादी और उनके परिजनों को सरकारी अनुदान के उचित विवरण की मांग की गई।
सुंदरवन में 885 वर्ग किमी का बफर एरिया (पर्यावरण संरक्षण के लिए नामित क्षेत्र) है जबकि कोर एरिया यानी प्राकृतिक क्षेत्र तकरीबन 1,700 वर्ग किमी है। वन विभाग ने बोट लाइंसेस सर्टिफिकेट (बीएलसी) परमिट के साथ बफर एरिया में जीविकोपार्जन की कुछ गतिविधियां जैसे मछली और केकड़े पकड़ना, लकड़ी और शहद इकट्ठा करने की अनुमति दे दी थी। लेकिन कोर एरिया में प्रवेश के लिए जुर्माने का प्रावधान है। साथ ही बाघ के हमले से मौत होने पर मुआवजे का भी कोई प्रावधान नहीं है।
दक्षिणबंगा मतस्यजीवी फोरम के असिस्टेंट सेक्रेटरी अबदार मलिक कहते हैं, ‘हालांकि क्लाइमेट चेंज और मैकेनाइज्ड फिशिंग के चलते गरीब मछुआरों के पास कोर एरिया में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। बफर जोन में नदियों में मछली और केकड़े कम होते जा रहे हैं।’ वह कहते हैं, ‘यहां के लोग बाघ और मगरमच्छ से अपनी जान जोखिम में डालकर कोर एरिया में जाने को मजबूर हैं।’
गौतम की डेथ सर्टिफिकेट में प्राकृतिक मौत का जिक्र किया और पिछले 10 सालों में यह साबित करने में तुली है कि वह बाघ बिधोबा या टाइगर विडो हैं। मनयाबर की विधवा एकादशी के पास भी एक सर्टिफिकेट है जिसमें उनकी मौत की जगह गहरा जंगल बताया गया है लेकिन बाघ के हमले का जिक्र नहीं है।
बिना किसी कागजात के ये महिलाएं 5 लाख रुपये के प्राइवेट और सरकारी मुआवजे के लिए अयोग्य हैं। लेकिन जब डेथ सर्टिफिकेट और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में बाघ के हमले से मौत की पुष्टि है फिर भी मुआवजा पाना आसान नहीं है।
पुष्पा मंडल के पति अर्जुन एक कार्यकर्ता थे जो टाइगर विडो को मुआवजा दिलाने में मदद करते थे। 2019 में उनकी भी टाइगर अटैक से मौत हो गई और शव भी नहीं मिला। पुष्पा ने अपने सारे कागजात तैयार कर लिए क्योंकि वह पेपरवर्क में होने वाली मुश्किलों को जानती हैं। बावजूद इसके उन्हें मुआवजा नहीं मिला और चक्रवात अम्फान और कोविड लॉकडाउन ने उन्हें वित्तीय संकट में डाल दिया।
दक्षिणबंगा मतस्यजीवी फोरम से जुड़े वकील अभिषेक सिकदर ने बताया, ‘फरवरी महीने में दाखिल पीआईएल में टाइगर अटैक पीड़ितों की सही आबादी और उन्हें उचित सरकारी अनुदान दिए जाने की मांग की गई है।’ पश्चिम बंगाल कमीशन फॉर वुमन की चेयरपर्सन लीना गंगोपाध्याय ने कहा, हम पहले इस महीने बाघ बिधोबा गांव का दौरा करेंगे और विस्तृत सर्वे निकालेंगे ताकि हम अपना प्रोजेक्ट उनके साथ शुरू कर सकें।
कार्यकर्ता अमल नायक कहते हैं कि इस मामले में दखल जरूरी है क्योंकि बाघ के हमले के जान जाने पर पूरे परिवार पर विपदा आती है।पश्चिम बंगाल कमीशन फॉर वुमन की चेयरपर्सन लीना गंगोपाध्याय ने कहा, हम पहले इस महीने बाघ बिधोबा गांव का दौरा करेंगे और विस्तृत सर्वे निकालेंगे ताकि हम अपना प्रोजेक्ट उनके साथ शुरू कर सकें। विधवा को तमाम परेशानियों से गुजरना होता है। उनके बच्चों की पढ़ाई रुक जाती है, लड़कियों की कम उम्र में ही शादी हो जाती है और अक्सर वह ट्रैफिकिंग का शिकार हो जाती हैं।