Friday, October 18, 2024
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महाराष्ट्र की राजनीति ने लिया नया मोड़ , सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र की लड़ाई पहुँचा

शिवसेना के नाम पर राजनीति करने वाला शिंदे गुट ठाकरे नाम और हिंदुत्व दोनों को नहीं छोड़ना चाहता है। ऐसे में एकनाथ शिंदे गुट के 38 विधायक राज ठाकरे की पार्टी मनसे में शामिल हो सकते हैं। उसके लिए सबसे आसान यही है कि वह राज ठाकरे की पार्टी मनसे में विलय कर ले।

महाराष्ट्र में पिछले एक सप्ताह से चल रहे सियासी ड्रामे के बीच नए समीकरण बनते दिख रहे हैं। अब खबर है कि शिवसेना का बागी एकनाथ शिंदे गुट राजनीति के नए विकल्प तलाश रहा है। शिवसेना के नाम पर राजनीति करने वाला शिंदे गुट ठाकरे नाम और हिंदुत्व दोनों को नहीं छोड़ना चाहता है। ऐसे में एकनाथ शिंदे गुट के 38 विधायक राज ठाकरे की पार्टी मनसे में शामिल हो सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो एकनाथ शिंदे ने इस मसले पर राज ठाकरे से दो बार फोन पर बातचीत भी की है। भले ही कहा जा रहा हो कि शिंदे ने राज ठाकरे की तबीयत जानने के लिए उन्हें फोन किया था, लेकिन इसकी असली वजह यही बताई जा रही है कि शिंदे गुट मनसे में शामिल होकर राज्य में राजनीति के नए समीकरण गढ़ना चाहता है।

गुपचुप  मुलाकात में तय हो गया था सबकुछ 

रिपोर्ट्स की मानें तो शिंदे गुट का मनसे में विलय दो दिन पहले  देवेंद्र फडणवीस से एकनाथ शिंदे की गुपचुप मुलाकात में ही तय हो गया था। सूत्रों का कहना है कि इस बैठक में देश के गृहमंत्री अमित शाह भी शामिल हुए थे। यहीं से नई रणनीति पर चर्चा हुई थी। हालांकि, भाजपा अभी भी शिंदे गुट के मनसे में विलय को लेकर संशय में है। इसकी वजह राज ठाकरे के तेवर हैं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भले ही एकनाथ शिंदे के पास शिवसेना के 38 बागी विधायकों का समर्थन हो, लेकिन नई पार्टी के रूप में उनको मान्यता मिलना आसान नहीं है। ऐसे में शिंदे गुट राष्ट्रपति चुनाव से पहले इस मसले को हल करना चाहता है। इसलिए, उसके लिए सबसे आसान यही है कि वह राज ठाकरे की पार्टी मनसे में विलय कर ले। ऐसे में उसके पास ठाकरे नाम भी बचा रहेगा और हिंदुत्व का एजेंडा भी।उधर ,

महाराष्ट्र का सियासी संग्राम 7वें दिन सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है। बागी विधायक एकनाथ शिंदे की याचिका पर जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस बीएस पादरीवाला की बेंच अब से कुछ देर में सुनवाई करेगी। शिंदे ने अर्जी में कहा है कि उद्धव सरकार ने बहुमत खो दिया है।

शिंदे का पक्ष हरीश साल्वे और शिवसेना का पक्ष अभिषेक मनु सिंघवी रखेंगे। सुनवाई का लाइव टेलीकास्ट गुवाहाटी में बैठे बागी विधायक भी देख सकेंगे।

​​​​​शिदें गुट के विधायक सुप्रीम कोर्ट क्यों गए

महाराष्ट्र विधानसभा के डिप्टी स्पीकर ने एक नोटिस जारी कर शिवसेना के बागी विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया। इस नोटिस के खिलाफ शिंदे गुट के विधायक सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। बागी विधायकों का तर्क है कि शिवसेना विधायक दल के 2 तिहाई से ज्यादा सदस्य हमारा समर्थन करते हैं। यह जानने के बाद भी डिप्टी स्पीकर ने 21 जून को पार्टी के विधायक दल का नया नेता नियुक्त कर दिया।

विधायकों ने कोर्ट में सुरक्षा का मुद्दा भी उठाया

एक याचिका में विधायकों ने अपने और अपने परिवार की सुरक्षा का मुद्दा भी उठाया है। बागी विधायकों का कहना है कि शिवसेना नेताओं की ओर से उन्हें लगातार धमकियां मिल रही हैं। ऐसे में उन्हें और उनके परिवार को जान का खतरा है। दूसरे पक्ष (शिवसेना) ने न केवल उनके घर-परिवार से सुरक्षा वापस ले ली है, बल्कि बार-बार पार्टी कार्यकर्ताओं को भड़काने की कोशिश की जा रही है।

याचिकाकर्ता के कुछ सहयोगियों की संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचाया गया है। विधायकों की याचिका में कहा गया है कि हमने अभी शिवसेना की सदस्यता नहीं छोड़ी है।

16 विधायकों की ओर से भी दाखिल की गई है अर्जी

भरत गोगावले, प्रकाश राजाराम सुर्वे, तानाजी जयवंत सावंत, महेश संभाजीराजे शिंदे, अब्दुल सत्तार, संदीपन आसाराम भुमरे, संजय पांडुरंग शिरसाट, यामिनी यशवंत जाधव, अनिल कलजेराव बाबर, लताबाई चंद्रकांत सोनवणे, रमेश नानासाहेब बोरनारे, संजय भास्कर रायमुलकर, चिमनराव रूपचंद पाटिल, बालाजी देवीदासराव कल्याणकर, बालाजी प्रहलाद किनिलकर। भरत गोगावले को बागी गुट अपना मुख्य सचेतक नियुक्त कर चुका है।

सुप्रीम कोर्ट में कौन-कौन रख रहा है पक्ष

मामले की सुनवाई के दौरान आज कोर्ट में शिंदे गुट की तरफ से वकील हरीश साल्वे पेश होंगे। वहीं, शिवसेना की ओर से भी वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी दलीलें देंगे। साथ ही, महाराष्ट्र सरकार की ओर से देवदत्त कामत और डिप्टी स्पीकर की ओर से एडवोकेट कपिल सिब्बल कोर्ट में पक्ष रख रहे हैं।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने तुरंत सुनवाई से किया इनकार

एकनाथ शिंदे और बागी विधायकों के खिलाफ दाखिल याचिका पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया है। याचिका में कहा गया है कि बागी विधायकों ने अपने अधिकारिक दायित्वों की उपेक्षा की है। इस पर अदालत ने कहा है कि हम मामले को बाद में देखेंगे।

 

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