नई दिल्ली। केंद्र राजद्रोह कानून की समीक्षा करेगा। इसे लेकर केंद्र ने दूसरा हलफनामा दाखिल किया है। राजद्रोह कानून पिछले काफी सालों से विवादों में रहा है । आरोप लगता आया है कि सरकारें बदले की कार्रवाई करने के लिए इस कानून का इस्तेमाल करती हैं। इस कानून के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी चल रही है। अब केंद्र सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया है कि वो राजद्रोह कानून में बदलाव को लेकर जांच के लिए तैयार है। लेकिन इससे पहले केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में इस कानून का बचाव किया था। केंद्र सरकार की तरफ से अपना ये दूसरा हलफनामा तब दाखिल किया गया है, जब 10 मई को इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। 10 मई को होने वाली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट को ये तय करना है कि मामला 5 जजों की बेंच को भेजा जाए या फिर 7 जजों की बेंच इस मामले पर सुनवाई करेगी. इसके लिए कोर्ट ने केंद्र को अपना पक्ष स्पष्ट करने की बात कही थी। इससे पहले केंद्र ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में राजद्रोह से संबंधित दंडात्मक कानून और इसकी वैधता बरकरार रखने के संविधान पीठ के 1962 के एक निर्णय का बचाव किया था। मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 5 मई को कहा था कि वह 10 मई को इसपर सुनवाई करेगी कि क्या राजद्रोह से संबंधित औपनिवेशिक युग के दंडात्मक कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को बड़ी पीठ के पास भेजा जा सकता है।
कांग्रेस की महाराष्ट्र इकाई ने शुक्रवार को कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में 2014 से 2019 के बीच राजद्रोह के 326 मामले दर्ज किए गए थे। प्रदेश कांग्रेस महासचिव और प्रवक्ता सचिन सावंत ने इस आंकड़े को ट्वीट करते हुए कहा कि केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान 2019 के बाद दर्ज किए गए राजद्रोह के मामलों की संख्या अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है। कांग्रेस नेता ने कहा कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोलने के लिए राजद्रोह के कुल 149 और योगी आदित्यनाथ के खिलाफ बोलने के लिए 144 मामले दर्ज किए गए
केंद्र ने कहा कि राजद्रोह कानून के दुरुपयोगी की घटनाएं कोर्ट के पिछले फैसले पर पुनर्विचार के लिए पर्याप्त उचित कारण नहीं है. दुरुपयोग होना संविधान पीठ के बाध्यकारी फैसले पर पुनर्विचार का कारण नहीं हो सकते. क्योंकि संविधान पीठ द्वारा पहले ही समानता के अधिकार और जीने के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों के संदर्भ में धारा 124A के सभी पहलुओं की जांच की जा चुकी है