द्रौपदी मुरमू की जीत से टेंशन में आए नवीन पटनायक!

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द्रोपति मुर्मू को सबसे पहले समर्थन देने वाले नवीन पटनायक उनकी जीत से टेंशन में आ गए! द्रोपदी मुर्मू देश की 15वीं राष्ट्रपति चुन ली गई हैं। झारखंड की राज्यपाल और ओडिशा के आदिवासी समुदाय से आने वालीं मुर्मू का समर्थन देश के कई प्रदेशों ने किया। जिन राज्यों में बीजेपी या एनडीए की सरकारें थीं, उनके अलावा भी कई विपक्षी सांसदों और विधायकों ने मुर्मू को वोट दिया। एनडीए ने जब द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया था तो सबसे पहले समर्थन देने वाले ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ही थे। लेकिन जब द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति के लिए चुन लिया गया है तो ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक के माथे पर चिंता की लकीरें नजर आ रही हैं। लेकिन इसके पीछे वजह क्या है ?

द्रोपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद ओडिशा की सड़कों को द्रोपदी मुर्मू और नवीन पटनायक के पोस्टरों से पाट दिया गया है। हर पोस्टर पर ऐसा दिखाया जा रहा है कि द्रोपदी मुर्मू और नवीन पटनायक के बीच बरसों से भाई बहन जैसा रिश्ता है। कई तस्वीरों में ये भी बताने की कोशिश की जा रही है कि द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाने के लिए उन्होंने ही राय दी थी। कुल मिलाकर बीजेडी (बीजू जनता दल) को ये लगने लगा है कि बीजेपी इस बहाने उनके राज्य में अपनी सरकार बनाने की कोशिश करेगी। इस कारण से बीजद लोगों को ये समझाने की कोशिश कर रही है कि द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने के लिए सीएम नवीन पटनायक का ज्यादा श्रेय है।

पार्टी में किसका बड़ा रोल? 

बैजयंत पांडा बीजद के बड़े नेता माने जाते थे। 2018 में उन पर पार्टी लाइन से विपरीत काम करने के आरोप में पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। 2019 में पांडा बीजेपी में शामिल हो गए। बीजेपी ने उनको राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद भी दे रखा है। राज्य की सत्ता में पांडा का दखल भी है। बैजयंत पांडा को आगे करके भी बीजेपी राज्य में सत्ता का रास्ता तलाश रही है। बीजेपी के पास जो सबसे बड़ी समस्या है वो ये है कि राज्य में सीएम पद का चेहरा। नवीन पटनायक जैसा साफ छवि का नेता ऐसे चेहरे को टक्कर देने के लिए बीजेपी के पास अभी तक तो कोई चेहरा नहीं है। यही कारण है कि बीजेपी राज्य की सत्ता से दूर है।

मिशन 2024 समझिए

बीजेपी के मिशन 2024 की तैयारियों की बात करेंगे मगर थोड़ा प्लैश बैक में चलकर राजनीतिक हलचलों को समझना पड़ेगा। पहले आपको बता दूं कि 2024 में ही उड़ीसा में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। बीजेपी का पश्चिमी हिस्से में अच्छा खासा राजनीतिक दबदबा है, पिछले कुछ सालों में यही दबदबा पूर्वी हिस्से में भी हुआ है। जहां पर कभी बीजेपी का नामों निशां नहीं होता था वहां पर आज बीजेपी की सरकारें हैं। नॉर्थ ईस्ट तो इसका जीता जागता उदाहरण है। 2017 में उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी। इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी समेत पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, सारे केंद्रीय मंत्री, राज्यों के पार्टी प्रमुख, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर के अलावा 13 बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हुए थे। इस बैठक में ओडिशा में जीत का ब्लू प्रिंट तैयार किया गया था। ये वो साल था जब कि दो बाद यानी की 2019 में राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले थे। अभी भी 2022 है और चुनाव 2024 को होने वाले हैं।

भाजपा ने ओडिशा विधानसभा में न केवल 2014 में 10 सीटों के मुकाबले 2019 में 23 सीटों पर जीत हासिल कर अपनी स्थिति बेहतर की थी। बीजेपी ने सदन में प्रमुख विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस को भी हटा दिया था। नवीन पटनायक की छवि बेहद ईमानदार और जमीनी नेता की तरह है। वो बहुत ही कम लाइम लाइट में आते हैं मगर अपने राज्य की जनता के लिए वो हमेशा उपस्थित रहते हैं। बाकी राज्यों की तरह केंद्र के साथ उनके रिश्ते काफी अच्छे हैं। वो केंद्र के फैसलों पर कोई आपत्तियां जाहिर नहीं करते, न ही किसी का विरोध करते हैं। लेकिन अब जब से मुर्मू को राष्ट्रपति चुन लिया गया है तो सीएम पटनायक को लगने लगा है कि बीजेपी इसी बहाने राज्य की प्रमुख आदिवासी समुदायों बेल्ट वाली सीटें जीत सकती हैं।

हाल ही पंचायत और निकाय चुनावों सहित ओडिशा में लगातार चुनावी हार के बावजूद भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष समीर मोहंती ने कहा कि उनकी पार्टी 2024 के विधानसभा चुनावों में 147 सदस्यीय सदन में 120 सीटें जीतने का प्रयास करेगी। मोहंती ने पार्टी के एक कार्यक्रम के लिए रविवार को भुवनेश्वर के पास एक गांव का दौरा करते हुए कहा कि 2019 के आम चुनावों से पहले पूर्व भाजपा प्रमुख और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा ओडिशा में 120 विधानसभा सीटों को सुरक्षित करने के लिए ‘मिशन 120’ लक्ष्य निर्धारित किया गया था। 2014 में जहां बीजेपी के खाते में सिर्फ एक सांसद आया वहीं 2019 में ओडिशा ने बीजेपी को आठ सांसद दिए, द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर आदिवासियों के बीच भाजपा की संभावित पैठ से नवीन पटनायक चिंता में पड़ गए हैं। राज्य में सत्तारूढ़ दल ने मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को मुर्मू द्वारा राखी बांधने के पोस्टर लगाए हैं। होर्डिंग में उनके स्वागत समारोह के दौरान मुर्मू के भाषण पर भी प्रकाश डाला गया, जिसमें उन्होंने खुद को देवी सुभद्रा और पटनायक की तुलना प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर के बड़े भाई भगवान जगन्नाथ से की। होर्डिंग और सोशल मीडिया अभियान के अलावा बीजद यह बताने की कोशिश कर रही है कि सत्तारूढ़ दल मुर्मू को शीर्ष संवैधानिक पद के लिए चुनने के निर्णय का हिस्सा था।

2019 के आम चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित पांच लोकसभा सीटों में से बीजेपी और बीजेडी ने दो-दो सीटें जीती थीं। बीजद नेताओं ने कहा कि भाजपा के प्रयासों का मुकाबला करने के लिए राज्य सरकार वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) के माध्यम से आदिवासियों को 100 प्रतिशत भूमि अधिकार देने पर जोर दे रही है। हमने लगभग 92 प्रतिशत योग्य आदिवासियों को एफआरए के माध्यम से कवर किया है और बाकी को 2024 के चुनावों से पहले मिशन मोड में कवर करेंगे। हम आदिवासियों और महिलाओं को करीब रखने के लिए नई कल्याणकारी योजनाएं लाने की भी योजना बना रहे हैं।

बीजेपी की राज्यों में सरकार बनाने को लेकर अग्रेसिव पॉलिटिक्स करती है। ओडिशा बीजेपी के रडार में 2019 से आया। जब यहां के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को लगभग 33 फीसदी वोट हासिल हुए। हालांकि इसके लिए लिए बीजेपी ने 2017 से ही प्रयास करना शुरू कर दिया था। अब जब कि 2024 में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव होने वाले हैं इसके लिए बीजेपी ने अपने सारे पैंतरे खोलने शुरू कर दिए हैं। ओडिशा में साल 2000 से बीजद की सरकार है। यानी कि दो दशक से पार्टी यहां पर सत्ता पर है। आवाम भी एक सरकार से ऊबकर भी क्रॉस वोटिंग कर देती है। इसके अलावा बीजेपी अब मुर्मू के सहारे आदिवासी वोटबैंक में सेंध मार देगी। यही कारण है कि सीएम नवीन पटनायक अब टेंशन में आ गए हैं।