बीजेपी ने एक बार फिर अपने बड़े फैसले को लेकर तमाम अटकलों को विराम लगा दिया है। इस फैसले में बीजेपी ने एनडीए के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार जगदीप धनकड को बनाकर एक तीर से कई निशाने लगाए। साथ ही धनकड़ के उम्मीदवार बनने से ना केवल भारतीय जनता पार्टी उपराष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल कर सकती है,बल्कि आने वाले दिनों में उसको राजस्थान चुनाव में भी इसका फायदा देखने को मिल सकता है। लोकसभा और राज्यसभा में बहुमत होने पर बीजेपी ने धनकड़ को उम्मीदवार बनाकर उनका जीतना लगभग तय माना जा रहा है।
यहां यह बात गौरतलब है कि शंकर से पहले बंगाल के गवर्नर थे बंगाल के गवर्नर हते धनकड़ और ममता सरकार में किसी से छुपी नहीं है जहां धन करने ममता के हालिया कुलपति बनने के बिल को मंजूरी ना देकर अपनी शक्तियों को प्रदर्शित किया तो वहीं ममता ने भी धनकड़ को कई बार केंद्र के इशारों पर चलने को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी। वहीं बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने जेपी नड्डा ने धनकड़ को किसान पुत्र बताते हुए मीडिया को संबोधित किया और उन्होंने कहा कि जगदीप धनकड की समझ और ज्ञान से जो मार्गदर्शन होगा वो देश के काम आएगा।
मार्गरेट अल्वा को विपक्ष ने बनया उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार।
मार्गरेट अल्वा का जन्म 14 अप्रैल, 1942 को मैंगलोर कर्नाटक में एक रोमन कैथोलिक फैमिली में हुआ था। उन्होंने बैंगलोर के माउंट कार्मेल कॉलेज से बीए की डिग्री ली। इसके बाद गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से वकालत की डिग्री ली। अल्वा ने 1969 में पॉलिटिकल करियर शुरू किया। वे 1975 से 1977 के बीच कांग्रेस की ज्वाइंट सेक्रेटरी रहीं। इसके बाद 1978 से 1980 तक कर्नाटक से कांग्रेस महासचिव भी रहीं। अल्वा चार बार राज्यसभा की सदस्य भी रहीं।
उपराष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष ने भी अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी है। विपक्षी दलों ने मार्गरेट अल्वा को उपराष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाया है। एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने रविवार को मार्गरेट अल्वा के नाम का ऐलान किया है। बता दें कि मार्गरेट अल्वा एनडीए के उपराष्ट्रपति पद के प्रत्याशी जगदीप धनखड़ की तरह ही राज्यपाल रह चुकी हैं। मार्गरेट अल्वा राजस्थान, गोवा, उत्तराखंड और गुजरात की राज्यपाल रह चुकी हैं।
आईए जाने कैसे होता है।उपराष्ट्रपति का निर्वाचन?
1. उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचकगण द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होता है। उपराष्ट्रपति के पद के लिए किसी व्यक्ति को निर्वाचित किए जाने हेतु निर्वाचकगण में संसद के दोनों सदनों के सदस्य होते हैं।*
2. उपराष्ट्रपति संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होता है। यदि संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का कोई सदस्य उपराष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है, तो यह समझा जाता है कि उसने उस सदन में अपना स्थान उपराष्ट्रपति के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है।
3. कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति होने का पात्र तभी होगा यदि वह-
(क) भारत का नागरिक है;
(ख) पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका है, और
(ग) राज्य सभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए अर्हित है।
अर्थात् उसे भारत का नागरिक होना चाहिए, उसकी आयु 30 वर्ष की होनी चाहिए, उसे उस राज्य या संघ राज्य क्षेत्र में संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का मतदाता होना चाहिए जहां से वह प्रतिनिधित्व करने के लिए निर्वाचित होना चाहता है।
कोई व्यक्ति, जो भारत सरकार के या किसी राज्य सरकार के अधीन या किसी अधीनस्थ स्थानीय प्राधिकरण के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, वह भी इसका पात्र नहीं है।
4. उपराष्ट्रपति की पदावधि की समाप्ति से हुई रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन, पदावधि की समाप्ति से पहले ही पूर्ण कर लिया जाता है। यदि रिक्ति मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से होती है, तब उस रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन, रिक्ति होने के पश्चात् यथाशीघ्र किया जाता है। इस प्रकार निर्वाचित व्यक्ति अपने पद ग्रहण की तारीख से पूरे पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करने का हकदार होता है।
उपराष्ट्रपति के निर्वाचन का अधीक्षण:
भारत का निर्वाचन आयोग उपराष्ट्रपति के पद के लिए निर्वाचन कराता है।
उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित महत्वपूर्ण उपबंध:
1. अगले उपराष्ट्रपति का निर्वाचन निवर्तमान उपराष्ट्रपति की पदावधि की समाप्ति के 60 दिनों के भीतर किया जाना होता है।
2. उपराष्ट्रपति निर्वाचनों को संचालित करने के लिए सामान्यत: नियुक्त निर्वाचन अधिकारी चक्रानुक्रम में संसद के किसी भी सदन का महासचिव होता है। निर्वाचन अधिकारी विहित प्रपत्र में अभ्यर्थियों का नामांकन आमंत्रित करते हुए निर्वाचन के संबंध में इस आशय की सार्वजनिक सूचना जारी करता है और उस स्थान को विनिर्दिष्ट करता है जहां नामांकन पत्र प्रस्तुत किए जाएंगे।
निर्वाचित होने के लिए अर्हित तथा उपराष्ट्रपति के रूप में निर्वाचन के लिए खड़े होने वाले किसी भी व्यक्ति को कम से कम 20 संसद सदस्यों द्वारा प्रस्तावक के रूप में और कम से कम 20 संसद सदस्यों द्वारा समर्थक के रूप में नामित किया जाना अपेक्षित है।
निर्वाचन अधिकारी को नामनिर्देशन पत्र ऐसे स्थान पर व ऐसे समय व तारीख तक प्रस्तुत किये जाने होते हैं जिन्हें सार्वजनिक सूचना में विनिर्दिष्ट किया गया हो। किसी अभ्यर्थी द्वारा या उसकी ओर से अधिकतम चार नामांकन-पत्र प्रस्तुत किए जा सकते हैं या निर्वाचन अधिकारी द्वारा स्वीकार किए जा सकते हैं।
3. उपराष्ट्रपति के रूप में निर्वाचन चाहने वाले अभ्यर्थी को 15,000/- रू. की जमानत राशि जमा करनी होती है। अभ्यर्थी की ओर से दायर नामांकन पत्रों की संख्या चाहे कितनी भी हो, उसे सिर्फ यही राशि जमा करानी होगी।
4. नामांकन पत्रों की संवीक्षा निर्वाचन अधिकारी द्वारा विनिर्दिष्ट तिथि पर अभ्यर्थी व उसके प्रस्तावक या समर्थक तथा विधिवत् प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में की जाती है।
5. कोई भी अभ्यर्थी विनिर्दिष्ट समय के भीतर निर्वाचन अधिकारी को विहित प्रपत्र में लिखित सूचना देकर अपनी अभ्यर्थिता वापस ले सकेगा।
6. निर्वाचन में निर्वाचक के पास उतनी ही वरीयताएं होती हैं जितने अभ्यर्थी होते हैं। अपना मत डालने में, मतदाता को अपने मत-पत्र पर उस अभ्यर्थी के नाम के सामने दिए स्थान पर अंक 1 अभिलिखित करना अपेक्षित है जिसका चयन वह अपनी प्रथम वरीयता के रूप में करता है और इसके अतिरिक्त वह अपने मत-पत्र पर अन्य अभ्यर्थी के नामों के सामने दिए स्थान पर अंक 2,3,4 इत्यादि अभिलिखित करके उतनी परवर्ती वरीयताएं अभिलिखित कर सकेगा जितनी वह चाहता है। मतों को भारतीय अंकों के अंतरराष्ट्रीय रूप में या रोमीय रूप में या किसी भारतीय भाषा के रूप में अभिलिखित किया जाना चाहिए, परन्तु शब्दों में नहीं दर्शाया जाना चाहिए।