भारत में लैंगिक असमानता की वास्तविकता बहुत जटिल और विविध है। लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को न केवल राष्ट्रों के स्वास्थ्य, बल्कि उनके सामाजिक और आर्थिक विकास की कुंजी के रूप में मान्यता दी गई है। इसके लिए अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 15 में महिलाओं की समानता की परिकल्पना, 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधनों ने पंचायत चुनावों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया है और सरकार द्वारा कई योजनाएं और पहल शुरू की गई हैं। इस पहल से मिलता का एक हिस्सा “सुरक्षित मातृत्व आश्वासन सुमन योजना” है।
इस योजना का प्रारंभ गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए किया गया है। इस योजना के द्वारा गर्भवती महिलाओं के प्रसव के दौरान अस्पताल एवं प्रशिक्षित नर्स उपलब्ध की जाती है तथा गर्भवती महिला के प्रसव के 6 महीने पश्चात तक और बीमार नवजात शिशु को निशुल्क स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है और प्रसव के पश्चात होने वाले सभी प्रकार के खर्चे सरकार द्वारा ही उठाए जाते हैं। साथ ही बच्चे और मां को 6 महीने तक निशुल्क दवाइयां भी प्रदान की जाती है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षित मातृत्व की सुविधा प्रदान करना है।
भारत में लैंगिक समानता की दिशा में सरकार द्वारा अब तक की गई विभिन्न पहल
ए कानूनी प्रावधान: समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1973 बिना किसी भेदभाव के समान प्रकृति के समान कार्य के लिए पुरुष और महिला श्रमिकों को समान पारिश्रमिक के भुगतान का प्रावधान करता है। असंगठित क्षेत्र की महिलाओं सहित श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम 2008 बनाया है।
मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 कुछ प्रतिष्ठानों में प्रसव से पहले और बाद में एक निश्चित अवधि के लिए महिलाओं के रोजगार को नियंत्रित करता है और मातृत्व और अन्य लाभों का प्रावधान करता है।
कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम , 2013 अधिनियमित किया गया है, जो सभी महिलाओं को उनकी उम्र या रोजगार की स्थिति के बावजूद कवर करता है और सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में सभी कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ उनकी रक्षा करता है, चाहे संगठित या असंगठित।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14 महिलाओं को उनकी संपत्ति का पूर्ण मालिक बनाती है। पारिवारिक संपत्ति के उत्तराधिकार के संबंध में महिलाओं को समान अधिकार देने के लिए 2005 में अधिनियम में संशोधन किया गया था।
इसी कड़ी में देश के राज्यों की तुलना में भारत में उत्तर पूर्व के राज्य काफी अच्छा प्रदर्शन करते हुए महिलाओं को समानता का अधिकार देने में काफी हद तक अन्य राज्यों को काफी सफल रहे हैं। उत्तरपूर्व में भी विशेष कर के मिजोरम जो महिलाओं को समानता देने में काफी आगया है। ना केवल महिलाओं को अधिकारी,विधायक आदि जैसे प्रतिष्ठित पद समाज में दिए गए बल्कि उन्हें समाज में बराबर का हिस्सेदार भी बनाया गया। बात अगर सरकारी महकमों में कार्य प्रबंधन की करे तो तो मिजोरम में स्त्री पुरुष अनुपात काफी अच्छा है जो पूरे भारत में एक सकारात्मक संदेश देता है। वही उत्तरपूर्वी मिज़ोरम राज्यो में भी महिला समानता और उनको सरकारी विभागों में कार्य प्रबंधन में 70.9 प्रतिशत की दर से सबसे आगे है। वही सिक्किम 48.2 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर है तो मनीपुर 45 प्रतिशत के साथ तीसरे स्थान पर है। ये सब राज्य महिला पुरुष के कार्य प्रबंधन में अनुपात को दर्शाते हुए पूरे देश को महिलाओ के प्रति समानता लाने का संदेश दे रहे है।
आपको बता दे की ये आंकड़े जुलाई 2020-जून 2021 के पीरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) से हुआ है।
सरकारी सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक महिला प्रबंधकों के मामले में भी मिजोरम टॉप पर है और 40.8 फीसदी मैनेजर्स महिलाएं हैं। मिजोरम के बाद महिला मैनेजर्स की सूची में 32.5 फीसदी के साथ सिक्किम और 31 फीसदी के साथ मेघालय का नंबर है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। शिक्षण संस्थानों तक लड़कियों की पहुँच लगातार बढ़ रही है। एक दशक पहले हुए सर्वेक्षण में शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी 55.1 प्रतिशत थी जो अब बढ़ कर 68.4 तक पहुंच गयी है। यानी इस क्षेत्र में 13 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर्ज की गयी है।
बाल विवाह की दर में गिरावट को भी महिला स्वास्थ्य और शिक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। कानूनन अपराध घोषित किये जाने तथा सामाजिक तौर पर लगातार जागरूकता फैलाने के बावजूद बाल विवाह का चलन अब भी बरकरार है।
वैसे, संतोष की बात है कि इसमें गिरावट आ रही है. 18 वर्ष से कम उम्र में शादी 2005-06 में 47.4 प्रतिशत से घट कर 2015-16 में 28.8 रह गयी है। इस कमी का सीधा फायदा महिला स्वास्थ्य के आंकड़ों पर भी पड़ा है।
सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार बैंकिंग व्यवस्था में स्त्रियों की भागीदारी बढ़ी है। एक दशक पहले सिर्फ 15 प्रतिशत महिलाओं के पास अपना बैंक खाता था। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार अब 53 प्रतिशत महिलाएं बैंकों से जुड़ चुकी हैं।