अब बॉक्स ऑफिस पर बड़े बजट की फिल्में ही धमाका कर सकती है! पठान, गदर 2, जवान, ये वो फिल्में हैं, जिन्होंने कोविड के बाद बॉक्स ऑफिस पर बंपर कमाई कर इंडस्ट्रीवालों को खुश होने का मौका दिया। पठान और गदर 2 ने 500 करोड़ क्लब में एंट्री मारी तो जवान ने 600 करोड़ का रेकॉर्ड बिजनेस किया। लेकिन इसके साथ ही इंडस्ट्री में यह सुगबुगाहट भी शुरू हो चुकी है कि क्या अब बड़े पर्दे पर बड़ा धमाका करने के लिए सिर्फ ऐसी बड़ी, कमर्शल, बड़े स्टार्स वाली इवेंट फिल्में ही बनानी पड़ेंगी? क्या सिर्फ ये बड़ी फिल्में ही थिएटर्स में ऑडियंस खींच पाएंगी? क्या है इंडस्ट्रीवालों की राय? मशहूर फिल्म निर्माता सिद्धार्थ रॉय कपूर के मुताबिक, ‘एक तो ये बात है कि जवान, पठान, गदर 2 जैसी फिल्में जबरदस्त बिजनेस कर रही हैं जो बहुत अच्छी बात है, लेकिन हमें ये भी देखना चाहिए कि ड्रीम गर्ल 2, सत्यप्रेम की कथा, जरा हटके जरा बचके जैसी फिल्में, जो इतनी बड़ी नहीं हैं, उन्होंने भी अच्छी कमाई की है। उसके साथ ही ओपनहाइमर जैसी फिल्म, जो तीन घंटे की फिल्म है, इंग्लिश में है, काफी कॉम्प्लेक्स फिल्म है, उस फिल्म ने भी देश में 150 करोड़ पार किए तो मेरा ये मानना है कि अभी हर तरह की फिल्में चल रही हैं, अगर वो एंटरटेनिंग हो और दर्शकों को बांधने में कामयाब हैं। इसलिए, हमें ये नहीं सोचना चाहिए कि केवल बड़ी फिल्में ही चलेंगी। हमें पूरी कंविक्शन के साथ ऐसी फिल्में बनानी चाहिए जो ऑडियंस इंजॉय करे। मेरा मानना है कि ऑडियंस में अभी बहुत भूख है थिएटर के लिए। वो थिएटर में आना चाहते हैं तो अगर हम अच्छी फिल्में बनाएं तो वो जरूर आएंगे।’
जाने-माने निर्माता-निर्देशक रोहन सिप्पी इस बारे में कहते हैं, ‘इंडस्ट्री के लिए ये बहुत खुशी की बात है कि इस साल बड़ी फिल्मों को बहुत अच्छा रिस्पॉन्स मिला है। वहीं, जरा हटके जरा बचके जैसी छोटी फिल्में भी ठीकठाक चली हैं लेकिन यह सही है कि महामारी के पहले मिडिल बजट फिल्में जिस तरह अच्छा कर रही थीं, वो ट्रेंड अभी वापस नहीं शुरू हुआ है। यह हमारे लिए एक चुनौती है। चूंकि, कोविड महामारी में फिल्म प्रॉडक्शन और उसका प्रदर्शन बंद हो गया था। इस चक्कर में काफी सारी छोटी-छोटी फिल्में, जो पहले की बनी थी, अब रिलीज हो रही हैं। यह भी एक वजह हो सकती है, उनके कम बिजनेस की। उम्मीद है कि अब जो फिल्में बनेंगी, वो ऑडियंस की पसंद के हिसाब से होंगी, क्योंकि अभी ऑडियंस की नब्ज भी ज्यादा समझ में आ रही है। वहीं, लोगों की फिल्में देखने की आदत भी वापस आ गई है। इसलिए, उम्मीद है कि अगले साल से मिडिल बजट फिल्में भी अच्छा करेंगी। हालांकि, ये एक बड़ी चुनौती है और सिर्फ भारत नहीं, पूरी दुनिया के लिए ये चुनौती है। पश्चिम में भी इवेंट फिल्में ही चल रही हैं, जबकि छोटी फिल्में संघर्ष कर रही हैं तो ये ऐसी चीज है जिसका हल हमें ढूंढना है। मैं उम्मीद करता हूं कि ये चुनौती हमें इतनी ज्यादा बेहतर फिल्में बनाने पर मजबूर करेगी कि जैसे इस साल ओह माय गॉड जैसी फिल्में चली हैं, अगले साल ही ऐसी बीस फिल्में और होंगी।’
लगान, जोधा अकबर, स्वदेश फेम निर्देशक आशुतोष गोवारिकर का कहना है, ‘मुझे लगता है कि कोविड महामारी ने लोगों की सिनेमा देखने की आदत बदली है। कोविड ने हमें घर बैठकर ओटीटी देखने को मजबूर किया क्योंकि हम अपने घरों में बंद थे। सिनेमा नहीं जा सकते थे। जैसे मैंने ओटीटी पर हिंदी से ज्यादा मलयालम सिनेमा देखा, कन्नड सिनेमा देखता था, तमिल-तेलुगु देखता था। मेरी वो डिस्कवरी हो गई बतौर ऑडियंस कि मैं ओटीटी पर ऐसे कॉन्टेंट देख सकता हूं तो मेरे जेहन में एक दायरा सेट हो गया कि अगर कहानी इस तरह की है तो मैं घर पर ही देखूंगा। अगर कहानी बिग स्क्रीन एंटरटेनमेंट की है तो मैं थिएटर में जाऊंगा। इस वजह से ऐसा हो रहा है पर मुझे लगता है कि धीरे धीरे लोगों की आदतें बदलेंगी और वापस पहले वाला दौर लौटेगा।’
जल्द ही बड़े पर्दे पर अपनी फैमिली एंटरटेनर फिल्म आंख मिचौली लेकर आ रहे निर्देशक उमेश शुक्ला इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते कि सिर्फ बड़ी फिल्में ही थिएटर में बड़ा बिजनेस करेंगी। ओह माय गॉड और 102 नॉट आउट जैसी कामयाब फिल्में बना चुके उमेश शुक्ला के अनुसार, ‘मैं ये मानता हूं कि सब्जेक्ट सबसे बड़ी चीज होती है। मैं नहीं मानता हूं कि सिर्फ लार्जर दैन लाइफ फिल्में ही चलेंगी। जो भी फिल्म अच्छी होगी उसे अपना ड्यू मिल जाता है। वो अपना रास्ता खुद निकाल लेती है। फिल्म में एक कहानी होती है, एक कैनवास होता है, वो छोटे-बड़े की बात नहीं है। अच्छी बात है कि जवान या गदर जैसी फिल्में चल रही हैं लेकिन ड्रीम गर्ल या फुकरे 3 भी तो चली है। ऐसी फिल्में शायद गदर या जवान जैसा बिजनेस नहीं करेंगी लेकिन वो अपना काम करेगी। वे अपना शेयर लेकर जाएंगी।’