वर्तमान में मेथ का नशा देश की सुरक्षा पर भारी पड़ रहा है! मेथामफेटामाइन ड्रग्स की एक नई तरह की किस्म। नशा बेहद खतरनाक। इतना कि लेने वाला कुछ ही दिनों में दिमागी बीमारी का शिकार बन जाता है। तस्करी ऐसी खुफिया है कि दिग्गज जांच एजेंसियों को भी पकड़ने में पसीने छूट जाएं। ड्रग्स का काला धंधा करने वालों की जुबान में जिसे मेथ कहा जाता है। ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और अमेरिका जैसे बड़े देशों तक फैला जाल। लेकिन, जरा ठहरिए। इस ड्रग्स की पहचान केवल इतनी ही नहीं है। इसके तार जुड़े हैं आतंकवाद से। जी हां, आपने सही सुना। जांच एजेंसियों ने मेथ के नशे और आतंकवादियों के कनेक्शन से पर्दा हटाया है। धीरे-धीरे दुनिया के कई देशों को अपनी गिरफ्त में ले रहा मेथ का ये नशा, भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी एक खतरा बनता हुआ नजर आ रहा है। सबसे पहले आपको बताते हैं कि ये मेथ आखिर क्या है। अफगानिस्तान और ईरान के ऊंचे इलाकों में एक पौधा उगता है- इफेड्रा। झाड़ियों के बीच उगने वाला एक मामूली सा पौधा। कुछ साल पहले तक इसपर किसी की नजर नहीं थी। फिर पता चला कि इफेड्रा नाम के इस पौधे से इफेड्रिन का उत्पादन किया जा सकता है। वही इफेड्रिन, जो मेथामफेटामाइन बनाने के लिए सबसे जरूरी है। और देखते ही देखते, इफेड्रा नाम का ये पौधा ड्रग्स कार्टेल की नजरों में चढ़ गया। फिर क्या था, चीन सहित कई नार्को-टेरर संगठनों ने अफगानिस्तान और ईरान की तरफ अपने काले कदम बढ़ा दिए। वो संगठन, जो ड्रग्स के जरिए आतंकवादियों की फंडिंग करते हैं।
भारत की जांच एजेंसियों के सामने साल 2022 में एक खुफिया रिपोर्ट आई। ये रिपोर्ट बेहद डराने वाली थी। रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा था कि आतंकवाद की फंडिंग के मामले में मेथ बहुत तेजी से हेरोइन की जगह ले रही है। रिपोर्ट में आगे और भी खतरनाक बातें थी। इसमें बताया गया कि मेथ को बनाने के लिए अफगानिस्तान और ईरान में प्रोडक्शन के दो स्तर के इंतजाम हैं। पहले इफेड्रा पौधों से इफेड्रिन निकालते हैं। और फिर, मेथामफेटामाइन बनाने के लिए इफेड्रिन को अलग-अलग लैब में भेजा जाता है। इसके बाद दिल्ली पुलिस की स्पेशल ब्रांच ने अफगानिस्तान के एक मेथ कार्टेल के खिलाफ यूएपीए के तहत एफआईआर दर्ज की। ये कार्टेल सिलिका में छिपाकर इस मेथ की तस्करी कर रहा था। स्पेशल ब्रांच ने ऑपरेशन चलाया और 300 किलो से भी ज्यादा मेथ की एक बड़ी खेप को पकड़ लिया।
यहां ये जानना भी जरूरी है कि पहले मेथ को सिंथेटिक स्यूडोएफेड्रिन का इस्तेमाल कर तैयार किया जाता था। स्यूडोएफेड्रिन खांसी-जुकाम की दवाइयों में मिलता है। लेकिन, इस तरीके से मेथ को बनाने में दो दिक्कतें थी। पहली- जितनी मात्रा में मेथ तैयार करनी है, उतनी मात्रा में स्यूडोएफेड्रिन का तेजी से मिलना मुश्किल था। दूसरी- ये काफी महंगा भी पड़ता था। इसलिए, दूसरे जरिए से मेथ बनाने के तरीके तलाशे जाने लगे। सूत्र बताते हैं कि साल 2014-15 में ड्रग्स कार्टेल ने इफेड्रा पौधे से इफेड्रिन निकालना शुरू किया। महज तीन सालों के भीतर ही कार्टेल के लिए ये पौधा पहली पसंद बन गया। नतीजा ये हुआ कि मेथामफेटामाइन के प्रोडक्शन ने बहुत तेजी से स्पीड पकड़ ली।
वहीं, मेथामफेटामाइन का प्रोडक्शन बढ़ा, तो स्यूडोएफेड्रिन और दूसरे केमिकल की तस्करी भी बढ़ी। घरेलू स्तर पर भी इन केमिकल को बनाया जाने लगा। बीते फरवरी के महीने में ही नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने दिल्ली में 50 किलो स्यूडोएफेड्रिन जब्त की थी। कार्टेल के साथ इस नेटवर्क का सरगना था तमिल फिल्मों का एक निर्माता- जाफर सादिक। सादिक ने भारत और ऑस्ट्रेलिया में करीब 2000 करोड़ रुपए का अपना नेटवर्क फैलाया हुआ था। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने मार्च के महीने में ही जाफर सादिक को गिरफ्तार कर लिया।
सूत्रों से एक बात और पता चली है। स्यूडोएफेड्रिन के अलावा प्रोपियोनील क्लोराइड जैसे रसायनों का भी मेथ के निर्माण में तेजी से इस्तेमाल किया जा रहा है। प्रोपियोनील क्लोराइड ऐसा रसायन है, जिसकी पहचान बहुत कम है। यहां तक कि अंतर्राष्ट्रीय नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड (आईएनसीबी) ने जिन रसायनों को मेथ के निर्माण में जरूरी माना है, उस लिस्ट में भी इसका नाम नहीं है। यहां एक बात और हैरान करने वाली है। मेथ को तैयार करने के लिए चीन की कई फर्म बडे़ पैमाने पर प्रोपियोनील क्लोराइड का निर्यात कर रही हैं। जांच एजेंसियों के मुताबिक, अफगानिस्तान और ईरान अपने घरेलू पौधों से ड्रग्स तैयार करते हैं। जबकि, म्यांमार और मैक्सिको जैसे देशों में प्रोपियोनील क्लोराइड जैसे रसायन पहुंचाए जा रहे हैं।
नारकोटिक्स ब्यूरो के अधिकारी के मुताबिक, हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली से मैक्सिको और अफगानी ‘कुक’ (मेथ को तैयार करने वाले एक्सपर्ट) की गिरफ्तारी उसी बड़े खतरे की तरफ एक संकेत है, जिसका जिक्र खबर की शुरुआत में किया गया है। ये कुक बंदरगाहों से लाई गई मेथ को ग्राहकों के लिए फाइनल प्रोडक्ट के तौर पर तैयार करते हैं। इसके बाद तस्करों का नेटवर्क मेथ की सप्लाई में जुट जाता है। लोकल स्तर पर सारी पेमेंट चुकाने के बाद मेथ की बिक्री से आई रकम को हवाला नेटवर्क के जरिए भेजा जाता है। अलग-अलग देशों से होते हुए ये रकम अंतिम ठिकाने पर पहुंचती है और फिर आतंकवादियों के फंडिंग के लिए इसका इस्तेमाल होता है। यही वो कनेक्शन है, जिसमें ड्रग्स और आतंकवाद बहुत तेजी से आपस में जुड़ रहे हैं।