सुप्रीम कोर्ट अब इन लोगों को करेगा जल्दी रिहा!

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने नियमों में अब नहीं तब्दीली ला दी है! शीर्ष कोर्ट ने कहा, यह पहेलीनुमा है कि संबंधित एफआईआर के बारे में विशिष्ट अंतरिम आदेश के बाद भी अभियोजन ने न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट से 24 जून 2022 को गैर जमानती वारंट हासिल कर लिया।सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस बात पर हैरानी जताई कि उसने जिस व्यक्ति को गिरफ्तार न करने का अंतरिम आदेश दिया था, पुलिस ने न सिर्फ उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट हासिल किया बल्कि बाद में उसे गिरफ्तार कर हिरासत में भी भेज दिया। इस व्यक्ति पर महाराष्ट्र में धोखाधड़ी का मामला दर्ज है।

जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और कृष्ण मुरारी की अवकाशकालीन पीठ ने पाया कि महाराष्ट्र के लातूर में इस व्यक्ति के खिलाफ दर्ज मामले में पिछले साल 7 मई को शीर्ष अदालत ने गिरफ्तारी से राहत देते हुए नोटिस जारी किया था। पीठ ने कहा कि यदि इस व्यक्ति की किसी और मामले में पुलिस को आवश्यकता नहीं है तो उसे सोमवार को ही रिहा किया जाए।

शीर्ष कोर्ट ने कहा, यह पहेलीनुमा है कि संबंधित एफआईआर के बारे में विशिष्ट अंतरिम आदेश के बाद भी अभियोजन ने न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट से 24 जून 2022 को गैर जमानती वारंट हासिल कर लिया। मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में लिखा कि शीर्ष कोर्ट का अंतरिम आदेश जारी होने के छह सप्ताह बाद समाप्त हो चुका है। पीठ ने कहा कि मजिस्ट्रेट शायद इस नतीजे पर इसलिए पहुंचे कि नोटिस का जवाब देने के लिए शीर्ष कोर्ट ने छह सप्ताह का समय दिया था। पीठ ने कहा, यदि मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में जो आकलन किया, वह याचिकाकर्ता को न्यायिक हिरासत में भेजने की इकलौती वजह है तो अभियोजन एजेंसी की प्रामाणिकता और शीर्ष कोर्ट के आदेश को लागू करने के बारे में मजिस्ट्रेट की सोच गंभीर चिंता का विषय है।

देश के 16 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश में 20 वर्चुअल अदालतों ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए 1.59 करोड़ मामलों का निपटारा करते हुए 258 करोड़ से अधिक ऑनलाइन जुर्माना वसूला। विधि मंत्रालय ने यह जानकारी दी।

विधि मंत्रालय के न्याय विभाग ने एक ट्वीट में कहा, वर्चुअल अदालतों के तहत एक मील का पत्थर हासिल किया गया। एक जून, 2022 तक करीब 25 लाख मामलों में 258 करोड़ से अधिक का ऑनलाइन जुर्माना वसूला गया।

एक अधिकारी के मुताबिक ये जुर्माने ट्रैफिक मामलों से जुड़े थे। एक जून तक दिल्ली, केरल, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर में दो, हरियाणा, तमिलनाडु, कर्नाटक, असम, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, मेघालय, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में एक-एक वर्चु्अल अदालतें सक्रिय थीं।

बता दें कि गुजरात एटीएस ने तीस्ता सीतलवाड़ समेत सेवानिवृत्त डीजीपी आरबी श्रीकुमार, पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी के बाद गिरफ्तार किया। दरअसल गुजरात दंगों के दौरान हुए गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड मामले में 24 जून को सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने कहा था कि कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करने में शामिल सभी लोगों को कटघरे में खड़ा होना चाहिए और कानून के अनुसार कार्रवाई होनी चाहिए।सीतलवाड़ और अन्य के खिलाफ दर्ज मामले में गुजरात पुलिस ने अदालत की कुछ टिप्पणियों का हवाला दिया था। जिस पर पूर्व न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा है कि यदि न्यायाधीश चुप रहते हैं, तो निष्कर्ष स्पष्ट है। पूर्व न्यायाधीश ने आश्चर्य जताया कि गुजरात एटीएस ने सीतलवाड़ की गिरफ्तारी क्यों की? जबकि उनके खिलाफ आतंकवाद से जुड़ा कोई आरोप नहीं है।गौरतलब है कि 2002 में हुए गुजरात दंगे को लेकर एक जाकिया जाफरी ने सुप्रीम कोर्ट में एसआईटी रिपोर्ट के खिलाफ याचिका दाखिल की थी। इस याचिका में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 55 राजनेताओं को क्लीन चिट दी गई थी। वहीं जाकिया जाफरी द्वारा दायर रिपोर्ट के खिलाफ याचिका को सर्वोच्च अदालत ने 24 जून को खारिज कर एसआईटी की रिपोर्ट को सही बताया।इस गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन बी लोकुर ने हैरानी जताते हुए कहा, “अगर मैं गलत नहीं हूं, तो क्या मैं विद्वान न्यायाधीशों से तत्काल एक स्पष्टीकरण जारी करने की अपील कर सकता हूं कि तीस्ता को गिरफ्तार करने का न तो उनका कोई सुझाव था और न ही उनका इरादा था।”जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस सुधांशु धूलिया की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की शिकायत है कि हाई कोर्ट के समक्ष दाखिल अग्रिम जमानत के उसके आवेदन पर सुनवाई बिना कोई अंतरिम संरक्षण प्रदान किए 31 अगस्त के लिए स्थगित कर दी गई। शीर्ष अदालत ने 20 जून के अपने आदेश में हाई कोर्ट से अनुरोध किया कि अग्रिम जमानत याचिका का उसके गुण-दोषों और कानून के मुताबिक अदालत फिर खुलने के तीन हफ्ते के भीतर निपटारा करे।