बुद्ध जयंती के अवसर पर सोमवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेपाल में गौतम बुद्ध के जन्म स्थान लुम्बिनी पहुंचे. उन्होंने भारत के कुशीनगर से एक हेलीकॉप्टर में उड़ान भरी और वे लुम्बिनी में ख़ासतौर पर बनाए गए हेलिपैड पर उतरे.
इस आधिकारिक यात्रा के दौरान मोदी ने पवित्र मायादेवी मंदिर में पूजा-अर्चना की और बौद्ध संस्कृति और विरासत के एक केंद्र के शिलान्यास समारोह में भाग लिया.
प्रधानमंत्री मोदी के लुम्बिनी पहुँचने से कुछ ही घंटे पहले नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने क़रीब 20 किलोमीटर दूर भैरहवा में नेपाल के दूसरे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का उद्घाटन किया, जिसका नाम गौतम बुद्ध इंटरनेशनल एयरपोर्ट रखा गया है.
स्वाभाविक था कि प्रधानमंत्री मोदी के इस समारोह में शामिल न होने और इस हवाई अड्डे पर न उतरने से बहुत से लोगों का ध्यान उस ओर गया.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल की राजधानी काठमांडू में राजनीतिक विश्लेषक सीके लाल से इस विषय पर बात की उन्होंने कहा, “एक पड़ोसी देश के प्रधानमंत्री ख़ुद आ रहे हैं और वो एक ऐसे विमान स्थल का प्रयोग नहीं कर रहे हैं, जो नेपाल के लिए एक प्रेस्टीज प्रोजेक्ट हो और जिसका उद्घाटन हो रहा है. अगर उद्घाटन के दिन इस हवाई अड्डे पर आने वाली उड़ानों में भारतीय प्रधानमंत्री की उड़ान होती, तो ये नेपाल के लिए बहुत ही गौरव की बात होती.”
चीन से दोस्ती
क़रीब 7 करोड़ डॉलर की लागत से बने भैरहवा के नए अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के बनने में तक़रीबन सात साल का वक़्त लगा है. ये हवाई अड्डा भारत-नेपाल सीमा से महज़ 5 किलोमीटर की दूरी पर है. इस हवाई अड्डे की परिकल्पना लुम्बिनी के अंतरराष्ट्रीय प्रवेश द्वार के रूप में की गई है.
इस नए हवाई अड्डे से अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के संचालन के लिए नेपाल सरकार ने 42 देशों से क़रार भी कर लिए हैं. ज़ाहिर है इस नए हवाई अड्डे का उद्घाटन नेपाल के लिए एक महत्वपूर्ण घटना है.
लेकिन इस हवाई अड्डे के उद्घाटन के दिन ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेपाल आने और वहां न उतरने के कई मायने निकाले जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि चूंकि इस हवाई अड्डे का निर्माण एक चीनी कंपनी ने किया है, तो यहाँ न उतरकर भारत के प्रधानमंत्री नेपाल को शायद एक कूटनीतिक संदेश देने की कोशिश कर रहे हों.
भैरहवा के नए हवाई अड्डे पर चीन की छाप जगह-जगह देखी जा सकती है. 15 मई को जब बीबीसी ने इस नए हवाई अड्डे का जायज़ा लिया तो पाया कि हवाई अड्डे का रख-रखाव करने वाले कुछ वाहनों पर चीन की उस कंपनी का नाम चीनी और अंग्रेज़ी भाषा में लिखा था, जिसने इस हवाई अड्डे का निर्माण कार्य किया.
नेपाल के नागरिक उड्डयन प्राधिकरण के अधिकारियों के मुताबिक़, भैरहवा का घरेलू हवाई अड्डा करीब 5 दशक पहले भारत के सहयोग से ही बना था.
शायद इसलिए भी ये कयास लगाए जा रहे हैं कि इस हवाई अड्डे पर एक अंतरराष्ट्रीय टर्मिनल बनाते वक़्त निर्माण कार्य का काम एक चीनी कंपनी को सौंपा जाना भारत के लिए सुखद नहीं रहा होगा.
पिछले कई दिनों से नेपाल और भारत के मीडिया में भी इस बात पर अटकलें लगाई जा रही थीं कि मोदी के भैरहवा हवाई अड्डे पर न उतरने की वजह इस परियोजना में चीन की भागीदारी से जुड़ी है.
कुछ ही दिन पहले नेपाल के काठमांडू पोस्ट अख़बार ने लिखा कि नागरिक उड्डयन प्राधिकरण के एक पूर्व प्रमुख ने इस घटनाक्रम को नेपाल की ‘राजनयिक विफलता’ क़रार दिया.
सुरक्षा का हवाला
मोदी के नेपाल जाने से पहले भारतीय मीडिया ने भारत के विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा से पूछा कि प्रधानमंत्री मोदी कुशीनगर से हेलीकॉप्टर के ज़रिए लुम्बिनी क्यों जा रहे हैं, जबकि नेपाल की अपेक्षा है कि उनका आगमन नए हवाई अड्डे पर हो.
इस सवाल के जवाब में भारत के विदेश सचिव ने कहा था, “जहां तक प्रधानमंत्री की यात्राओं की लॉजिस्टिकल व्यवस्था से संबंधित प्रश्नों का संबंध है, मुझे नहीं लगता कि मेरे लिए या किसी और के लिए उन मुद्दों पर टिप्पणी करना वास्तव में सही है, क्योंकि उनमें सुरक्षा सहित कई पैरामीटर शामिल होते हैं.”
एयरस्पेस का मसला
भैरहवा के नए हवाई अड्डे से अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के संचालन के लिए नेपाल भारत से उसकी तरफ़ के हवाई क्षेत्र या एयरस्पेस खोलने का अनुरोध करता रहा है. लेकिन सुरक्षा कारणों का हवाला देकर भारत ने अभी तक इसकी अनुमति नहीं दी है.जानकारों की मानें तो ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री मोदी का हवाई उड़ान से भैरहवा हवाई अड्डे पर आना एक कूटनीतिक मुश्किल पैदा कर सकता था.
राजनीतिक विश्लेषक सीके लाल कहते हैं, “ये हो सकता है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने ही सुरक्षा सलाहकारों की सलाहों के विपरीत नहीं जाना चाहते हों. जब भारतीय प्रधानमंत्री ने अपने सलाहकारों से इसके बारे में बातचीत की होगी तो शायद उन्हें लगा होगा कि इस हवाई अड्डे पर उतरने की वजह से कुछ कठिनाई हो सकती है.”
उन्होंने बताया, “भारत ने इस हवाई अड्डे के लिए अपनी एयरस्पेस खोलने की अनुमति नहीं दी है. ऐसे में अगर प्रधानमंत्री मोदी ख़ुद इस एयर रूट का प्रयोग करते, तो इसे अनौपचारिक तौर पर एयरस्पेस खोलना माना जाता और बाद में दोनों देशों के बीच इस बात पर विवाद हो सकता था.”पिछले कुछ सालों से भारत और चीन दोनों ही नेपाल में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिशें करते दिखे हैं.इस सब के बीच भैरहवा हवाई अड्डे से जुड़ा ये ताज़ा घटनाक्रम भारत और नेपाल के संबंधों पर क्या असर डालेगा, ये आने वाले समय में देखना दिलचस्प होगा.