आज कहानी ऐसी जासूस की जिसने भारत का सपना पूरा कर दिया! एक समय भारत की सीमाएं अफगानिस्तान तक फैली हुई थीं। आज भी अखंड भारत की चर्चा होती रहती है, लेकिन कम लोगों को पता होगा कि 2300 साल पहले एक जासूस की मदद से अखंड भारत का सपना चाणक्य ने पूरा किया था। चाणक्य 300 ईसा पूर्व के कालखंड में थे। उस समय आर्यावर्त भारत 16 महाजनपदों में बंटा हुआ था। इसे ग्रेट किंगडम समझ लीजिए। सिकंदर पूरी तरह से भारत में नहीं घुस सका था, लेकिन ऐसे आक्रमण पर उस आचार्य की पैनी नजर थी। वह थे चाणक्य या कौटिल्य या विष्णुगुप्त। उन्हें समझ में आ चुका था कि 16 महाजनपदों में बंटा भारत बड़े आक्रमणकारी से लड़ नहीं सकता है। उनके सामने डटकर खड़ा नहीं रह सकता है। उन्होंने अखंड भारत का सपना देखना शुरू किया। वह चाहते थे कि राजा एक हो, जिसके अधीन रहकर 16 महाजनपद काम करें। उन्होंने सबसे पहले मगध के राजा धनानंद को सलाह दी लेकिन उन्होंने नजरअंदाज कर दिया। क्रूर धनानंद को नृत्य, गायन और महिलाओं में ज्यादा रुचि लेने वाले शासक के तौर पर जाना जाता है। वह न तो प्रशासन पर ध्यान देते थे और न ही ताकतवर बनने की चेष्टा कर रहे थे। ऐसे में चाणक्य ने अपने तीन विशेष जासूसों को एक मिशन सौंपा। इसमें सबसे प्रमुख किरदार का नाम था जीवसिद्धी। आचार्य चाणक्य चाहते थे कि राजा ऐसा हो जिसकी चारों दिशाओं में विजय पताका लहराए। वह चक्रवर्ती सम्राट चाहते थे। वह शाही सलाहकार थे और राजा धनानंद की मौत के बाद उन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य को अखंड आर्यावर्त के निर्माण के लिए चुना। चंद्रगुप्त गद्दी पर तो बैठ गए थे लेकिन नंद वंश के राजा और एक शिकारी की पुत्री मुरा की संतान होने के कारण वह सुरक्षित नहीं थे। कुछ पुस्तकों में उन्हें निम्न जाति का, जबकि बौद्ध-जैन पुस्तकों में मोरिया वंश का क्षत्रिय बताया जाता है, जो शाक्य से संबंधित थे। गुरु चाणक्य ने आगे की योजना बनाई। मुंबई विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग की विजिटिंग फैकल्टी डॉ. असवारी बापट ने एक इंटरव्यू में बताया कि चंद्रगुप्त की गद्दी सुरक्षित न होने का सबसे बड़ा कारण था कात्यायन, जो धनानंद के वफादार मंत्री थे। उन्हें इतिहास में ‘राक्षस’ नाम से भी जाना जाता है। ताकत, कौशल और पराक्रम के कारण कात्यायन को राक्षस की उपाधि मिली थी। वह चाहते थे कि नंद वंश का ही कोई शख्स राजगद्दी पर बैठे। वह चाणक्य से किसी भी चीज में कम नहीं थे। दोनों कूटनीति में माहिर और विद्वान होने के साथ आदर्शवादी थे। चाणक्य के अखंड भारत के सपने को पूरा करने के लिए राक्षस का सरेंडर जरूरी था।
चाणक्य ने जीवसिद्धी को राक्षस के खेमे में जाकर जासूसी करने का मिशन सौंपा। राक्षस मगध के बाहर एक गुप्त क्षेत्र में छिपा था। वहीं से चंद्रगुप्त की हत्या का षड्यंत्र रच रहा था। एक नया नाम, एक नया वेश मिला। इतिहासकार डॉ. शोनालीका कौल बताती हैं कि चाणक्य के अर्थशास्त्र में कई वेश में गुप्तचरों को घूमने के लिए कहा गया है। इसमें व्यापारी, शिल्पी, रसोइयां, सपेरा और वेश्या प्रमुख हैं। सबसे महत्वपूर्ण वेश भिक्षु (संन्यासी) का माना गया है क्योंकि उस पर लोगों को संदेह नहीं होता है। वह कहीं भी बड़े आराम से जा सकता है।
चाणक्य के इस खास जासूस के अलावा भी कई गुप्तचर इस मिशन को पूरा करने के काम में जुटे थे। राक्षस के खेमे में अफवाह फैला दी गई कि जीवसिद्धी ज्योतिष के विद्वान हैं। उनके साथ दो और गुप्तचर वहां थे लेकिन किसी को पता नहीं था कि बाकी दो क्या कर रहे हैं। चाणक्य के अर्थशास्त्र में इस बात का जिक्र किया गया है कि गुप्तचर को अलग-अलग भाषाओं, वेशभूषा की जानकारी, सारी कलाओं और विद्याओं का ज्ञान होना जरूरी है। राक्षस के सामने जीवसिद्धी को खुद को साबित करना था तभी वह उनके करीब पहुंच सकता था। यह कुछ वैसा ही था जैसे ‘चमत्कार को नमस्कार’ कहा जाता है। राक्षस ने कहा कि जीवसिद्धी कुछ ऐसा बताएं जो उन्हें चकित कर सके अन्यथा वह चले जाएं। गुप्तचर ने गुरु चाणक्य के बताए एक राज को सामने रख दिया। उन्होंने कहा कि नंद महल के सातवें बंद कमरे में एक रहस्य छिपा है। वहां एक ब्राह्मण की हत्या हुई थी। राक्षस अचरज में पड़ गया क्योंकि सालों पहले धनानंद का विरोध करने पर हुई ब्राह्मण की हत्या के बारे में गिने चुने लोगों को ही पता था। जीवसिद्धी ने राक्षस का भरोसा जीत लिया।
राक्षस नंद सभा के महामंत्री थे। उनकी विद्वता के बारे चाणक्य को पता था। ऐसे में उनके मिशन में मारने का नहीं, जीतने का प्लान था। राक्षस का जुड़ाव और निष्ठा धनानंद के प्रति थी। उनकी मौत के बाद राक्षस ने तय किया कि उनका धर्म है कि शत्रु चंद्रगुप्त को न छोड़ा जाए। राक्षस ने योजना बनाई और ज्योतिष के वेश में मौजूद जीवसिद्धी से कहा कि वह ग्रह दशा देखकर बताए कि चंद्रगुप्त को किस दिन जहर दिया जा सकता है। जासूस ने कहा कि मंगल की दिशा देखकर काम किया जाए तो किसी की मृत्यु निश्चित है। यह सूचना चाणक्य तक पहुंचा दी गई। ऐसे में राजा के दरबार में जिस समय औषधि में जहर लाया गया, चाणक्य ने लाने वाले को ही यह पीने को कह दिया। राजा के सामने उसे जहर पीना पड़ा और उसकी मौत हो गई। राक्षस गुस्सा हो गया।
इस बीच, पर्वतीय प्रदेश के राजा पर्वतक चाणक्य के प्लान में बाधा बनने लगे। उनके साथ संधि यह कहकर की गई थी कि मगध का राज्य चंद्रगुप्त और पर्वतक के बीच बांटा जाएगा। लेकिन अखंड भारत के सपने को पूरा करने के लिए चाणक्य को यह ठीक नहीं लग रहा था। इधर, राक्षस ने विषकन्या को चंद्रगुप्त को मारने के लिए भेज दिया। बताते हैं कि विषकन्या की परिकल्पना कुछ इस तरह से की गई थी कि स्पर्श या कहिए उसके साथ संबंध बनाने वाले की मौत निश्चित थी। विष कन्या को थोड़ा-थोड़ा जहर दिए जाने से पूरा शरीर जहरीला हो चुका होता था। जीवसिद्धी ने अपने एक साथी गुप्तचर के जरिए यह संदेशा चाणक्य तक पहुंचा दिया। ऐसे में जब विषकन्या राजा के करीब आई तो चाणक्य ने यह ऑफर पर्वतक को दे दिया। राजा पर्वतक खुश हो गए। खूबसूरत युवती को देख वह इसे अपना सम्मान समझ रहे थे। करीब जाने पर उनकी मौत हो गई।