कई बार गलत खान-पान और जीवनशैली हमारी याददाश्त को प्रभावित करती है! डेमेंशिया, मानसिक स्वास्थ्य की एक गंभीर समस्या है, जिसमें याददाश्त, सामाजिक चेतना, निर्णय लेने की क्षमता और व्यवहार में परिवर्तन हो जाता है। मानसिक स्वास्थ्य संबंधी कई तरह की समस्याओं के संयोजन के कारण डेमेंशिया की समस्या होती है। सामान्यतौर पर यह दिक्कत उम्रदराज लोगों में देखी जाती रही है पर अब कम उम्र के लोग भी इसके शिकार पाए जा रहे हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ डेमेंशिया के लिए पर्यावरणीय और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के साथ जीवनशैली की गड़बड़ आदतों को भी प्रमुख कारण के तौर पर देखते हैं। यानी कि आपके रहन-सहन और खान-पाने की आदतें डेमेंशिया के खतरे को बढ़ा सकती हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, डेमेंशिया का कोई विशिष्ट इलाज नहीं है, हालांकि इससे बचाव के तरीकों को प्रयोग में लाकर इससे सुरक्षित रहा जा सकता है। शोध से पता चलता है कि जो लोग ‘ब्रेन हेल्दी’ लाइफस्टाइल अपनाते हैं, उनमें बाद के जीवन में डिमेंशिया का खतरा कम होता है।इस तरह के जोखिम को लेकर सभी लोगों को विशेष सावधानी बरतते रहने की आवश्यकता है।
कब से करें बचाव?
विशेषज्ञ कहते हैं, कम उम्र से ही लोगों को डेमेंशिया से बचाव के तरीके अपनाना शुरू कर देना चाहिए। शारीरिक गतिविधि बढ़ाना और आहार में स्वस्थ और पौष्टक चीजों को शामिल करना आपके जोखिम कारकों को कम करने में सहायक है। फ्लेवोनोइड्स वाले खाद्य पदार्थ खाने से दिमाग तेज रखने में मदद मिलती है। सभी लोगों को अपनी जीवनशैली पर विशेष ध्यान देते रहने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि हम सभी जाने-अनजाने कई तरह की ऐसी चीजें करते रहते हैं जिनके कारण डेमेंशिया होने का खतरा बढ़ सकता है।
पर्याप्त नींद न लेने वाले लोगों में समय के साथ डेमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है।
सामाजिक रूप से अलग-थलग रहना आपमें इसका खतरा बढ़ा सकता है।
आहार में पौष्टिकता की कमी।
सेंडेंटरी लाइफस्टाइल से बढ़ सकती है जोखिम।
पर्याप्त धूप न मिल पाना भी इसके जोखिम को बढ़ा सकता है।
विशेषज्ञ बताते हैं, जीवनशैली में कुछ बातों का ध्यान रखकर डेमेंशिया के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है। इसके लिए सभी लोग इसपर गौर करें।
उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करें।
मधुमेह के जोखिम कारकों को समझें।
धूम्रपान से दूरी बनाएं।
वजन को नियंत्रण में रखने का प्रयास करें।
शारीरिक गतिविधि स्वस्थ जीवन के लिए बहुत आवश्यक है।
क्या करे, क्या नहीं?
स्मार्टफोन अब हमारी जिंदगी का बहुत अहम हिस्सा बन चुका है। ऑफिस का काम हो, कोई अहम तारीख या जानकारी पता करनी हो या मन बहलाना हो…हर काम फोन कर देता है। यहां तक कि डायरी और अलॉर्म घड़ी के काम भी इसी से हो जाते हैं। लेकिन क्या आपने गौर किया है कि आपकी याद्दाश्त अब पहले जैसी नहीं रही! यही नहीं, मौसमी बीमारियां और थकान भी आपको अब पहले से ज्यादा परेशान करने लगी हैं। तो इसका इल्जाम मौसम या किसी और पर लगाने से पहले ध्यान दें कि कहीं आपका ज्यादा समय तक फोन में बिजी रहना ही तो आपकी बीमारी की वजह नहीं। विशेषज्ञों का कहना है कि फोन से हमें कई फायदे हैं लेकिन मानसिक और शारीरिक नुकसान भी हैं। फोन से थोड़ी दूरी बनाकर रखने पर हम इनसे बच सकते हैं और हम खुद को बेहतर महसूस करेंगे, कई रिसर्च बताती हैं कि अब लोग छोटी-छोटी बातें याद रखने के लिए दिमाग पर जोर डालने के बजाए स्मार्टफोन और इंटरनेट के सहारे रहने लगे हैं। यह समझना चाहिए कि दिमाग को भी लगातार एक्सरसाइज की जरूरत होती है। स्मार्टफोन और इंटरनेट पर बढ़ती निर्भरता के कारण डिजिटल एम्नेशिया बीमारी होती है। इससे हम छोटी-छोटी बातें भी भूलने लगते हैं। अगर आपको अपनी याददाश्त सही रखनी है तो चीजें याद रखने के लिए दिमाग का इस्तेमाल करें, फोन का नहीं।
एक शोध में यह बात सामने आई है कि मोबाइल फोन कीटाणुओं का घर बनते जा रहे हैं। हालत यह है कि आपके फोन में एक टॉयलेट की तुलना में 10 प्रतिशत से भी ज्यादा कीटाणु हो सकते हैं। अब आप समझ सकते हैं कि इंफेक्शन से होने वाली ज्यादतर बीमारियां की वजह आपका स्मार्टफोन है।पिछले दिनों हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई हैं कि जो मांएं गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद फोन का ज्यादा इस्तेमाल करती हैं, उनके बच्चों में अक्सर ही चिड़चिड़ेपन और खराब व्यवहार की दिक्कतें आती हैं।
क्या है इलाज?
स्मार्ट फोन सीमित समय के लिए ही इस्तेमाल करें।
मोबाइल साइलेंट मोड पर रखें। पढ़ने-खाने के दौरान उसे बार-बार न देखें।
जितनी देर मोबाइल इस्तेमाल करें, उतनी ही देर पहले फिजिकल एक्सरसाइज करें।
वर्चुअल के बजाय वास्तविक दोस्त बनाएं और उनके साथ वक्त गुजारें।
अपने मन को अपने पसंदीदा कामों में लगाएं जैसे कि किताबें पढ़ने, बागबानी, जानवर पालना आदि।
हमारी याददाश्त तीन स्टेज – रजिस्ट्रेशन, रीटेन और रिकॉल में काम करती है। ऐसे में लगातार फोन पर व्यस्त रहने से मेमोरी में रजिस्ट्रेशन कम होता। जो ध्यान केंद्रित करने में मुश्किल पैदा करता है। ऐसे में भूलने की आदत बढ़ जाती है।