आज 12 अक्टूबर है. आज हम राममनोहर लोहिया को याद करते हैं, क्योंकि आज के ही दिन लोहिया ने अपनी आख़िरी सांस ली थी. राममनोहर लोहिया एक स्वतंत्रता सेनानी थे और गांधी के शिष्य थे. लोहिया ने 1942 के भारत छोड़ों आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. आजादी के बाद उन्होंने नेहरू का खुलेआम विरोध किया. उन्होंने गैर-कांग्रेसवाद का नारा दिया. विभाजन पर उन्होंने सबको लताड़ा है. इस मुद्दे पर उन्होंने एक किताब लिखी थी नाम है ‘विभाजन के गुनहगार’. इसको पढ़ने के बाद विभाजन से संबंधित आपके जितने भ्रम हैं वह दूर हो जायेंगे. इस पुस्तक से कुछ बिन्दुओं को मैं यहाँ रखना चाहता हूँ.
कौन था विभाजन का गुनहगार
राममनोहर लोहिया ने कहा है कि, हिन्दू-मुस्लिम पृथकता ही विभाजन का मूल-कारण है और इस पृथकता का कारण जनसंघ के वे अहिन्दू तत्त्व हैं, जिन्होंने ब्रिटिश और मुस्लिम लीग को देश विभाजन में सहायता की.
उन्होंने कम्युनिस्टों के बारे में कहा कि चूंकि उनके पास पर्याप्त प्रभाव बचा ही नही इसलिए कम्युनिस्टों ने न अधिक धूर्तता की और ना ही विभाजन को रोकने के लिए कोई लाभदायक काम किया.
कांग्रेस के बारे में उन्होंने कहा कि, कांग्रेस का सबसे बड़ा अपराध यही है कि उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम पृथकता को रोकने के लिए सफलतापूर्वक प्रयास नही किया. इस अपराध के पीछे वोट-प्राप्ति की इच्छा रही होगी.
हर विचाराधारा पर राममनोहर लोहिया ने ऐसे ही निष्पक्षता के साथ बात की है. अगर आज लोहिया होते तो वह अपने नाम पर चल रही पार्टियों को समाजवाद का मतलब सीखा रहे होते, क्योंकि इसकी बहुत जरूरत है. नीतिश कुमार, लालू यादव, मुलायम सिंह यादव ये सब लोहिया का ही शिष्य थे. यह लोग हमेशा यह दोहराते हैं कि हम लोहिया के रास्ते पर ही चलने का प्रयास कर रहे हैं.
राममनोहर लोहिया के कोट्स
1.बड़ों के सामने विनय और शिष्टाचार का आचरण सहज और सुगम मार्ग है.
2. अंग्रेजों ने बंदूक की गोली और अंग्रेजी की बोली से हम पर राज किया
3. सामाजिक परिवर्तन के बडे़ काम जब प्रारंभ होते हैं, तो समाज के कुछ लोग आवेश में आकर इसका पूर्ण विरोध करते हैं.
4. अगर सड़कें खामोश हो जाएं तो संसद आवारा हो जाएगी.
5. पेट है खाली मारे भूख, बंद करो दामों की लूट.
6. राजनीति एक अल्पकालिक धर्म है और धर्म दीर्घकालिक राजनीति.
7. भारत में असमानता सिर्फ आर्थिक नहीं है, यह सामाजिक भी है.
8. जाति प्रथा के विरुद्ध विद्रोह से ही देश में जागृति आयेगी और उसे नवजीवन मिलेगा. और उसका पुनरुत्थान होगा.
9. जाति और धर्म के नाम पर राजनीति करने पर इतिहास में हमेशा खून-खराबा हुआ है.
10. अपने आर्थिक उद्देश्य में पूंजीवाद बड़े पैमाने पर उत्पादन, कम लागत और मालिकों को लाभ पहुंचाना चाहता है.
11. भारत में कौन राज करेगा ये तीन चीजों से तय होता है. – ऊँची जाति, धन और ज्ञान. जिनके पास इनमे से कोई दो चीजें होती हैं वह शासन कर सकता है.
12. जब भूख और जुल्म दोनों बढ़ जाते हैं तो चुनाव से पहले भी सरकारें बदली जा सकती है.
13. (इस्लामी दबाव के सामने) आत्मसमर्पण को सामंजस्य कहना कायरता है.
14. सच्चे लोकतंत्र की शक्ति सरकारों के उलट-पुलट में बसती है।
15. बलात्कार और वायदाखिलाफी को छोड़कर मर्द-औरत में हर रिश्ता जायज़ है.
16. बिना रचनात्मक कार्य के सत्याग्रह, क्रिया के बिना लिखे वाक्य जैसा होता है।
17. जाति तोड़ने का सबसे अच्छा उपाय है, कथित उच्च और निम्न जातियों के बीच रोटी और बेटी का संबंध.
18. राम, कृष्ण और शिव भारत में पूर्णता के तीन महान स्वप्न हैं. राम की पूर्णता मर्यादित व्यक्तित्व में है, कृष्ण की सम्पूर्ण या उन्मुक्त व्यक्तित्व में शिव की असीमित व्यक्तित्व में लेकिन हर एक पूर्ण हैं.
19. वेद, आरण्यक, ब्राह्मण तथा उपनिषद के आधार पर हिन्दू धर्म में उदारवाद और कट्टरता की लड़ाई पिछले पांच हजार सालों से भी अधिक समय से चल रही है और उसका अंत अभी भी दिखाई नहीं पड़ता. लेकिन जहाँ तक बात रही मनुस्मृति को जलाने की तो जो किताब मनुष्य को मनुष्य न समझे उसे नष्ट होना ही चाहिए।
20. अंग्रेजी का प्रयोग मौलिक चिंतन को बाधित करता है. आत्महीनता की भावना पैदा करता है और शिक्षित और अशिक्षित के बीच खाई बनाता है. इसलिए आइये हम सब मिलकर हिंदी को अपना पुराना गौरव लौटाएं.
21. हमेशा याद रखना चाहिए कि यौन संबंधों में सिर्फ दो अक्षम्य अपराध हैं. – बलात्कार और झूठ बोलना या वायदा तोडना. एक तीसरा अपराध दूसरे को चोट पहुँचाना या पीड़ा पहुँचाना भी है जिससे जहाँ तक मुमकिन हो बचना चाहिए.
22. अर्थव्यवस्था में एक माध्यम के तौर पर अंग्रेजी का प्रयोग काम की उत्पादकता को घटाता है. शिक्षा में सीखने को कम करता है और रिसर्च को लगभग ख़त्म कर देता है, प्रशासन में क्षमता को घटाता है और असमानता तथा भ्रष्टाचार को बढ़ाता है.
23. चार हजार साल या उससे भी अधिक समय पहले कुछ हिंदुओं के कान में दूसरे हिंदुओं के द्वारा सीसा गला कर डाल दिया जाता था और उनकी जबान खींच ली जाती थी क्योंकि वर्ण व्यवस्था का नियम था कि कोई शूद्र वेदों को पढ़े या सुने नहीं.
24. जात-पात भारतीय जीवन में सबसे ताकतवर प्रथा रही है. जो इसके सिद्धांत को स्वीकार नहीं करते वे भी व्यवहार में ऐसे मान कर ही चलते हैं. जिन्दगी जाति की सीमाओं के अंदर ही चलती है.
25. मिडल स्कूल तक शिक्षा मुफ्त और अनिवार्य होनी चाहिए और उच्च स्तर पर शैक्षिक सुविधाएं मुफ्त या सस्ते में उपलब्ध कराई जानी चाहिए. खासतौर से अनुसूचित जाति, जनजाति और समाज के अन्य गरीब वर्गों को. मुफ्त या सस्ती आवासीय सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जानी चाहिए.
26. मैं मानकर चलता हूँ कि तानाशाही प्रणाली को दस, बीस या पचास मिलियन लोगों को खत्म करने का इरादा करना पड़ेगा. जब लोग नए समाजों और नई सभ्यताओं का निर्माण करने की बात सोचते हैं तब धार्मिक और राजनीतिक व्यक्तियों से ज्यादा क्रूर कोई नहीं होता. क्योंकि ये धार्मिक और राजनीतिक व्यक्ति अपने आदर्श पर मोहित होते हैं और उस आदर्श को लाने के प्रयास में वे कोई भी कीमत देने को तैयार होते हैं.
27. जितने अंग्रेजी अख़बार भारत में छपते हैं, उतने दुनिया के किसी भी पूर्व गुलाम देश में नहीं छपते. भारत की तरह अंग्रेजी के अन्य गुलाम देशों की संख्या लगभग पचास रही है. लेकिन अंग्रेजी का इतना दबदबा कहीं नहीं है. इसीलिए भारत आजाद होते हुए भी गुलाम है.
28. हमें समृद्धि बढानी है, कृषि का विस्तार करना है, फैक्ट्रियों की संख्या अधिक करनी है. लेकिन हमें सामूहिक सम्पत्ति बढाने के बारे में सोचना चाहिए. अगर हम निजी सम्पति के प्रति प्रेम को ख़त्म करने का प्रयास करें तो शायद हम भारत में एक नए समाजवाद की स्थापना कर पाएं.