अभी दिल्ली के नए एलजी को आए जुम्मे जुम्मे चार दिन पूरे नहीं हुए थे की दिल्ली सरकार ने अपना पुराना राग अलापना शुरू कर दिया। दिल्ली के नए एलजी विनय कुमार सक्सेना अभी अपना काम शुरू ही किया था की दिल्ली सरकार ने उन्हें नसीहत देना शुरू कर दिया। एलजी ने आते ही अपने कहे अनुसार दिल्ली में कूड़े के पहाड़ को खत्म करने के निर्देश एमसीडी को दिए,वही उन्होने डीडीए के काम का भी जमीनी जायजा लिया। पर जब एलजी ने दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारियो के साथ बैठक की तो इस मामले में दिल्ली की सरकार के सवालों ले ज्वाला का सामना करना पड़ा।
आम आदमी पार्टी की नेता और विधायक आतिशी सवाल उठाते हुए कहा कि एलजी दिल्ली की संवैधानिक व्यवस्था को बिगाड़ने की कोशिश न करें। उन्होंने एलजी को उनके कार्यों को बताते हुए कहा कि एलजी के पास सिर्फ भूमि,कानून व्यवस्था और पुलिस है जबकि पानी,बिजली,शिक्षा, स्वास्थ्य,परिवहन और राजस्व दिल्ली सरकार के अधीन आते है।
बता दे की एलजी ने सोमवार को जल बोर्ड के अधिकारियो के साथ बैठक की थी और उन्हें कुछ निर्देश भी दिए थे। इसके जवाब में बुद्धवार को दिल्ली सरकार के मुख्यालय में आतिशी और दुर्गेश पाठक ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा की “मैं एलजी को बताना चाहूंगी की दिल्ली में एक संवैधानिक व्यवस्था है।” जिसके तहत एलजी केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि होते है और। उनको संविधान ने साफ तौर पर तीन जिम्मेदारी दी है। जो जमीन, कानून व्यवस्था और पुलिस की है। ये ज़िम्मेदारी साफ तौर भारत के संविधान में दी गई है साथ ही भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस पर अपनी मौहर लगाई है।
विनम्रता में छुपी हुई है चुनौती।
आतिशी ने कहा की “मै एलजी से विनम्र अपील करती हु कि वह दिल्ली के लोगो द्वारा चुनी हुई सरकार के काम को चुनौती ना दे।” दिल्ली के लोगो ने सरकार को काम करने के लिए चुना है और एलजी कृप्या करके उनके अधिकार क्षेत्र में दखल न दे।
2015 से ही चल रही है तकरार।
दिल्ली सरकार व उपराज्यपाल के बीच टकराव कोई नया नही हुई इसकी बुनियाद 2015 में ही पड़ गई थी। सत्ता हासिल करने के तीन महीने बाद मई 2015 में दिल्ली सरकार ने आरोप लगाया कि भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के डर से एसीबी को उपराज्यपाल के अधीन कर दिया गया है, जबकि पूर्व की शीला दीक्षित सरकार में एसीबी दिल्ली सरकार के अधीन थी।
नियुक्ति व तबादले के मामले में टकराव
नियुक्ति व तबादले के मामले में टकराव बतौर कार्यवाहक मुख्य सचिव एस. गैमलिन की नियुक्ति से शुरू हुआ। उपराज्यपाल ने वरिष्ठ अधिकारी गैमलिन को मुख्य सचिव नियुक्त किया, जबकि अरविंद केजरीवाल ने इसका विरोध किया। विवाद इस कदर गहराया कि सरकार ने सेवा विभाग के सचिव ए. मजूमदार के दिल्ली सचिवालय स्थित कार्यालय पर ताला लगा दिया। मजूमदार ने ही गैमलिन की नियुक्ति का आदेश जारी किया था।
केजरीवाल ने कहा नौकरशाह नहीं करते आदेश का पालन।
केजरीवाल ने आरोप लगाया कि नौकरशाह सरकार के आदेश का पालन नहीं करते । आरोप-प्रत्यारोप के बीच दिसंबर 2015 में सरकार के दो विशेष सचिव के निलंबन के आदेश के खिलाफ अधिकारी एक दिन के अवकाश पर चले गए।
दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव, कब क्या हुआ।
- एक अप्रैल 2015: तत्कालीन उप राज्यपाल नजीब जंग ने नौकरशाहों को सीएम के उस आदेश को मानने को माना कर दिया जिसमे सीएम ने उनको आदेश दिए थे की सारी फाइल जो एलजी के अधिकार क्षेत्र की गई उनके पास होकर एलजी के पास जायेगी।
- 20 मई 2015: तत्कालीन उप राज्यपाल नजीब जंग ने दिल्ली सरकार द्वारा की गई नियुक्तियों को रद्द कर दिया और कहा ये अधिकार उनका है।
- 21 मई 2015: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी करके कहा की दिल्ली में सभी तरह के ट्रांसफर और नियुक्ति का अधिकार एलजी का है।
- जून 2015 : दिल्ली सरकार ने बतौर एसीबी प्रमुख एमके मीना की नियुक्ति की वैधता को हाईकोर्ट में किया चेलेंज
- अप्रैल 2016 : आप सरकार ने हाईकोर्ट में उपराज्यपाल के अधिकार को चुनौती देने वाली याचिका को बड़ी बेंच में ट्रांसफर करने की अपील की।
- अगस्त 2016 : हाईकोर्ट ने दिया आदेश, उपराज्यपाल दिल्ली को प्रशासनिक प्रमुख, कैबिनेट का फैसला मानने को बाध्य नहीं।
- सितंबर 2016 : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर दिल्ली सरकार की तरफ से हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर 6 याचिकाओं पर मांगा जवाब।
- फरवरी 2017 : सुप्रीम कोर्ट ने मामले को संवैधानिक बेंच को भेजा।
- दिसंबर 2017 : सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रिजर्व किया।
- जुलाई 2018 : सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि उपराज्यपाल के पास फैसले लेने का स्वतंत्र अधिकार नहीं। वह सरकार की सलाह मानने को बाध्य।
लेकिन 2015 से शुरू हुई ये रार 2022 में भी रुकने का नाम नहीं ले रही अब देखना ये होगा इस पर केंद्र सरकार का जवाब देती है।