Friday, October 18, 2024
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“नीतीश सरकार की नाकामियों के किस्से जहां उड़ रही कानूनों की धज्जियां, पुरुष के साथ साथ अब महिलाएं भी कर रही शराब का सेवन”

‘देश की इस स्थिति के लिए सरकार के साथ साथ जनता भी जिम्मेदार’
क्या नए नियमों को सिर्फ लाने से सबकुछ बदल जाता है? या ठीक हो जाता है? यह जानकर बड़ी हैरानी होती है कि हमारे देश के नेताओं को ऐसा ही लगता है, कि नए नियम ला देंगे और सब कुछ ठीक हो जायेगा। हम ऐसा इस लिए कह रहे है क्योंकि जिस तरह हमारे देश में नियम लागू होते है और उसका पालन नहीं होता, इससे यही अंदाजा लगाया जा सकता है। अब हम ऐसा कह रहे है तो कही न कही जनता भी इससे सहमत होगी। असल में वह भी देश की स्थिति से भली भांति परिचित है। आखिर इसके जिम्मेदार वह भी तो हैं।
आप ही बताए…. तालियां एक हाथ से तो नहीं बजाई जा सकती। यह कहना इस लिए जायज है क्योंकि यही वह जनता है, जो नियमों का उल्लंघन करती है या फिर उसका पालन।

‘नीतीश सरकार की नाकामियों के बढ़ते किस्से, दहेज़ से लेकर शराब तक को रोकने की कोशिश नाकाम’
अब बात कर लेते है सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के ऊपर। खासकर बिहार की बात करेंगे क्योंकि जब से नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने है, तब से उन्होंने कई अहम फैसले लिए और कई नए कानूनों को लागू किया है। उनमें से दहेज़ पर प्रतिबंध और शराब बंदी दो ऐसे कानून लाए गए जो बंद होने के बाद भी पूरी तरह बंद नहीं हुआ है। लोग धड़ल्ले दहेज़ लेते पाए जाते है। और शराब बंदी का तो जवाब ही नहीं क्योंकि अब सीएम सचिवालय के बाहर भी शराब की बोतले पाई जा रही है।

‘बिहार को गौरवशाली इतिहास की ओर ले जाने और महिलाओं की स्थिति सुधारने की बात करने से क्या हो जाते है हालात बेहतर?’
आपको बता दे कि चुनाव में जीत हासिल करने और लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने महिलाओं से किया वादा निभाया और एक अप्रैल 2016 बिहार निषेध एवं आबकारी अधिनियम के तहत बिहार में शराबबंदी लागू कर दी गई। 2016 में शराब बंदी, और फिर 2017 में दहेज़ प्रथा के साथ साथ बाल विवाह को रोकने के लिए कैंपेन चलाया गया था। पर यह कितने हद तक सुचारू रूप से लागू हो पाया है, यह सचिवालय के बाहर मिली शराब की शीशी से पता लगाया जा सकता है। जो कि सबसे बड़ा उदाहरण है। और यह सरकार की नाकामिया तो है ही साथ ही जनता की गैर जिम्मेदारी भी है। हालाकि इन कानूनों को इस मकसद से लाया गया था कि इसके बाद हालात सुधर जाएंगे, महिलाओं को घरेलू हिंसा कम झेलने होंगे।

नीतीश कुमार ने कहा था, “बिहार में पूर्ण शराबबंदी महात्मा गांधी के लिए सच्ची श्रद्धांजलि है। कुछ लोग शराब को लिबर्टी से जोड़कर देखते हैं।” उन्होंने यह भी कहा था कि “हमारे यहां 39 प्रतिशत बाल विवाह होते हैं। बाल विवाह के कारण कई तरह की समस्याएं और बीमारियां होती हैं। और दहेज प्रथा के चलते भी बाल विवाह हो रहे हैं। दहेज उत्पीड़न के मामले में बिहार, यूपी के बाद दूसरे स्थान पर है। जिस तरह से हम शराबबंदी अभियान चला रहे हैं, उसी तरह दहेज और बाल विवाह के खिलाफ अभियान चलाएंगे।” मुख्यमंत्री ने कहा था कि “बिहार आंदोलन की धरती रही है और बिहार को गौरवशाली इतिहास की ओर ले जाना है।” उन्होंने कहा “एक साल के भीतर बाल विवाह और दहेज प्रथा में कमी आएगी।” लेकिन हुआ इसके विपरित।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे का खुलासा कि बिहार के शहरों में 14% और गांव के 15.8% लोग शराब पी रहे हैं।
प्रदेश में आज भी 15 प्रतिशत लोग शराब का सेवन कर रहे हैं, जिसमें ग्रामीण क्षेत्र के लोग शहर पर भारी पड़ रहे हैं। यह खुलासा नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे 5 (NFHS-5) की रिपोर्ट से हुआ है। देश के 22 प्रदेशों के फेज एक की रिपोर्ट 2019-2020 की है, जिसमे यह तथ्य पाया गया है।
बिहार में 15 प्रतिशत ऐसे लोग हैं, जो शराब पी रहे है,जिसमे शहरों में 0.5 प्रतिशत तो गांव में 0.4 प्रतिशत महिलाएं पी रही हैं शराब। ये तो यह बात हुई कि जिनकी सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए सरकार ने ऐसा फैसला लिया था, अब वही महिलाएं शराब का सेवन करने लगी।

“नाबालिग भी पी रहे है शराब”
शराब को लेकर जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि गांव में आज भी शहरों की अपेक्षा अधिक शराब का सेवन किया जा रहा है। पूर्ण शराबबंदी वाले प्रदेश में यह चौंकाने वाली रिपोर्ट है। रिपोर्ट के अनुसार शहरों में रहने वाले 15 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्ग के 14 प्रतिशत लोग शराब पी रहे हैं, जबकि गांव में 15 वर्ष से ऊपर के शराब पीने वालों की आबादी 15.8 प्रतिशत है।
वहीं एनसीआरबी के रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 2017 के मुकाबले 2018 में महिलाओं के खिलाफ हुई हिंसा में 15% की वृद्धि देखी गई। तो किसी भी तरह की सुधार तो देखी नही जा रही। अभी भी यही हाल है, क्योंकि सख्त कार्यवाई ना होने के कारण लोग सहजता के साथ शराब की गैर कानूनी तरीके से खरीददारी और उपभोग कर रहे है।
तो अब सरकार की क्या जिम्मेदारी बनती है? व्यवस्था को ऐसे ही, कानून लागू करके छोड़ दिया जाए या फिर उसका सही तरीके से संचालन हो?

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