हारमोंस को संतुलित रखने के लिए आवश्यक है यह आसन! जानिए फायदे!

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हारमोंस हमारे शरीर के सबसे उपयोगी तत्व माने जाते हैं, इनके माध्यम से हमारा शरीर नियंत्रित रहता है! शरीर के स्वस्थ रहने के लिए पोषक तत्वों और हार्मोंन्स का संतुलन बना रहना आवश्यक माना जाता है। इसमें होने वाली किसी भी प्रकार की समस्या शरीर में कई प्रकार की दिक्कतों को बढ़ा देती है। विशेषकर हार्मोनल असंतुलन की समस्या पिछले कुछ समय में काफी बढ़ती हुए देखी गई है। हार्मोन्स एक प्रकार के रसायन हैं जो विशेष कोशिकाओं द्वारा स्रावित होते रहते हैं। आमतौर पर अंतःस्रावी ग्रंथियों के भीतर इनका निर्माण होता है और यह रक्तप्रवाह के माध्यम से शरीर के विभिन्न हिस्सों में संदेश भेजने का काम करते हैं। इसमें होने वाले असंतुलन की समस्या संपूर्ण शारीरिक कार्यप्रणाली को बाधित कर सकती है। 

हार्मोनल असंतुलन की स्थिति में शरीर में कई प्रकार के लक्षण नजर आने लगते हैं, जैसे वजन बढ़ना,कंधों के बीच चर्बी का बढ़ना-कूबड़, अस्पष्टीकृत थकान, मांसपेशियों में कमज़ोरी और दर्द जैसी समस्याएं। विशेषज्ञों के मुताबिक शरीर में हार्मोंन्स के संतुलन को गड़बड़ाने से बचाने के लिए नियमित रूप से योग-व्यायाम की आदत आपके लिए विशेष लाभकारी हो सकती है। योग के अभ्यास की आदत हार्मोनल असंतुलन की समस्या को ठीक करने में मदद करते हैं।

हार्मोनल असंतुलन से बचाव या जिन लोगों को यह समस्या है उसके जोखिम को कम करने के लिए भुजंगासन योग के अभ्यास की आदत काफी फायदेमंद हो सकती है। नियमित रूप से भुजंगासन योग का अभ्यास थायराइड फंक्शन और ओवरी की स्थिति में सुधार करने में भी मदद करता है, जिससे हार्मोन्स की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इसके अलावा यह योगासन पीठ और कमर दर्द की दिक्कतों को कम करने के साथ पेट के अंगों को स्वस्थ रखने में भी सहायक माना जाता है।

शलभासन योग के नियमित अभ्यास की आदत भी आपमें हार्मोंनल इंबैलेंस की दिक्कतों को कम करने में काफी मददगार हो सकती है। विशेषकर हार्मोनल असंतुलन के कारण महिलाओं में होने वाली पीसीओएस जैसी दिक्कतों के जोखिम को कम करने में इस योग के अभ्यास की आदत काफी लाभकारी हो सकती है। शलभासन योग का नियमित अभ्यास शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में भी कई प्रकार से फायदेमंद है।शलभासन एक संस्कृत शब्द है, जिसमें शलभ का अर्थ है टिड्डी या टिड्डा। इस आसन को करते समय शरीर टिड्डे के समान नजर आता है, इसलिए इसे शलभासन नाम दिया गया है। इस आसन को घेरंडा संहिता में लिखे गए प्रमुख 32 योगासनों में से एक माना जाता है। अंग्रेजी में इसे लोकस्ट पोज और ग्रासहोपर पोज के नाम से भी जाना जाता है। वहीं, यह आम हिंदी भाषा में टिड्डी मुद्रा के नाम से भी प्रचलित है।शलभासन करने से शरीर को कई तरह से शारीरिक और मानसिक लाभ मिल सकते हैं। वहीं, इस बता का भी ध्यान रखा जाए कि अगर कोई किसी गंभीर स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहा है, तो डॉक्टरी उपचार जरूरी है। योग का अभ्यास केवल रोगों से बचे रहने और स्वस्थ जीवनशैली के लिए किया जा सकता है। यह किसी भी बीमारी का त्वरित इलाज नहीं है।वजन कम करने में यह आसन लाभकारी हो सकता है। इस आसन के अभ्यास से पेट की चर्बी कम हो सकती है। एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) की वेबसाइट पर प्रकाशित एक अध्ययन में उन सभी योगासनों का जिक्र मिलता है, जो मेटाबॉलिज्म रिस्क प्रोफाइल (जिसमें मोटापा भी शामिल है) में सुधार करने में सहायक हो सकते हैं। इन योगासनों में शलभासन भी शामिल है। शोध में इस बात का भी जिक्र मिलता है कि ये आसन कमर के माप को कम करने में भी सहायक हो सकते हैं! वहीं, एक अन्य शोध के अनुसार, शलभासन का अभ्यास घ्रेलिन (Ghrelin – भूख को बढ़ाने वाला हार्मोन) को मॉड्यूलेट करने में मदद कर सकता है, जिससे मोटापे को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है, शलभासन करते समय कूल्हे और हड्डियों के जोड़ के साथ पेट की मांसपेशियां अधिकतम तनाव (स्ट्रेच) का अनुभव करती हैं। इसका अभ्यास उन्हें मजबूत बना सकता है। शोध में जिक्र मिलता है कि यह आसन पीठ और पेट की मांसपेशियों को मजबूती प्रदान कर सकता है। साथ ही यह रीढ़ को लचीला बनाने में भी सहयोग कर सकता है।

जिन लोगों को हार्मोनल समस्याएं होती हैं, विशेषज्ञ उन्हें कैमल पोज के नियमित अभ्यास की सलाह देते हैं। कैमल पोज या उष्ट्रासन, हार्मोनल असंतुलन के कारण मासिक धर्म चक्र में होने वाली अनियमितता को कम करने के साथ शरीर के अंगों में रक्त के संचार को ठीक बनाए रखने में काफी सहायक है। रोजाना इस योग के अभ्यास की आदत बनाकर आपको कई प्रकार से लाभ मिल सकता है।