एक ऐसा भारतीय जिसके आगे आज भी चीन सिर झुकाता है! भारत में चीन के राजदूत सन वाइडोंग ने पिछले दिनों महाराष्ट्र के शोलापुर जाकर भारतीय डॉक्टर द्वारकानाथ कोटनिस को श्रद्धांजलि दी। वाइडोंग ने इस दौरान उनके योगदान को भी याद किया। उन्होंने बताया कि कैसै द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान डॉक्टर कोटनिस ने जापान की आक्रामकता के खिलाफ डॉ. कोटनिस ने चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी की मदद की थी। वाइडोंग की मानें तो चीन आज भारत के साथ उसी भावना के साथ दोस्ती को आगे बढ़ाना चाहता है जिसके तहत डॉ. कोटनिस ने मदद की थी। वाइडोंग पहली बार शोलापुर गए थे। आज चीन के हर घर में डॉ. कोटनिस को सभी लोग जानते हैं। डॉक्टर कोटनिस ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जिस तरह की मदद की, उसके आगे चीन के पहले नेता माओ त्से तुंग भी उनके आगे नतमस्तक थे।
डॉक्टर शांताराम कोटनिस जिन्हें चीन में के दिहुआ के नाम से जानते हैं। उनका जन्म महाराष्ट्र के शोलापुर में 10 अक्टूबर 1910 को हुआ था। डॉक्टर कोटनिस उन पांच भारतीय डॉक्टरों में शामिल थे जिन्हें सन् 1938 में दूसरे चीन-जापान युद्ध के दौरान मदद के लिए भेजा गया था। आज भी डॉक्टर कोटनिस को भारत-चीन के बीच दोस्ती का प्रतीक माना जाता है। हर साल चीन में शहीदों को याद करने के लिए किंगमिंग फेस्टिवल का आयोजन होता है।
इस महोत्सव में कनाडा के डॉक्टर नोरमान बेथुने के साथ डॉक्टर कोटनिस को भी श्रद्धांजलि दी जाती है। डॉक्टर कोटनिस ने पहले चीन की क्रांति के दौरान और फिर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान चीन की मदद की थी। चीनी क्रांति का नेतृत्व डॉक्टर माओ त्से तुंग ने किया था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की तरफ से 5 डॉक्टरों के दल को चीन रवाना किया गया था। साल 1942 में उन्होंने चीन में कम्युनिस्ट पार्टी को ज्वॉइन किया। इसी साल 38 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था।
भारत और चीन ने जब राजनयिक संबंधों के दो साल पूरे होने का जश्न मनाया तो उस दौरान कोटनिस का जिक्र भी किया गया। चीनी क्रांति के मुश्किल समय में भी डॉक्टर कोटनिस ने जिस तरह से चीन की मदद की उसकी तारीफ माओ ने भी की थी। चीन के अधिकारी डॉक्टर कोटनिस को चीनी नागरिकों का अच्छा दोस्त और वह योद्धा बताते हैं जो एक आवाज पर चीन की मदद के लिए चला आया था।
चीन के कई राजनयिकों का मानना है कि उन्होंने दोनों देशों के बीच रिश्तों का एक नया अध्याय शुरू किया था। ऐसे में दोनों देशों की नई पीढ़ियों को उनके बारे में जरूर बताना चाहिए। डॉक्टर कोटनिस की सेवा और उनके योगदान के लिए चीन के कई शहरों में उनकी मूर्तियां लगाई गई हैं। उन्होंने एक चीनी नागरिक गुओ किंगलान से शादी की थी और साल 2012 में उनका निधन हो गया था।
गुओ और डॉक्टर कोटनिस की मुलाकात एक कार्यक्रम के दौरान हुई थी। डॉक्टर कोटनिस काफी अच्छी चीनी बोल लेते थे और गुओ इससे काफी प्रभावित हुई थीं। गुओ एक नर्स थीं और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सेवाएं दे रही थीं। दोनों के बीच इसी युद्ध में प्यार आगे बढ़ा और उन्होंने साल 1941 में शादी कर ली। दोनों का एक बेटा था जिसका नाम उन्होंने यिनहुआ रखा था। ‘यिन’ यानी भारत और ‘हुआ’ यानी चीन। यहां से ही वह चीन के नागरिकों के दिलों पर राज करने लगे थे। गुओ कई बार भारत आई थीं और वह भारत से काफी प्यार करती थीं।
गुओ ने डॉक्टर कोटनिस की याद में एक किताब, ‘माई लाइफ विद कोटनिस’ लिखी थी। इस किताब में गुओ ने लिखा था, ‘भारत और भारत के लोग बहुत प्यारे हैं और यह उनकी सभ्यता और संस्कृति का सबसे बड़ा प्रतीक है।गुओ और डॉक्टर कोटनिस की मुलाकात एक कार्यक्रम के दौरान हुई थी। डॉक्टर कोटनिस काफी अच्छी चीनी बोल लेते थे और गुओ इससे काफी प्रभावित हुई थीं। गुओ एक नर्स थीं और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सेवाएं दे रही थीं। दोनों के बीच इसी युद्ध में प्यार आगे बढ़ा और उन्होंने साल 1941 में शादी कर ली। दोनों का एक बेटा था जिसका नाम उन्होंने यिनहुआ रखा था। ‘यिन’ यानी भारत और ‘हुआ’ यानी चीन। यहां से ही वह चीन के नागरिकों के दिलों पर राज करने लगे थे। गुओ कई बार भारत आई थीं और वह भारत से काफी प्यार करती थीं। शायद इस वजह से ही भारत को दुनिया में एक अलग स्थान मिला हुआ है।’ सितंबर 2020 में उनकी कांसे की एक प्रतिमा का अनावरण शिजियाझुआंग में किया गया था। उनके नाम पर शिजियाझुआंग के दिहुआ मेडिकल साइंस सेंकेंडरी स्पेशलाइज्ड स्कूल का नाम पड़ा। इसके अलावा उनके नाम पर कई मेमोरियल इस शहर में हैं जो कि हेबई प्रांत की राजधानी है।