हाल ही में दिल्ली से लेकर बेंगलुरु तक पार्टियों ने अपना अपना दमखम दिखाया है! अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने का दावा कर रही है तो लगातार दो बार से मात खा रहा विपक्ष इस बार करो या मरो के मूड में दिख रहा है। विपक्ष को एड़ी-चोटी का जोर लगाते देखकर बीजेपी ने भी अपने गठबंधन दलों का कुनबा बढ़ाने पर गंभीरता से कदम बढ़ा दिया है। दोनों खेमों के बीच अपनी-अपनी ताकत बढ़ाने की पुरजोर कोशिशों का ही नतीजा है कि आज विपक्ष जहां बेंगलुरु में पटना मीटिंग से आगे का खाका खींचने के लिए जुट रहा है, तो बीजेपी देश की राजधानी दिल्ली में 38 दलों के साथ अपने बढ़ते कुनबे का प्रदर्शन करने जा रही है। पटना में विपक्षी एकजुटता की कवायद में हुई पहली बैठक के बाद बीजेपी ने एनसीपी के दो-फाड़ करके बड़ा झटका दिया था। शरद पवार जैसे बड़े विपक्षी चेहरे की पार्टी में फूट से विपक्षी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को उस प्रदेश में दूसरी बार बड़ा झटका लगा था जहां वो सबसे ज्यादा मजबूत नजर आ रही थी। बीजेपी ने महाराष्ट्र में यूपीए को पहला झटका शिवसेना को तोड़कर दिया था। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना की टूट के बाद कांग्रेस-एनसीपी के साथ वाली उसकी सरकार भी चली गई थी। बहरहाल, मौका लोकसभा चुनाव का है तो विपक्ष, बीजेपी के दिए घाव सहलाता नहीं रह सकता है, उसे फिर से उठ खड़ा होने की कोशिश तो करनी ही होगी। यही वजह है कि यूपीए को न केवल एकजुट रखने बल्कि इसे विस्तार देने की जरूरत महसूस हुई है। इधर, बीजेपी भी ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की रणनीति पर आगे बढ़ रही है। विपक्ष बेंगलुरु में 26 दलों के साथ एकजुटता दिखाएगा तो जवाब में एनडीए दिल्ली में 38 दलों को जुटा रही है।
बीजेपी विरोधी एकता के लिए विपक्ष के दूसरे सम्मेलन में लगभग 26 दलों के नेता बेंगलुरु में हैं। सभी दलों ने उम्मीद जताई है कि मंगलवार की बैठक में लोकसभा चुनाव के लिए राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन का खाका तैयार हो जाएगा। हालांकि, गठबंधन की कवायद एक सतत प्रक्रिया है जिसमें तरह-तरह के मुद्दे मिल-बैठकर सुलझाते रहने होंगे। राज्य स्तर पर गठबंधन के साथियों के बीच सीटों की साझेदारी का फॉर्म्युला हो या नए गठबंधन का न्यूनतम साझा कार्यक्रम तैयार करना, सभी गंभीर और संवेदनशील मुद्दों पर गठबंधन दलों के बीच एकराय बनाने में भारी मशक्कत होगी। इनसे भी बड़ा लक्ष्य राज्य दर राज्य गठबंधन को आकार देना और मतदाताओं के मन में मोदी सरकार के खिलाफ तगड़ा नैरेटिव बिठाना है।
विपक्षी खेमे में अव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए, पार्टियां थोड़ी सहम गई हैं। इस कारण सबको साथ आने का एक नया संकल्प लेने का माहौल तैयार हो गया है। पार्टियों के बीच जमीनी जटिलताएं, राज्यों में टकराव की स्थिति, उनका अहंकार और ऊपर से भाजपा के तोड़ो-फोड़ो जैसे कारणों से अभियान विपक्षी खेमे के लिए एकजुटता का कार्यक्रम काफी पेचीदा दिख रहा है। विपक्ष के सामने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ नैरेटिव तैयार करने की पहाड़ जैसी चुनौती भी है। लोकतंत्र को खतरा, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और अमीरों की सरकार जैसे नैरेटिव चलते नहीं दिख रहे हैं। ऊपर से प्रधानमंत्री मोदी की टक्कर का कोई नेता नहीं होना विपक्ष की बड़ी कमियों में शुमार है।
विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर एकजुटता को बेकरार तो है, लेकिन वह इस बात को लेकर भी सतर्क है कि गठबंधन के लिए उसे एक हद से ज्यादा ‘बलिदान’ नहीं करना पड़े। दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने सर्विसेज के मुद्दे पर केंद्र सरकार के अध्यादेश का विरोध किए जाने की मांग कांग्रेस से मनवा ली है। ऐसे में कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती है कि आप की देखादेखी विभिन्न राज्यों के क्षत्रप भी अपनी-अपनी महत्वाकांक्षा उससे पूरी करने की उम्मीद न लगा बैठें।
चुनौतियों के पहाड़ पर बैठे विपक्षी कुनबे के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आमजन के बीच कायम पैठ से पार पाना बहुत मुश्किल है। आज भी पीएम के कही बातों की मतदाताओं के बीच अच्छी-खासी अपील होती है। पीएम ने कांग्रेस के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों के भ्रष्टाचार और परिवारवाद को बड़ा मुद्दा बना दिया है जिसका आम जनता पर सकारात्मक असर होता दिख रहा है जबकि विपक्ष एजेंसियों का दुरुपयोग किए जाने का विमर्श गढ़ने में कामयाब होता नहीं दिख रहा है।
वहीं, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने एक ट्वीट में कहा कि एक तरफ विकास की राजनीति के लिए पीएम मोदी के नेतृत्व में एकजुट एनडीए है तो दूसरी तरफ विपक्ष परिवार की राजनीति के लिए बेमेल बनाने की कोशिश कर रहा है। प्रधान ने कहा कि विपक्ष की एकता एक भ्रम है जहां स्वार्थी राजनीति और भ्रष्टाचार के दलदल के अलावा कुछ नहीं है। नड्डा ने विपक्षी एकता को ‘भानुमति का कुंबा’ करार देते हुए कहा, ‘कहीं ईंट, कहीं बाधा, भानुमति ने परिवार को जोड़ा।
उधर, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि एकतरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाला ‘जांचा-परखा गठबंधन’ है तो दूसरी तरफ ‘कांग्रेस की बेवफाई वाला बंधन’ है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के हाथ में ‘बेवफाई का खंजर’ भी है जिससे क्षेत्रीय दलों को सावधान रहना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘जो क्षेत्रीय राजनीतिक दल आज कांग्रेस का हाथ थामने की कोशिश में लगे हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि कांग्रेस हमेशा से ही क्षेत्रीय दलों को राष्ट्रीय हितों के लिए खतरा बताती रही है, जबकि BJP क्षेत्रीय दलों को क्षेत्रीय आकांक्षाओं और राष्ट्रीय हितों की ताकत मानती है।’