मुंबई में दादर के ब्रॉडवे सिनेमा के सामने का फुटपाथ। लखनऊ से भागकर आए एक नौजवान के लिए ये फुटपाथ ही उसका घर था। यहीं खाना, रहना और संगीत साधना करना। इस नौजवान का सपना था कि एक दिन इसी सिनेमा में उसकी भी फिल्म लगेगी।
ये सपना सच हुआ 1952 में। ‘बैजू बावरा’ नाम की फिल्म इसी सिनेमा में रिलीज हुई। फिल्म सुपरहिट रही। फुटपाथ पर सोने वाले नौजवान ने बैजू बावरा में संगीत दिया था। हम बात कर रहें हैं भारतीय सिनेमा में अमर संगीत देने वाले नौशाद की।
25 दिसंबर 1919 को लखनऊ के एक मुस्लिम परिवार में जन्मे नौशाद के घर में संगीत पर पाबंदी थी। अब्बा ने कहा कि अगर इस घर में रहना है तो संगीत छोड़ना पड़ेगा, लेकिन नौशाद ने संगीत के लिए घर छोड़ दिया। भागकर सपनों के शहर मुंबई आ गए।
कुछ दिन एक परिचित के यहां रहे, लेकिन मामला जमा नहीं तो दादर आ गए और फुटपाथ को ही अपना ठिकाना बना लिया। यहां उन पर उस्ताद झंडे खान की नजर पड़ी। 40 रुपए महीने की तनख्वाह पर नौशाद को काम पर रख लिया।
इसके बाद कंपोजर खेमचंद प्रकाश ने उन्हें फिल्म ‘कंचन’ में असिस्टेंट का काम दिया। अब महीने के 60 रुपए मिलने लगे। यहां से नौशाद के फिल्मी सफर ने हल्की रफ्तार पकड़ी। नौशाद को 1940 में पहली बार एक संगीतकार के रूप में काम करने का मौका मिला। फिल्म थी ‘प्रेम नगर’, लेकिन किन्हीं वजहों से फिल्म रिलीज नहीं हो पाई।
1944 में फिल्म ‘रतन’ आई। ये फिल्म चल निकली। इतनी चली की फिल्म के बजट से ज्यादा कमाई संगीत की रॉयल्टी से ही हो गई। इसके बाद 1954 में फिल्म आई ‘बैजू बावरा’। इस फिल्म के लिए नौशाद को बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला।
जब प्यार किया तो डरना क्या…
1960 में फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ रिलीज हुई। भारतीय सिनेमा में ये फिल्म मील का पत्थर साबित हुई। इस फिल्म का गाना ‘जब प्यार किया तो डरना क्या…’ लोगों की जुबान पर आज भी छाया हुआ है। इस गाने के पीछे नौशाद का ही हाथ था। इस फिल्म में नौशाद का संगीत इतना पसंद किया गया कि ‘मुगल-ए-आजम’ को जब दोबारा कलर में रिलीज किया गया, तब भी संगीत की जिम्मेदारी नौशाद को ही मिली। नौशाद ने ये काम इतनी खूबी से किया कि ब्लैक एंड व्हाइट और कलर दोनों फिल्मों के संगीत में सुनने वाले को कोई फर्क ही महसूस न हो।
नौशाद ने न सिर्फ फिल्मों में उम्दा संगीत दिया, बल्कि मोहम्मद रफी, सुरैया और शमशाद बेगम जैसे गायकों को पहला मौका भी दिया। भारत की तरफ से ऑस्कर में भेजे जानी वाली पहली फिल्म ‘मदर इंडिया’ का संगीत भी नौशाद ने ही दिया था।
इसके अलावा कोहिनूर, पाकीजा, गंगा-जमुना, बाबुल, मेरे महबूब जैसी हिट फिल्मों में भी नौशाद ने ही संगीत दिया था। 1981 में नौशाद अली को दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। 2005 में आई फिल्म ‘ताजमहल’ उनके करियर की आखिरी फिल्म थी। 5 मई 2006 को उनका निधन हो गया।
कार्ल मार्क्स का जन्म
आज ही के दिन 1818 में जर्मनी के ट्रायर में एक यहूदी परिवार में कार्ल मार्क्स का जन्म हुआ। उनके पिता हेईनरीच मार्क्स वकील थे। उन्होंने बॉन विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा प्राप्त की। उसके बाद बर्लिन विश्वविद्यालय चले गए। वहां उन्होंने दर्शन और इतिहास का अध्ययन किया। यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान ही उनकी राजनीति में दिलचस्पी बढ़ी।
1842 में कार्ल मार्क्स ने पत्रकारिता करना शुरू किया। उन्होंने एक न्यूज पेपर में एडिटर के तौर पर काम किया।
इसके बाद मार्क्स ने 1844 में अपने दोस्त फ्राइडरिच एंगल्स के साथ मिलकर ‘होली फैमिली’ नाम की किताब छपवाई। कार्ल्स मार्क्स ने साल 1848 में ”द कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो” की रचना की थी। उनकी यह रचना काफी प्रसिद्ध हुई। इस रचना को विश्व की सबसे प्रभावशाली राजनीतिक रचनाओं में से एक माना गया है।
1867 में उन्होंने दास कैपिटल का पहला अंक प्रकाशित किया। मार्क्स इसके दूसरे अंक पर काम कर रहे थे, लेकिन उसी दौरान उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद एंगल्स ने बचे हुए अंकों को संग्रहित कर प्रकाशित किया। यह इतनी प्रसिद्ध हुई कि उनकी सबसे अधिक बिकने वाली किताबों में से एक बन गई। मार्क्स को आधुनिक समाजवाद का जनक माना जाता है।
रूसी क्रांति
कार्ल मार्क्स की मौत के बाद 1917 में रूसी क्रांति हुई। इस क्रांति के नायक व्लादिमिर लेनिन ने मार्क्सवाद के विचारों से प्रभावित होकर रूस में तीन सदी पुराने जार शासन को उखाड़ फेंका और सर्वहारा सरकार की स्थापना की। इस क्रांति के बाद कई देश मार्क्स के विचारों से प्रभावित होकर कम्युनिस्ट होते चले गए।
मार्क्स का कहना था कि खेत, मशीनें, फैक्ट्री आदि जितने भी उत्पादन के साधन हैं, इन पर मालिकों का पूरा हक होता है। जबकि उत्पादन में सारी मेहनत मजदूरों की होती हैं, लेकिन उत्पादन का कोई हिस्सा उन्हें नहीं मिलता। मालिक हमेशा ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना चाहता है, यही वर्ग संघर्ष का बड़ा कारण है।