Sunday, December 22, 2024
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क्या कांग्रेस के दुश्मन थे अंबेडकर साहेब?

कहानियों के मुताबिक अंबेडकर साहेब कांग्रेस के दुश्मन थे! मध्य प्रदेश बीजेपी अध्‍यक्ष वीडी शर्मा ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस ने भीमराव अंबेडकर को चुनाव में हराने का पाप किया। भोपाल में अनुसूचित मोर्चा के सम्मेलन में शर्मा ने कहा कि अंबेडकर ने भारत में सामाजिक एकता के लिए संविधान बनाया, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें लोकसभा चुनाव में हराने का षडयंत्र रचा। यह सच है कि कांग्रेस के चलते अंबेडकर को एक नहीं, दो-दो बार चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। इतना ही नहीं, कांग्रेस पार्टी अंबेडकर के संविधान सभा में प्रवेश की भी इच्छुक नहीं थी। कहा जाता है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू के कहने पर तत्कालीन मुंबई प्रांत से संविधान सभा में उनकी एंट्री में अड़ंगे लगाए गए थे। अंबेडकर को साल 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। इससे पहले जब जवाहरलाल के नेतृत्व में पहली अंतरिम सरकार बनी थी तो अंबेडकर इसमें कानून मंत्री थे, लेकिन अनुसूचित जातियों को लेकर कांग्रेस की नीतियों से वे संतुष्ट नहीं थे। हिंदू कोड बिल पर कांग्रेस से मतभेद के चलते 27 सितंबर, 1951 को उन्होंने अंतरिम सरकार से इस्तीफा दे दिया था। तब उन्होंने नेहरू पर अपने बयान से पलटने का आरोप भी लगाया था। इसके बाद वे अनुसूचित जातियों को संगठित करने में जुट गए। उन्होंने शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन नामक संगठन बनाया था। वे इसे मजबूत करने में लग गए।

अंतरिम सरकार से इस्तीफे के करीब एक साल बाद देश में पहला आम चुनाव हुआ और अंबेडकर ने भी इसमें लेने का फैसला किया। उनकी पार्टी ने देशभर में 35 उम्मीदवार खड़े किए, लेकिन दो को ही जीत मिली। अंबेडकर खुद महाराष्ट्र की उत्तरी मुंबई सीट से चुनाव लड़े थे। कांग्रेस ने उनके खिलाफ एनएस काजोलकर को खड़ा किया। काजोलकर दूध व्यवसायी थे और अंबेडकर के सहयोगी रह चुके थे। नेहरू ने काजोलकर के लिए चुनावी सभाएं आयोजित करवाई थीं। वे खुद भी दो बार इस लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी के प्रचार के लिए पहुंचे थे। चुनाव में अंबेडकर को एक लाख 23 हजार 576 वोट मिले जबकि काजोलकर को एक लाख 37 हजार 950। इस तरह अंबेडकर को 14 हजार से ज्यादा वोटों से हार का सामना करना पड़ा था।

अंबेडकर की हार का सिलसिला यहीं नहीं रुका। कांग्रेस ने 1954 में बंडारा लोकसभा के लिए हुए उपचुनाव में अंबेडकर को एक बार फिर हराया। अंबेडकर अपनी हार से बेहद निराश हुए थे। खासकर 1952 में काजोलकर की जीत अप्रत्याशित थी। कांग्रेस ने कहा कि अंबेडकर सोशल पार्टी के साथ थे। इसलिए उसके पास उनका विरोध करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। अंबेडकर को हराने के 18 साल बाद 1970 में कांग्रेस सरकार ने काजोलकर को समाजसेवा के क्षेत्र में पद्मश्री से सम्मानित किया था।

कांग्रेस को अंबेडकर की समाज सुधारक वाली छवि की चिंता थी। पार्टी ने उन्हें संविधान सभा से भी दूर रखने की योजना बनाई। इसके लिए कांग्रेस ने हर तिकड़म अपनाया। संविधान सभा में भेजे गए शुरुआती 296 सदस्यों में अंबेडकर नहीं थे। कांग्रेस के प्रभाव के चलते अंबेडकर को बॉम्बे के अनुसूचित जाति संघ का साथ भी नहीं मिल पाया। बॉम्बे के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीजी खेर ने यह सुनिश्चित किया कि अंबेडकर संविधान सभा के लिए न चुने जाएं। इसके बाद बंगाल के दलित नेता जोगेंद्रनाथ मंडल ने अंबेडकर की मदद की। उन्होंने मुस्लिम लीग की मदद से अंबेडकर को संविधान सभा में पहुंचाया।

अंबेडकर की मुश्किलें हालांकि यहीं खत्म नहीं हुईं। जिन जिलों के वोटों से वे संविधान सभा में पहुंचे थे, वो हिंदु बहुल होने के बावजूद पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बन गए। नतीजतन अंबेडकर पाकिस्तान की संविधान सभा के सदस्य बन गए।कांग्रेस के प्रभाव के चलते अंबेडकर को बॉम्बे के अनुसूचित जाति संघ का साथ भी नहीं मिल पाया। बॉम्बे के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीजी खेर ने यह सुनिश्चित किया कि अंबेडकर संविधान सभा के लिए न चुने जाएं। इसके बाद बंगाल के दलित नेता जोगेंद्रनाथ मंडल ने अंबेडकर की मदद की। उन्होंने मुस्लिम लीग की मदद से अंबेडकर को संविधान सभा में पहुंचाया। भारत के संविधान सभा की उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई। कोई रास्ता नहीं देख अंबेडकर ने धमकी दी कि वे संविधान को स्वीकार नहीं करेंगे और इसे राजनीतिक मुद्दा बनाएंगे। इसके बाद ही कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें जगह देने का फैसला किया। इसी दौरान बॉम्बे के एक सदस्य एमआर जयकर ने संविधान सभा में अपना पद से इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस पार्टी ने उनकी जगह अंबेडकर को संविधान सभा में भेजने का फैसला किया।

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