कश्मीर के विलय में नेहरू की गलती को सभी लोग गिनाते जा रहे हैं! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर के भारत में विलय को लेकर देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर गलतियां करने का आरोप मढ़ा तो बात बहुत आगे निकल गई। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने पीएम मोदी के बयानों को तथ्यों से इतर करार दिया तो केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू नेहरू के बयानों की पोटली खोल दी। उन्होंने सिलसिलेवार ट्वीट में जयराम रमेश के दावों का खंडन किया और बताया कि नेहरू ने खुद लोकसभा में कश्मीर के विलय को लेकर जो बातें कहीं, पीएम मोदी के आरोप उसी पर आधारित हैं। रिजिजू ने जयराम रमेश पर झूठ बोलने का भी आरोप लगाया।
रिजिजू ने अपने ट्वीट में कहा, ‘जवाहर लाल नेहरू के संदिग्ध भूमिका का बचाव करने के लिए लंबे समय से कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के बारे में ऐतिहासिक झूठ बोला जा रहा है। वह ऐतिहासिक झूठ यह है कि महाराजा हरि सिंह कश्मीर का भारत में विलय के मुद्दे पर घबराए हुए थे। जयराम रमेश का झूठ उजागर करने के लिए नेहरू के बयान को ही दोहराता हूं।’उन्होंने दूसरे ट्वीट में लिखा कि नेहरू ने शेख अब्दुल्ला के साथ समझौते के बाद 24 जुलाई 1952 को लोकसभा को संबोधित किया था। नेहरू ने कहा था कि महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर के भारत में विलय के लिए पहली बार उनसे जुलाई 1947 में बातचीत की थी। यानी, स्वतंत्रता मिलने से एक महीने पहले। लेकिन नेहरू ने महाराजा की बातों की अनसुनी कर दी और उन्हें फटकार लगाई।
रिजिजू ने नेहरू के लोकसभा में दिए भाषण की कॉपी का स्क्रीन शॉट अटैच किया है। इसमें लिखा है, ‘जहां तक बात कश्मीर की है तो 15 अगस्त से भी पहले, जहां तक मुझे याद आ रहा है जुलाई में ही, हमारे पास उसको लेकर अनौपचारिक प्रस्ताव आया। हमने सलाह दी कि कई कारणों से जम्मू और कश्मीर स्टेट का विशेष स्थान है।’वो आगे लिखते हैं, ‘नेहरू के वक्तव्यों पर गौर कीजिए तो पता चलता है कि महाराजा हरि सिंह ने नहीं, खुद नेहरू ने ही कश्मीर के भारत में विलय को टाला। महाराजा ने दूसरे प्रिंसली स्टेट्स की तरह जुलाई 1947 में ही नेहरू से संपर्क किया था। सभी राज्यों के विलय पत्र स्वीकार कर लिए गए लेकिन कश्मीर का प्रस्ताव खारिज कर दिया गया।’
इस ट्वीट के साथ केंद्रीय मंत्री ने दो स्क्रीनशॉट्स शेयर किए। उन्होंने कुछ पंक्तियों में घेरा लगाय है। उनमें कहा गया है, ‘हमारे पास कश्मीर का अनौपचारिक प्रस्ताव आया तो हमने उसे सलाह दी कि नैशनल कॉन्फ्रेंस जैसे लोकप्रिय संगठनों और उनके नेताओं के साथ-साथ महाराजा की सरकार के साथ भी हमारे संपर्क हैं। हमने दोनों को सलाह दी कि कश्मीर का मामला सबसे हटकर है और वहां जल्दबाजी करना ठीक नहीं होगा। हमने आम सिद्धांत बनाया कि कि खासकर कश्मीर के लोगों की राय ली जानी चाहिए। यह विभाजन और आजादी से पहले की बात थी। हमने स्पष्ट कर दिया था कि महाराजा और उनकी सरकार ने अगर भारत में विलय की इच्छा जताई होती तो भी हम उनसे कुछ और चाहते। वो यह कि यह कदम उठाने से पहले वहां के लोगों की राय ली जाए। हम नहीं चाहते थे कि किसी चालाकी से कागज पर कुछ हासिल कर लें।’
दूसरे स्क्रीनशॉट में लिखा है, ‘इसलिए हमने जुलाई 1947 में स्पष्ट कर दिया कि जम्मू और कश्मीर पर कोई कदम उठाने में जल्बदाजी नहीं की जाए। हालांकि, वहां के कई नेता व्यक्तिगत रूप से विलय चाहते थे, लेकिन उन्हें अपने लोगों का मिजाज भी पता था, इसलिए उन्होंने कहा कि लोगों की तरफ से ही पहल होनी चाहिए ना कि महारीज की सरकार की तरफ से। तभी कोई फैसला टिकाऊ होगा। हमने उनकी बात पूरी तरह स्वीकार कर लिया। इसलिए हमने महाराजा की सरकार और लोकप्रिय नेताओं को संदेश दिया कि विलय के लिए जल्दबाजी नहीं की जाए। इसके लिए तब तक इंतजार किया जाना चाहिए जब तक कि लोगों की मंशा जानने का कोई तरीका नहीं निकाल लिया जाए।’
किरन रिजिजू ने आगे कहा कि नेहरू ने जुलाई 1947 में महाराजा हरि सिंह के विलय के आग्रह को न केवल ठुकराया था बल्कि अक्टूबर 1947 में उनकी फटकार भी लगाई थी। और जब पाकिस्तानी आक्रांता श्रीनगर के कई किलोमीटर अंदर घुस गए तब नेहरू ने क्या कहा ये भी जान लीजिए। इस ट्वीट में भी उन्होंने एक स्क्रीनशॉट शेयर किया है। इसमें लिखा है, ‘मुझे याद है कि संभवतः 27 अक्टूबर को हम दिनभर माथापच्ची करने के बाद शाम को इस नतीजे पर पहुंचे कि सभी जोखिमों और खतरों बावजूद हम ना महाराजा की अपील ठुकरा नहीं सकते और हमें अब उनकी मदद करनी ही होगी। यह आसान नहीं था।’
उन्होंने अपने पांचवें ट्वीट में नेहरू के बयानों पर आधारित तीन बिंदू निकाले। उन्होंने कहा कि कुल मिलाकर…
- महाराजा जुलाई 1947 में ही भारत में कश्मीर का विलय करना चाहते थे।
- नेहरू ने ही हरि सिंह का आग्रह ठुकरा दिया था।
- नेहरू ने कश्मीर के लिए कुछ ‘विशेष’ सोच रखा था और वो विलय से भी ज्यादा कुछ चाहते थे।
रिजिजू आगे पूछते हैं, ‘उन्होंने क्या खास सोच रखा था? वोट बैंक की राजनीति? नेहरू ने कश्मीर को अकेला अपवाद क्यों बनाया जबकि महाराजा भारत में विलय चाहते थे, फिर भी नेहरू बहुत कुछ और भी चाह रहे थे? वो बहुत कुछ ज्यादा क्या था?’ रिजीजू ने कहा, ‘सच्चाई यह है कि भारत आज भी नेहरू की गलत नीतियों की कीमत चुका रहा है।’ केंद्रीय मंत्री ने 24 जुलाई 1952 को लोकसभा में हुई बहस की कॉपी का लिंक भी शेयर किया।
उससे पहले, कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने गुजरात के आणंद जिले में सोमवार को एक रैली को संबोधित करते हुए पीएम मोदी के नेहरू पर दिए वक्तव्य की आलोचना की। उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री ने फिर से सच्चे इतिहास को झुठला दिया। वो जम्मू-कश्मीर पर नेहरू को कठघरे में खड़ा करने के लिए तथ्यों को नजरअंदाज करते हैं। ये सभी तथ्य राजमहोन गांधी द्वारा लिखित सरदार पटेल की जीवनी में दर्ज हैं।’
उन्होंने कहा कि महाराजा हरि सिंह ने विलय से इनकार किया था। तब वो आजादी का सपना देख रहे थे। लेकिन जब पाकिस्तान ने हमला किया तब हरि सिंह ने भारत में विलय किया। शेख अब्दुल्ला ने कश्मीर में भारत के विलय का मार्ग प्रशस्त किया क्योंकि वो नेहरू के दोस्त और प्रशंसक थे। अब्दुल्ला गांधी का भी आदर करते थे। सरदार पटेल तो 13 सितंबर 1947 तक कश्मीर का पाकिस्तान में विलय के समर्थक हुआ करते थे जब जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान विलय किया था।
जयराम रमेश ने अपने आखिरी ट्वीट में पुस्तक के पन्ने का एक स्क्रीनशॉट भी शेयर किया है। इसमें लिखा है, ‘कश्मीर पर वल्लभभाई की आनाकानी भरा रवैया 13 सितंबर 1947 तक रहा। उसी सुबह बलदेव सिंह को लिखी एक चिट्ठी में उन्होंने कहा था कि ‘अगर कश्मीर ने अगर दूसरा डोमीनियन (पाकिस्तान) जॉइन करने का फैसला लिया’ तो वो इसे स्वीकार कर लेंगे। उनका विचार उसी दिन बाद में बदल गया जब उन्हें पता चला कि पाकिस्तान जूनागढ़ के विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। अगर जिन्ना मुस्लिम शासक के अधीन एक हिंदू बहुल प्रांत को स्वीकार कर सकते हैं तो सरदार एक हिंदू शासक के अधीन मुस्लिम बहुल प्रांत से परहेज क्यों करते। उसी दिन से जूनागढ़ और कश्मीर, उनकी चिंता का कारण बन गए।’ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर परोक्ष हमला करते हुए कहा था कि सरदार वल्लभभाई पटेल ने अन्य रियासतों के विलय से संबंधित मुद्दों को चतुराई से हल किया, लेकिन ‘एक व्यक्ति’ कश्मीर मुद्दे को नहीं सुलझा सका।