पिछले कुछ महीनों में श्रीलंका में चल रही समस्याएं आप सभी देख पा रहे होंगे! भारत के दक्षिण में चारों तरफ से हिंद महासागर से घिरा देश श्रीलंका इस वक्त अभूतपूर्व आर्थिक संकट से जूझ रहा है। 2.2 करोड़ आबादी वाले इस देश में लोग रोजमर्रा के जरूरत की चीजों तक के लिए जूझ रहे हैं। कर्ज के बोझ तले पूरा देश दब चुका है। सरकारी खजाना खाली है। विदेशी मुद्रा भंडार सिकुड़ चुका है। आयात के जरिए जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे नहीं है। अप्रैल के बाद जनता एक बार फिर सड़कों पर है। शनिवार को राजधानी कोलंबो में हजारों उग्र प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति आवास को घेर लिया और वहां कब्जा कर लिया। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे अपने सरकारी आवास छोड़कर फरार हो चुके हैं। कहा तो ये भी जा रहा है कि वह देश छोड़कर फरार हो चुके हैं। प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने भी इस्तीफा दे दिया है।
राष्ट्रपति भवन पर प्रदर्शनकारियों का कब्जा
शनिवार को हजारों की तादाद में प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन को घेर लिया। वैसे तो सुरक्षा के बेहद कड़े इंतजाम थे लेकिन प्रदर्शनकारियों के जनसैलाब के आगे सब फेल हो गए। आक्रोशित भीड़ राष्ट्रपति भवन में घुस गई। पुलिस और सुरक्षाकर्मी मूकदर्शक बने रहे और देखते ही देखते राष्ट्रपति भवन पर प्रदर्शनकारियों का कब्जा हो गया। किचन, बेडरूम, लॉन, स्विमिंग पूल…सब जगह। स्विमिंग पूल पर नजर पड़ते ही तमाम प्रदर्शनकारी खुद को उसमें कूदने से नहीं रोक पाए। पूल में नहाते, उछलकूद करते प्रदर्शनकारियों की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं।सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें प्रदर्शनकारी सांसद रजिता सेनारत्ने पर हमला करते दिख रहे हैं। वीडियो में दिख रहा है कि प्रदर्शनकारी उन्हें दौड़ाकर पीट रहे हैं। भला हो उनके साथ सादे लिबास में चल रहे सुरक्षाकर्मियों की जो उन्हें भीड़ से बचाकर गाड़ी में ले जाते हैं और किसी तरह सांसद की जान बच पाती है। दो महीने पहले 9 मई में ऐसे ही एक विरोध-प्रदर्शन के दौरान गोटबाया की पार्टी के एक सांसद अमरकीर्ति अथुरकोरला और उनके सुरक्षाकर्मी की मौत हुई थी। उसे लेकर दो तरह के दावे किए जाते हैं। पहला ये कि प्रदर्शनकारियों ने उन्हें मार डाला। दूसरा ये कि सांसद ने एक प्रदर्शनकारी की हत्या कर दी फिर अपने रिवॉल्वर से खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली।
शनिवार के विरोध-प्रदर्शन का कार्यक्रम पहले से तय था। इसके मद्देनजर सरकार ने शुक्रवार को राजधानी कोलंबो को एक तरह से छावनी में तब्दील कर दिया था। हजारों की तादाद में हथियारबंद सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए थे। प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए शुक्रवार रात को ही कर्फ्यू का ऐलान कर दिया गया। हालांकि विपक्षी पार्टियों, सिविल सोसाइटी ग्रुप और बार असोसिएशन की तीखी प्रतिक्रिया के बाद कर्फ्यू हटा लिया गया। शनिवार सुबह से ही राष्ट्रपति भवन के पास प्रदर्शनकारियों की जुटान शुरू हो गई। भीड़ को रोकने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े, हवाई फायर किए लेकिन कुछ काम नहीं आया। प्रदर्शनकारी बेकाबू हो गए। उन्होंने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया।
एक कहावत है कर्ज लेकर घी पीना। श्रीलंका के हुक्मरानों ने एकदम यही किया। देश चीन के डेट ट्रैप यानी कर्ज के जाल में फंस गया। चीन ही नहीं, और भी देशों से श्रीलंका ताबड़तोड़ कर्ज लेता गया। विदेशी मुद्रा भंडार सिकुड़ता गया, कर्ज का बोझ बढ़ता गया। पिछले दो सालों में श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 70 फीसदी तक घट गया। फरवरी 2022 तक श्रीलंका के पास बस 2.31 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था। लेकिन विदेशी कर्ज करीब 12.55 अरब डॉलर का। 2022 में श्रीलंका को कर्ज भुगतान के लिए 4 अरब डॉलर की जरूरत है। इसमें 1 अरब डॉलर का इंटरनैशनल सॉवरेन बॉन्ड (ISB) भी शामिल है जिसकी मियाद जुलाई में पूरी हो रही है।
संकट और गहरा गया जब राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने टैक्स कटौती की लोकलुभावन घोषणा कर दी। 2019 के चुनाव में उन्होंने इसका वादा किया था। खास बात ये है कि 2019 में ही श्रीलंका भीषण आर्थिक संकट में घिर चुका था। सरकार की जितनी कमाई थी, खर्च से कहीं बहुत ज्यादा था। कारोबार लायक वस्तु और सेवाओं का उत्पादन अपर्याप्त था। इसके बावजूद टैक्स कटौती की गई। कोरोना महामारी की शुरुआत से चंद महीने पहले भारी टैक्स कटौती से सरकार की आमदनी घट गई। 2018 में जहां श्रीलंका सरकार की टैक्स से कमाई 10.5 अरब डॉलर थी वह 2019 में घटकर 9.7 अरब डालर और 2020 में 6.5 अरब डॉलर हो गई।
रही-सही कसर राष्ट्रपति गोटबाया की सनकभरी नीतियों ने पूरी कर दी। उनके ऊपर जैविक खेती का ऐसा भूत सवार हुआ कि 2021 में हर तरह के रासायनिक खादों पर प्रतिबंध लगा दिया। नतीजा ये हुआ कि कृषि क्षेत्र तबाह हो गया। पैदावार घट गई। आखिरकार सरकार को रासायनिक खादों पर से प्रतिबंध हटाना पड़ा लेकिन तबतक बहुत नुकसान हो चुका था।
कोरोना महामारी से श्रीलंका का टूरिज्म सेक्टर तबाह हो गया जो देश के लिए विदेशी मुद्रा में कमाई का तीसरा बड़ा स्रोत था। महामारी के मंद पड़ने के बाद पर्यटन उद्योग फिर से फलता-फूलता उससे पहले ही देश गंभीर आर्थिक संकट, भुखमरी और गृहयुद्ध जैसे हालात में फंस गया।