Thursday, September 19, 2024
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कमलापति त्रिपाठी ने कॉंग्रेस को क्या दी थी सलाह?

एक समय ऐसा था जब कमलापति त्रिपाठी ने कॉंग्रेस को सलाह दी थी! विंध्य क्षेत्र में एक जिला आता है मिर्जापुर। यह जनपद मूल रूप से वाराणसी और प्रयागराज के मध्य में है। मां विंध्यवासिनी की नगरी के यूं तो किस्से बहुत सारे हैं, लेकिन यहां की सियासत भी कम दिलचस्प नहीं है। जब बात लोकसभा चुनाव की आती है, तो मिर्जापुर लोकसभा सीट के चुनावी आंकड़े काफी कुछ बयां कर देते हैं। आजादी के बाद से इस जनपद में खुद के लिए अभेद्य किला बनाने वाली कांग्रेस आज वेंटिलेटर पर है। पिछले 40 वर्षों से कांग्रेस यहां से जीत के इंतजार में है। खैर यह जीत का इंतजार और भी लंबा होने वाला है, क्योंकि इस बार सपा-कांग्रेस गठबधंन के तहत सीट सपा के खाते है।आजादी के बाद हुए पहले चुनाव में कांग्रेस पार्टी के जॉन एन विल्सन चुनाव जीते थे। 1957 में हुए चुनाव में उन्हें पुनः जीत मिली। 1962 में फिर लोकसभा चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस के श्यामधर मिश्रा को जीत मिली। 1967 में हुए चुनाव में कांग्रेस को हार मिली। 1971 में एक बार फिर कांग्रेस ने वापसी की। कांग्रेस के प्रत्याशी अजीज इमाम ने जीत हासिल किया। 1977 में फिर कांग्रेस के हाथ से सीट चली गई, जिसके बाद 1980 में एक बार फिर कांग्रेस के उम्मीदवार अजीज इमाम को जीत मिली। 1984 में कांग्रेस के उम्मीदवार उमाकांत मिश्रा को आखिरी बार जीत मिली। राम मंदिर को लेकर जब लहर चली, उसके बाद कांग्रेस की वापसी नहीं हुई। जिले में उस लहर का असर था। कुछ चुनावों में कांग्रेस दूसरे स्थान पर रहीं, लेकिन वापसी नहीं हुई। उन्होंने बताया कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने मिर्जापुर को अनदेखा कर दिया। यहां पर मजबूत लोगों को पार्टी की कमान नहीं मिली और न ही मुफीद प्रत्याशी मैदान में उतारे। कांग्रेस के कमजोर होने का फायदा छोटे दल और भाजपा दोनों को मिला।

पूर्वांचल के कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने जीवन के अंतिम क्षणों में कांग्रेस के आलाकमान को कहा था कि संगठन के प्रति समर्पित मजबूत नेताओं को पार्टी की कमान दी जाए। संगठन में उनको तवज्जों मिली, लेकिन उनके सलाह पर अमल नहीं हुआ। नतीजा यह हुआ कि पहले और दूसरे स्थान पर रहने वाली कांग्रेस अब धीरे-धीरे अस्तित्व बचाने के लिए लड़ रही है।

इस मुद्दे पर जनपद के कांग्रेसी नेता शीर्ष नेतृत्व पर ठीकरा फोड़ते हुए नजर आए। कांग्रेस पार्टी के पूर्व जिला प्रवक्ता दयाशंकर पांडेय ने बताया कि 1989 के बाद से कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने जिले पर ध्यान नहीं दिया। राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी कमजोर हुई। प्रियंका गांधी के नेतृत्व वाली प्रदेश कांग्रेस कमेटी में पिछले पांच वर्षों में प्रयोग चल रहा है। मूल वोटरों को बचाने में विफल शीर्ष नेतृत्व नए मतदाताओं को जोड़ने की कोशिश कर रही है, लेकिन अभी तक उसका कोई विशेष फायदा नहीं हुआ।मिर्जापुर जिले में मां विंध्यवासिनी मंदिर से लगभग एक किलोमीटर पहले कंतित में इस्माइल शाह चिश्ती की मजार है। मजार के आस-पास मुस्लिम लोग रहते हैं। मुस्लिम परिवार तीन पीढ़ियों से चुनरी व चौका बनाते हुए आ रहे हैं। चुनरी व चौका (चौकोर नुमा रुमाल कपड़ा) बनाने का काम सबसे पहले रहीम ने शुरू किया था, जिसके बाद कई परिवार के लोग चुनरी में चौका बनाकर जीवकोपार्जन कर रहे हैं।

मुस्लिम परिवार द्वारा बनाए जाने वाले चुनरी व चौका को मां विंध्यवासिनी धाम के साथ-साथ अष्टभुजा व कालीखोह में भक्त चढ़ाते है। चुनरी व चौका के साथ शादी में प्रयोग किए जाने वाले पिछौडी को भी बनाते हैं। पूरा परिवार शिद्दत के साथ मां की चुनरी को तैयार करता है, जहां मां के प्रति अपनी आस्था को भी प्रकट करता है।उसके बाद कांग्रेस की वापसी नहीं हुई। जिले में उस लहर का असर था। कुछ चुनावों में कांग्रेस दूसरे स्थान पर रहीं, लेकिन वापसी नहीं हुई। उन्होंने बताया कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने मिर्जापुर को अनदेखा कर दिया। यहां पर मजबूत लोगों को पार्टी की कमान नहीं मिली और न ही मुफीद प्रत्याशी मैदान में उतारे। कांग्रेस के कमजोर होने का फायदा छोटे दल और भाजपा दोनों को मिला।मुस्लिम परिवार के द्वारा वाहन खड़ा करने के लिए स्टैंड की भी व्यवस्था की जाती है। चुनरी तैयार करने वाली शबनम ने बताया कि कुछ महीने पहले से हम लोग चुनरी बनाने काम में जुट जाते है। वर्षों से इसे बनाने का काम करते आ रहे है। पुरुष चुनरी की सिलाई करते है और महिलाएं व बच्चे गोटा व सितारा आदि लगाती है।

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