पाकिस्तान के प्रति क्या है आडवाणी के मन के विचार?

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पाकिस्तान के प्रति आडवाणी के मन के विचार कुछ अलग ही है! भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी आज अपना जन्मदिन मना रहे हैं। वह 95 साल के हो गए हैं। भाजपा के संस्थापक सदस्य आडवाणी भारत में हिंदुत्व पॉलिटिक्स के बड़े चेहरे रहे हैं। राम मंदिर आंदोलन से लेकर डेप्युटी प्राइम मिनिस्टर बनने तक आडवाणी ने भारतीय राजनीति को नई दिशा दी। शायद कम लोगों को पता होगा कि आडवाणी के दिल में कराची बसता है। ना, इसे पाकिस्तान सोचकर मत देखिए। कराची उनकी जन्मस्थली है और ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ श्लोक के तहत उन्हें भी कराची से विशेष लगाव रहा है। आडवाणी का जन्म 8 नवंबर 1927 को कराची में हुआ था। एंड्रयू वाइटहेड को 1997 में दिए एक इंटरव्यू में आडवाणी ने कराची के अपने दिनों को याद करते हुए कई दिलचस्प बातें बताई थीं।

इंटरव्यू में पहला ही सवाल यही था कि क्या आपके दिल में कराची के लिए विशेष लगाव है? आडवाणी ने कहा, ‘बहुत ज्यादा। आखिर मेरा जन्म कराची में हुआ है। मैंने वहीं पर स्कूली पढ़ाई पूरी की। कुछ साल कॉलेज भी गया था। जब मैंने कराची छोड़ा था तब मैं 19 साल का था।’ आडवाणी उस इंटरव्यू में बताते हैं कि सिंध प्रॉविंस हुआ करता था, तब उसकी आबादी भी ज्यादा नहीं थी। कुल 43 लाख आबादी में से वहां 13 लाख हिंदू थे। शायद 30 लाख मुस्लिम थे, लेकिन हिंदू आबादी ज्यादातर शहरों और कस्बों में थी। उस समय कराची की आबादी 3 से 4 लाख हुआ करती थी। आज के हिसाब से तब यह एक छोटा सा शहर था। आडवाणी के ज्यादातर दोस्त हिंदू थे, कुछ ईसाई, पारसी और यहूदी भी थे। उनके स्कूल का नाम सेंट पैट्रिक हाई स्कूल था, उसमें बहुत कम मुस्लिम पढ़ते थे।

एक सवाल के जवाब में आडवाणी कहते हैं कि आज (1997 के इंटरव्यू के दौरान) हालात बिल्कुल अलग हैं। यह देखकर मुझे तकलीफ होती है। कुछ साल पहले एक सर्वे में पता चला था कि कराची दुनिया के 10 सबसे गंदे शहरों में से एक है। मैं चौंक गया था। 1978 में मुझे कुछ दिनों के लिए कराची जाने का मौका मिला था, उस समय मैं मोरारजी भाई की सरकार में शामिल था। उस समय जहां भी मैं गया था, उतनी गंदगी नहीं थी। खास बात यह है कि मेरे बचपन के दिनों में कराची सबसे साफ शहरों में हुआ करता था। बंटवारे के समय के हालात का जिक्र करते हुए आडवाणी इस इंटरव्यू में कहते हैं कि 1947 के शुरुआती महीनों में चीजें तेजी से बदल रही थीं। अप्रैल-मई में पिक्चर साफ हो गई। यह जानकर हमें बहुत बुरा लगा था कि सिंध पाकिस्तान में रहने वाला है।

क्या उस समय भी आडवाणी आरएसएस के ऐक्टिव मेंबर थे? जवाब में वह कहते हैं कि हां, मैं 14 साल की उम्र में ही आरएसएस से जुड़ गया था। क्या उस समय कराची में आरएसएस और मुस्लिम लीग के बीच कोई शत्रुता जैसा माहौल था? आडवाणी बताते हैं, ‘नहीं, वहां मुस्लिम लीग मजबूत नहीं थी। शायद वहां जनता की राय ली जाती तो कराची के मुस्लिम भी बंटवारे के समर्थन में न होते। बंटवारे को समर्थन ज्यादातर पाकिस्तान के बाहर के इलाकों से ज्यादा देखा गया था। सिंध, पंजाब, पूर्वी पाकिस्तान, ईस्ट बंगाल जहां से भी हिंदुओं को पलायन करना पड़ा, वे यहां आकर अच्छी तरह से बस गए जबकि यूपी, बिहार से पाकिस्तान जाने वाले लोग आज भी मुहाजिर कहे जाते हैं। वे अच्छी तरह से बस भी नहीं पाए हैं।’

क्या 1947 में आडवाणी को एक बार भी लगा था कि उन्हें कराची में ही रहना चाहिए? भाजपा नेता ने इंटरव्यू में कहा था कि अगर मैं पीछे जाकर देखूं तो उस समय काफी अनिश्चितता की स्थिति थी। हमारा फैसला वहीं रहने का था क्योंकि पंजाब से बिल्कुल अलग स्थितियां वहां थीं। बंटवारे से पहले कोई दंगा नहीं हुआ था। बंटवारे के बाद भी स्थितियां उतनी खराब नहीं हुई थीं। हत्याएं शुरू हो गईं, ट्रेनों और सड़कों पर खून बहने लगा। पंजाब, नॉर्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रॉविंस, बंगाल में भारी हिंसा भड़की हुई थी। लेकिन कराची में ऐसा कुछ नहीं था। ऐसे में जब बंटवारा हो रहा था तो हमें लग रहा था कि हम क्यों जाएं? हम यहीं रहेंगे, ऐसी भावना मन में थी।

ऐसा क्या हुआ कि कराची छोड़ने का फैसला लेना पड़ा। आडवाणी बताते हैं कि कराची में सितंबर के महीने में एक भीषण धमाके के बाद मेरी ही नहीं, वहां रहने वाली पूरी हिंदू आबादी का नजरिया बदल गया। आरोप आरएसएस के लोगों पर लगे। उसी समय दिल्ली में गांधी जी ने आरएसएस की एक मीटिंग को संबोधित किया था। आडवाणी ने बताया, ‘मुझे 11 या 12 सितंबर 1947 का डॉन अखबार का अंक अच्छी तरह से याद है। एक तरफ आरएसएस रैली में गांधी के संबोधन का जिक्र था जिसमें उन्होंने कश्मीर में कबायलियों को भेजने के लिए पाकिस्तान की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि अगर पाकिस्तान इसी तरह का रवैया रखता है तो कौन जानता है कि भारत और पाकिस्तान में जंग छिड़ जाए। और यह नहीं होना चाहिए।’ अखबार के दूसरे पन्ने पर पाकिस्तान में आरएसएस की साजिश का आरोप लगाते हुए बम धमाके की हेडलाइन छपी थी। एक हेडलाइन थी ‘RSS Plot to Blow Up Pakistan Unearthed’ और दूसरी तरफ ‘Gandhi Speaks to RSS Volunteers in Terms of War’ हेडिंग बनी थी।

आडवाणी ने उस दौर को याद करते हुए कहा था कि 19 साल की उम्र में आरएसएस से जुड़े होने के कारण वह बिल्कुल भी भयभीत नहीं हुए थे। आखिर में 12 सितंबर 1947 को उन्होंने कराची छोड़ दिया। वह अकेले थे और उन्होंने पहली बार प्लेन का सफर किया था। आरएसएस से जुड़ा होने के कारण लोगों ने सलाह दी थी कि अकेले ही अभी निकल जाइए। करीब एक महीने के बाद परिवार ने कराची छोड़ा। सिंध से अक्टूबर में तेजी से पलायन शुरू हो चुका था। जनवरी 1948 आते-आते वहां भी दंगे भड़क गए। पाकिस्तान बनने के बाद आडवाणी करीब एक महीने तक वहां रहे थे। पाकिस्तान के इंडिपेंडेंस डे के दिन भी उन्हें कोई खुशी नहीं हुई थी। बंटवारे के दर्द से आहत स्कूल में कई बच्चे मिठाई भी नहीं खाए थे। वह बताते हैं कि हमें आजादी जैसी कोई फीलिंग नहीं हो रही थी।