Friday, September 20, 2024
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क्या है बुजुर्गों के अधिकार? जानिए उच्चतम न्यायालय का फैसला!

हाल ही में उच्चतम न्यायालय के द्वारा बुजुर्गों के अधिकार के हक में काफी हद तक फैसले किए है! एक कहावत है- पूत सपूत तो क्या धन संचय, पूत कपूत तो क्या धन संचय। मतलब ये कि संतान अगर अच्छी हों तो संपत्ति जुटाने का क्या मतलब, वो तो अपने आप में संपत्ति हैं। वो आगे ही बढ़ाएंगी। इसी तरह अगर संतान बुरी हैं तब भी संपत्ति जुटाने का क्या मतलब। वो उसे संभाल ही नहीं पाएंगी, सबकुछ उड़ा देंगी, बर्बाद कर देंगी। यूपी के बस्ती के रहने वाले 83 वर्ष के वंशराम चौधरी को ही ले लीजिए। उन्होंने खुदकुशी की कोशिश की। वजह ये कि उनके बेटों ने उन्हें बेसहारा छोड़ दिया। जिन्हें कभी उंगलियां पकड़ चलना सिखाया, पाल-पोसकर बड़ा किया, हड्डियां गलाया, बुढ़ापे में उनके लिए ही वह बोझ से लगने लगे।

बस्ती के लौकिहवा के रहने वाले वंशराम चौधरी के एक नहीं तीन-तीन बेटे हैं। लेकिन तीनों के पास अपने बुजुर्ग बाप को रखने के लिए जगह नहीं है! सारी जमीन-जायदाद अपने बेटों के नाम कर दी लेकिन अब अपने ही घर में खुद के लिए जगह नहीं है। वह पिछले दो साल से काफी परेशान थे। शुक्रवार को उन्होंने अयोध्या में सरयू नदी में छलांग लगाकर जान देने की कोशिश की। लेकिन समय रहते स्थानीय मल्लाहों और जल पुलिस ने उन्हें बचा लिया। बुजुर्गों के लिए गरिमा भरे जीवन को सुनिश्चित करने के लिए कानून में कई तरह के प्रावधान हैं। संतानों से सताए जा रहे बुजुर्गों के लिए तो एक अलग से कानून ही बना है- ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण कानून 2007। लेकिन कुछ तो लोकलाज का गैरजरूरी डर कि अपने ही बच्चों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई पर कोई क्या कहेगा और कुछ जागरुकता की कमी से बुजुर्ग चुपचाप इस तरह की मानसिक यातनाएं सहते रहते हैं। मौत से पहले ही कई बार ‘मरते’ रहते हैं।

वंशराम चौधरी इकलौते बुजुर्ग नहीं हैं जो इस तरह के हालात से जूझ रहे हैं। देशभर में न जाने कितने ऐसे वंशराम होंगे जो बुढ़ापे में अपनी संतानों की दुत्कार सह रहे होंगे। 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में 60 साल से ऊपर के 7.7 करोड़ बुजुर्ग थे जो देश की कुल आबादी के 7.5 प्रतिशत थे। मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस ऐंड एम्पावरमेंट की बुजुर्गों के लिए एनुअल ऐक्शन प्लान (2022-23) के मुताबिक, 2021 में बुजुर्गों की तादाद करीब 14 करोड़ थी और जनसंख्या में उनकी हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से ऊपर। आने वाले वर्षों में उनकी तादाद और प्रतिशत और बढ़ेगी। बुजुर्गों के गरिमा के साथ जीवन के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए ही 2007 में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने मैंटिनेंस ऐंड वेल्फेयर ऑफ पैरेंट्स ऐंड सीनियर सिटिजंस ऐक्ट, 2007 लाया था। संसद से पास होने और 29 दिसंबर 2007 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के साथ ही वह कानून लागू हो गया। आइए जानते हैं उस कानून की खास बातों को।

इस कानून के तहत बच्चों/रिश्तेदारों के लिए माता-पिता/वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल करना, उनके स्वास्थ्य, रहने-खाने जैसी बुनियादी जरूरतों की व्यवस्था करना अनिवार्य किया गया है।

बेटे-बेटी के साथ-साथ बालिग पोते-पोतियों की भी यह जिम्मेदारी है। ये बेटे-बेटी चाहें बुजुर्ग की जैविक संतान हों या फिर सौतेली या फिर गोद ली हुईं, उन सब पर ये लागू होता है। उनकी जिम्मेदारी है कि वह माता-पिता के लिए उचित भोजन, कपड़े, आवास, इलाज आदि जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करें।

बहू, दामाद और बेटी के बच्चों को भी इसके दायरे में लाने की तैयारी है। 2019 में इसे लेकर सरकार ने एक संशोधन विधेयक भी लाया था जिसमें 2007 के कानून की खामियों को दूर करने की कोशिश की गई थी।

बुजुर्ग के रिश्तेदारों में उसके सभी कानूनी वारिस (नाबालिग को छोड़कर) आएंगे जो उसके बाद उसकी संपत्ति के कानूनन हकदार हैं।

अगर बच्चे या रिश्तेदार अपनी ये जिम्मेदारी नहीं निभा रहे तो वे सजा के हकदार होंगे। दोषी पाए जाने पर उन्हें 3 महीने की जेल या 5000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।

खास बात ये है कि अगर बुजुर्ग अपनी संपत्ति बच्चों या रिश्तेदार के नाम ट्रांसफर कर चुका हो और वो अब उसकी देखभाल नहीं कर रहे तो संपत्ति का ट्रांसफर भी रद्द हो सकता है। यानी संपत्ति फिर से बुजुर्ग के नाम हो जाएगी। इसके बाद वह चाहे तो उन्हें अपनी संपत्ति से बेदखल भी कर सकता है। सितंबर 2021 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुजुर्ग माता-पिता को परेशाना करने वाले इकलौते बेटे और उसकी पत्नी को उनका फ्लैट एक महीने के भीतर खाली करने का आदेश दिया था।

वे माता-पिता जो अपनी आय या संपत्ति के जरिए अपनी देखभाल करने में सक्षम नहीं हैं और उनके बच्चे या रिश्तेदार उनका ध्यान नहीं रख रहे तो वे भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं। उन्हें हर महीने 10 हजार रुपये तक का गुजारा-भत्ता मिल सकता है। भरण-पोषण के आदेश का एक महीने के भीतर पालन करना अनिवार्य है।

60 वर्ष से ऊपर के ऐसे शख्स जिनकी कोई संतान न हो, वे भी अपने रिश्तेदारों/अपनी संपत्ति के उत्तराधिकारियों से भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं।

कानून में ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए मैंटिनेंस ट्राइब्यूनल और अपीलेट ट्राइब्यूनल की व्यवस्था है। ज्यादातर जिलों में ऐसे ट्राइब्यूनल हैं। बुजुर्ग से शिकायत मिलने के बाद ट्राइब्यूनल को 90 दिनों के भीतर उस पर फैसला सुनाना होता है।

आइए अब जानते हैं कि भरण-पोषण कैसे हासिल कर सकते हैं। इसके लिए स्थानीय ट्राइब्यूनल में अर्जी देनी होगी। अर्जी देने के लिए किसी वकील की भी जरूरत नहीं है। बुजुर्ग खुद आवेदन दे सकता है या किसी व्यक्ति या एनजीओ को भी इसके लिए अधिकृत कर सकता है। ट्राइब्यूनल खुद से भी संज्ञान लेकर कार्रवाई कर सकता है। बुजुर्ग से शिकायत मिलने के बाद ट्राइब्यूनल मामले की सुनवाई करता है। अगर वह संतुष्ट हो जाता है कि बच्चे या रिश्तेदार बुजुर्ग की देखभाल करने में लापरवाही बरत रहे हैं या इनकार कर रहे तो उन्हें मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दे सकता है। मासिक भरण-पोषण की अधिकतम राशि 10 हजार रुपये तक हो सकती है। हालांकि, सरकार अब इस अपर लिमिट को खत्म करने की तैयारी कर रही है। अगर बुजुर्ग ट्राइब्यूनल के फैसले से संतुष्ट नहीं है तो उसे अपीलेट ट्राइब्यूनल में चुनौती भी दे सकता है।

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