आज हम आपको बताएंगे कि क्लाइमेट चेंज पर युवाओं के विचार क्या है! चुनावों के वक्त हर राजनीतिक दल बढ़-चढ़कर अपने मेनिफेस्टो को अपने वादों की पिटारी की तरह दिखाने की कोशिश करता है। दूसरे मुद्दों की ही तरह अब पर्यावरण और क्लाइमेट चेंज का मुद्दा ऐसा मामला है, जो राजनीतिक पार्टियों के मेनिफेस्टो में पिछले लोकसभा चुनाव से ही एंट्री मार चुका है। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ही पार्टियों ने अपने-अपने तरीके से अपने घोषणापत्रों में इन मुद्दों के इर्द-गिर्द वादे किए। यहां तक कि 2019 के चुनाव के बाद जो लोकसभा सामने आई, उसमें क्लाइमेट चेंज का मुद्दा कई बार ज़ोर-शोर से गूंजा भी। कई नेताओं ने पार्टी लाइन से इतर रिन्यूएबल एनर्जी और पर्यावरण में बदलाव से उनके क्षेत्रों में हो रही दिक्कतों और उपायों के बारे में बहसें भी कीं और सवाल भी पूछे। पिछले दिनों 7 शहरों के फर्स्ट टाइम वोटर्स के एक सर्वे में पर्यावरण का मुद्दा तीसरे ऐसे बड़े मुद्दे की तरह सामने आया, जिसके आधार पर पहली बार वोटर बने युवा वोट डालने जाएंगे। एनवायरमेंट थिंक टैंक ASAR और क्लाइमेट एजुकेटर्स नेटवर्क के इस साझा सर्वे में 87 फीसदी युवाओं ने बेरोजगारी को पहले, आर्थिक दिक्कतों को दूसरे तो क्लाइमेट चेंज की चुनौती को तीसरे नबंर पर रखा। यानी भारतीय वोटरों का सबसे बड़ा तबका, यानी युवा वर्ग के लिए ये प्राथमिकताओं वाला मुद्दा है।
173 साल के इतिहास में 2023 अब तक का सबसे बड़ा गर्म साल रहा है। साल 2021 में जलवायु से जुड़ी आपदाओं की वजह से भारत में 4.9 मिलियन लोग आंतरिक विस्थापन का भी शिकार हुए, ये आंकड़ा महज फिलीपींस और चीन से ही पीछे है। ऐसे में दुनिया भर के राजनीतिक डिस्कोर्स में क्लाइमेट चेंज एक अहम हिस्सा बन चुका है, लेकिन अब 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले जबकि राजनीतिक दल अपने मेनिफेस्टो लेकर नहीं आए हैं, मेनिफेस्टो सामने आने ही वाले हैं।
ऐसे में सवाल ये है कि इस बार क्लाइमेट चेंज और पर्यावरण को लेकर राजनीतिक दल किस तरह के वादे करने वाले हैं। क्या पार्टियां जलवायु परिवर्तन की चुनौती से पार पाने के लिए नई नीतियों पर बात करेंगी? हैदराबाद में रहने वाली ग्रीन पॉलिटिकल एक्टिविस्ट मधुबंती सेन कहती हैं, ‘पॉलिटिकल पार्टियों के लिए ये जरूरी है कि वो क्लाइमेट चेंज और पर्यावरण मेनिफेस्टो का हिस्सा बनाएं। कई नेताओं ने पार्टी लाइन से इतर रिन्यूएबल एनर्जी और पर्यावरण में बदलाव से उनके क्षेत्रों में हो रही दिक्कतों और उपायों के बारे में बहसें भी कीं और सवाल भी पूछे। पिछले दिनों 7 शहरों के फर्स्ट टाइम वोटर्स के एक सर्वे में पर्यावरण का मुद्दा तीसरे ऐसे बड़े मुद्दे की तरह सामने आया, जिसके आधार पर पहली बार वोटर बने युवा वोट डालने जाएंगे।ये ऐसी चिंताएं हैं, जो भारत ही नहीं पूरी दुनिया पर असर डाल रही हैं। इस तरह के मुद्दों को संबोधित करना प्रभावशाली गवर्नेंस के लिए जरूरी है।’
बीजेपी ने साल 2019 के घोषणापत्र में 2024 के लक्ष्य के साथ गांवों तक बिजली लाने, जल सरंक्षण और राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना के भीतर 102 प्रदूषित शहरों पर जोर देने का वादा किया था। सरकार का कहना है कि ‘जल जीवन मिशन’ के तहत ग्रामीण परिवारों को नल कनेक्शन से जोड़ा गया है। इसके साथ ही, इस साल के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ग्रीन इकॉनमी के तहत कई ऐलान किए, जिसमें 2030 तक 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लक्ष्य की घोषणा के साथ-साथ दूसरी घोषणाएं भी शामिल थीं। लेकिन पार्टी ने इस बजट में भी ग्रीन बोनस का जिक्र नहीं किया। लंबे अरसे से चली आ रही हिमालय क्षेत्र की ये मांग पूरी करने का वादा पार्टी के पिछले मेनिफेस्टो में शामिल था।
साल 2019 में कांग्रेस ने अपने क्लाइमेट चेंज की चुनौती से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय जलवायु आयोग के साथ साथ राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम की बात की थी।पार्टियां जलवायु परिवर्तन की चुनौती से पार पाने के लिए नई नीतियों पर बात करेंगी? हैदराबाद में रहने वाली ग्रीन पॉलिटिकल एक्टिविस्ट मधुबंती सेन कहती हैं, ‘पॉलिटिकल पार्टियों के लिए ये जरूरी है कि वो क्लाइमेट चेंज और पर्यावरण मेनिफेस्टो का हिस्सा बनाएं। कई नेताओं ने पार्टी लाइन से इतर रिन्यूएबल एनर्जी और पर्यावरण में बदलाव से उनके क्षेत्रों में हो रही दिक्कतों और उपायों के बारे में बहसें भी कीं और सवाल भी पूछे। इसके अलावा मिट्टी की क्वॉलिटी बेहतर करने की जरूरत पर भी बल दिया था।