Sunday, September 8, 2024
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नई संसद के लिए क्या बोले लालू यादव?

नई संसद के लिए लालू यादव का एक बयान सामने आया है! दिल्ली में पीएम मोदी संसद भवन का उद्घाटन कर रहे थे और बिहार की राजधानी पटना में जेडीयू के नेता-कार्यकर्ता उपवास पर बैठे थे। उधर उद्घाटन समारोह में मंत्रोच्चार हो रहा था, इधर बिहार में जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने का संकल्प ले रहे थे। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत ने विपक्ष को इतना उत्साहित कर दिया है कि बेगानी शादी में अब्दुल्ला की तरह तमाम विपक्षी दल दीवाना बने हुए हैं। पर, ऐसा करते समय विपक्षी नेता यह भूल जा रहे हैं कि यह कर्नाटक का संदेश हो सकता है, लोकसभा का जनादेश नहीं। लोकसभा और विधानसभा चुनावों का फर्क पहले भी महसूस किया जाता रहा है। ललन सिंह तो कर्नाटक में कांग्रेस की जीत पर इतने उत्साहित हैं जैसे जेडीयू ने ही वहां प्रचंड बहुमत से जीत दर्ज कर ली हो। वे अब यह भी भविष्यवाणी करने लगे हैं कर्नाटक की तरह बीजेपी छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी हारेगी। हालांकि उनका यह आकलन महज अनुमान पर आधारित है, लेकिन उनके कहने का अंदाज ऐसा है, जैसे जेडीयू का डंका वहां भी बजने वाला है। दूसरे की जीत पर इतराने के बजाय जेडीयू को अपनी कमियां तलाशनी चाहिए कि 2020 के विधानसभा चुनाव में उसकी दुर्गति क्यों हुई। क्यों उसे 43 सीटों पर सिमटना पड़ा। सच कहें तो विपक्ष स्वप्न जीवी हो गया है। लगातार सत्ता में बने रहने के कारण कांग्रेस का स्वप्न जीवी होना तो समझ में आता है, लेकिन जेडीयू का सपना देखना समझ में नहीं आता। 2014 के भय से नीतीश बीजेपी का साथ छोड़ कर भागे तो नरेंद्र मोदी को अकेले 282 सीटें मिली थीं और नीतीश की पार्टी जेडीयू दो पर ही अटक गई थी। 2019 में बीजेपी ने अपने दम पर 303 सीटें जीतीं और नीतीश को बीजेपी के साथ आने का भी फायदा मिल गया। उनकी सीटें 2 से बढ़कर 16 हो गईं। मोदी को बेदखल करने के लिए 2019 में भी तो 21 विपक्षी दल एकजुट हुए थे।

राष्ट्रीय लोक जनता दल आरएलजेडी के अध्यक्ष पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा संसद के नये भवन के उद्घाटन समारोह के बहिष्कार पर कहते हैं कि फिलवक्त विपक्ष के पास कोई काम ही नहीं है। नीतीश कुमार विपक्षी एकता का ढोल पीट रहे हैं, लेकिन समय पर उन्हें एहसास हो जाएगा कि उनका सारा श्रम जाया हो गया। जन सुराज यात्रा पर निकले प्रशांत किशोर तो कुशवाहा से एक कदम आगे बढ़ कर नीतीश पर तंज कसते हैं। वे कई बार कह चुके हैं कि विपक्षी एकता का हस्र 2019 जैसा ही होने वाला है। नीतीश कुमार 2019 के विपक्षी एकता के सूत्रधार चंद्रबाबू नायडू की गति को प्राप्त होंगे। केंद्रीय सत्ता का सुख भी छीना और राज्य की सत्ता से भी हाथ धोना पड़ा। एनडीए से अलग होकर नीतीश पीएम बनने का सपना देखते रहें, वह कभी पूरा होने वाला नहीं है।

सच तो यही है कि नये संसद भवन का उद्घाटन कौन करे, यह कोई बड़ा मसला था ही नहीं। पहले भी प्रधानमंत्री पर बैठे लोग ऐसे भवनों का उद्घाटन-शिलान्यास करते रहे हैं। 24 अक्टूबर 1975 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पार्लियामेंट एनेक्सी का उद्घाटन किया था। 31 जुलाई 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्लियामेंट एनेक्सी एक्सटेंशन का उद्घाटन किया। 15 अगस्त 1987 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पार्लियामेंट लाइब्रेरी की आधारशिला रखी थी। 5 अगस्त 2019 को उप-राष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू और लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने नई पार्लियामेंट बिल्डिंग बनाने का प्रस्ताव रखा था। उसके बाद 10 दिसंबर 2020 को पीएम नरेंद्र मोदी ने संसद भवन की आधारशिला रखी। इसलिए यह कहना कि पहली बार किसी पीएम ने परंपरा से अलग हट कर काम किया, बेमानी है। चूंकि इन दिनों विपक्षी एकजुटता की हवा बह रही है, इसलिए हर विपक्षी दल एकता के नाम पर मोदी सरकार के हर काम में कमी निकालने की फिराक में रहता है। विपक्ष में भी कुछ ऐसा नेता हैं, जिन्हें सही-गलत का विवेक है। इसमें नीतीश कुमार भी हैं। नीतीश कुमार ने एनडीए के साथ रह कर भी विवेक का परिचय देते हुए राम मंदिर पर अध्यादेश को रोका था। सीएए और एनआरसी को बिहार में लागू करने से मना किया था।

साल 2019 से संसद के नये भवन की बात चल रही है। युद्ध स्तर पर 970 करोड़ की लागत से बन कर संसद भवन उद्घाटन के स्टेज में आया तो नीतीश सवाल उठा रहे हैं कि इसकी जरूरत क्या थी। विरोध ही करना था तो बनने के पहले करते। अब इस विरोध का कोई मतलब है क्या? अगर जरूरत को ही आधार माना जाए तो नया प्लेन खरीदने की बिहार को क्यों जरूरत आ पड़ी। बिहार में विधानसभा के एक्सटेंशन पर भारी भरकम खर्च की क्या जरूरत थी? बिहार में स्कूलों के लिए नये भवन बनाने की क्या जरूरत थी? यानी आप करें तो विकास और मोदी ने किया तो विनाश?

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