एक समय ऐसा था जब आजम खान को देखकर मुलायम सिंह ने शायरियां पड़ी थी! मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद उनका पार्थिव शरीर देर शाम सैफई पहुंच चुका था। नेताजी के अंतिम दर्शन के लिए लोगों का हुजूम उनके आवास पर उमड़ पड़ा। इसी भीड़ में एक शख्स दिखाई दिया। उस शख्स को एक तरफ से खुद अखिलेश सहारा देते दिखाई दिए। ये शख्स और कोई नहीं आजम खान थे। जिनकी मुलायम सिंह यादव से दोस्ती और वफादारी का जिक्र लखनऊ के सियासी गलियारों में खूब होता रहा। बेटे अब्दुल्ला का सहारा लेकर खुद को संभालते हुए आजम खान चिरनिद्रा में सो रहे मुलायम के ताबूत तक पहुंचे और कुछ देर ताबूत के शीशे पर हाथ सहलाते दिखे। जिसने भी आजम खान की ये तस्वीर देखी, भावुक हो गया। एक पल में दोनों नेताओं का दशकों का साथ जेहन में कौंधने लगा। आइए याद करते हैं कैसे शुरू हुई मुलायम और आजम खान की दोस्ती।
ये 70 का दशक था। एक तरफ मुलायम सिंह यादव सियासत में अपने पैर मजबूती से आगे बढ़ा रहे थे। 1967 जसवंत नगर सीट से पहली बार चुनाव जीतने के बाद 1977 तक उन्होंने यहां से जीत की हैट्रिक पूरी कर ली थी। वहीं दूसरी तरफ एक युवा और था जो रामपुर के सामान्य परिवार से निकलकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय पहुंचा और यहां छात्रसंघ चुनाव जीतकर राजनीति में कूदने की तैयारी कर रहा था। ये युवा और कोई नहीं मोहम्मद आजम खान थे। एएमयू में छात्रसंघ चुनाव जीतने और कानून की डिग्री हासिल करने के दौरान आजम खान अपनी पहचान एक शानदार वक्ता की बना चुके थे। इसके बाद उन्होंने सीधे राजनीति का रुख किया और रामपुर से ही चुनाव की तैयारी शुरू कर दी। शुरुआत से ही आजम खान ने अपने रुख से शुरू से ही साफ कर दिया था कि वह रामपुर के नवाब परिवार के लिए चुनौती बनेंगे। 1977 के चुनाव में आजम खान ने पहली बार चुनाव लड़ा लेकिन कांग्रेस के शन्नू खान से उन्हें हार मिली। इस चुनाव में भले ही आजम खान को हार मिली लेकिन माना जाता है कि मुलायम सिंह यादव की नजर इस युवा नेता पर पड़ चुकी थी।
आजम ने हार नहीं मानी और रामपुर में लोगों को जोड़ने का सिलसिला नहीं छोड़ा। 1980 में उन्हें जनता पार्टी से टिकट मिल गया। इस चुनाव में आजम खान पहली बार विधायक चुने गए। यहीं से मुलायम सिंह यादव और आजम के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं। आजम एक के बाद एक चुनाव जीतते गए और 1989 में मुलायम सिंह की सरकार में उन्हें पहली बार मंत्री पद मिल गया। इस दौर में उत्तर प्रदेश में राम लहर चलनी शुरू हो चुकी थी। 1990 में अयोध्या गोलीकांड के बाद मुलायम सिंह यादव को रामभक्त ‘मुल्ला’ मुलायम कहने लगे थे। दूसरी तरफ दो मुस्लिम नेता मुलायम के सबसे करीब आ चुके थे। एक थे शफीकुर्रहमान बर्क और दूसरे थे आजम खान।
2017 में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर ताजपोशी के दौरान आजम खान ने 80 के दशक के दौर को याद किया था। उन्होंने कहा था कि समाजवादी इतिहास का पहला पन्ना जब लिखा गया तो बहुत तकलीफ के दिन थे। ऐसे दौर में मुलायम सिंह यादव जी ने हिम्मत की और बिहार से कपिल देव सिंह जी ने समाजवादी आंदोलन को दोबारा शुरू करने के लिए कमर कसी। ये वाे जमाना था जब समाजवादी आंदोलन की शुरुआत हम सब के पसीने से हुई। ये कारवां आगे बढ़ा और 30 अक्टूबर 1990 आया, उस समय तक ये आंदोलन खून में नहा चुका था। 30 अक्टूबर 1990 के बाद एक बहुत बुरा दिन हिंदुस्तान ने देखा। और वो दिन था 6 दिसंबर 1992। आजम ने कहा कि हमें आज भी याद है कि जब मुलायम सिंह यादव की बुलाई बैठक में हमारे आंसू गिर रहे थे, उस समय खड़े होकर मुलायम ने कहा था कि ये वक्त आंसू बहाने का नहीं है, ये वक्त तैयारी का है। ये वक्त एक नई लड़ाई का ऐलान करने का है।
बहरहाल, एक तरफ मुलायम अपना गढ़ मजबूत करते गए, वहीं रामपुर से आजम खान विरोधियों के लिए चुनौती बने रहे। 1980 के बाद आजम खान ने 1985 में लोकदल से फिर 1989 में जनता दल से चुनाव जीता, 1991 में वह जनता पार्टी के विधायक बने इसके बाद 1993 में सपा के विधायक बने। इसके बाद आजम खान को 1996 में कांग्रेस के अफरोज अली खान के हाथों हार जरूर झेलनी पड़ी लेकिन मुलायम ने उन्हें इसके बदले राज्यसभा सदस्य बना दिया। इसके बाद आजम खान ने 2002, 2007, 2012 फिर 2017 में रामपुर से चुनाव आसानी से जीता। अब तक रामपुर आजम खान का गढ़ कहा जाने लगा था।
आजम ने कहा था, “हमसे हमारी गैरत का सवाल मत करो, अगर कोई सवाल करना चाहता है तो अखिलेश जी आप करो। अगर आप ये समझते हो कि हम आपकी राजनीति के लिए नुकसानदेह हैं तो आप अभी कहो हम हमेशा के लिए इस पंडाल से चले जाएंगे। हमने अपनी जवानी की तस्वीर के साथ आज तक का लंबा सफर आपके साथ तय किया है। हमें याद है कि जब मुलायम सिंह यादव जी का जन्मदिन मनाया गया था और आप आए थे। मेडिकल कॉलेज की बुनियाद रखी थी याद है। आपने बहुत कुछ हमें दिया, हमें सब याद है। हमें ये भी याद है कि हमें आपके साथ रहना चाहिए। कोई आपको कुछ कहे आप उन पर यकीन न करना। मुसलमान आपके साथ है।”
आजम खान ने कहा, “बहुत सी गलतफहमियां थीं कि हम आपको राष्ट्रीय अध्यक्ष की तरह नहीं देखना चाहते। ये बात जिसने की उसने अपनी मां की कोख के साथ नाइंसाफी की। वो धोखेबाज है। जो हमें आपसे दूर करना चाहता है वो आपका नहीं है। आपको सिर्फ ये याद रखना चाहिए कि हमने अपनी अगली नसल भी आपके साथ कर दी है। हम कश्तियां बदलने वाले लोग नहीं है!