हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल में जाकर एक पुरानी कहानी सुना दी है! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कितने कैलकुलेटिव हैं, इसका अंदाजा तो वक्त-वक्त पर लगता ही रहता है, लेकिन आज कोलकाता की रैली में उन्होंने जो कहा, जिस भाव-भंगिमा से साथ कहा, वो उनके चुनावी राजनीति में प्रकांड होने का अनोखा प्रमाण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बारासात के एक कार्यक्रम में अपने अतीत को लेकर ऐसा दावा किया जिसका मतदाताओं के मन पर गहरा असर पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि वो तो बचपन में ही घर से झोला लेकर निकल गए थे। उन्होंने मतदाताओं को समझाने की कोशिश की कि वो यूं ही पूरे देश को अपना परिवार नहीं कहते हैं, बल्कि यही सच है। पीएम मोदी का यह प्रयास एक तीर से दो निशाने साधने का लक्ष्य साधने के लिए हो सकता है। मोदी की मंशा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के व्यक्तिगत हमले के खिलाफ अभियान को आगे बढ़ाने की हो सकती है। दूसरी तरफ, वो अपने त्याग की कहानी बताकर वोटरों को इतना भावुक करना चाहते होंगे कि उनकी नजरों में सीएम ममता बनर्जी की सादगी बड़ी बात न रहे जाए। ध्यान रहे कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी बड़ी सतर्कता के साथ खुद को बेहद सादगी पसंद साबित करने की कोशिश करती रहती हैं। ममता अक्सर सफेद साड़ी और हवाई चप्पलों में ही दिखती हैं। पहले बात पीएम मोदी के बयान की। उन्होंने बारासात में कहा, ‘मैं जीवन का एक पहलू, जिसके विषय में मैं आम तौर पर नहीं बोलता हूं, लेकिन आज जब माताएं-बहनें बैठी हैं तो बोलने का मेरा मन कर रहा है। बताऊं, बताऊं, बताऊं, मैं बताऊं? मैं पहले कभी नहीं बताता था, लेकिन आज मन करता है बता दूं। कुछ लोगों को लगता होगा कि किसी राजनेता ने मुझे गाली दी, इसलिए मैं सबको मेरे परिवार, मेरे परिवार कह रहा हूं। लेकिन मैं सच्चाई बताना चाहता हूं।’फिर वो कहते हैं, ‘मैं बहुत छोटी आयु में घर छोड़ करके एक झोला लेकरके चल पड़ा था। परिव्राजक की तरह देश के कोने-कोने में भटक रहा था, कुछ खोज रहा था। मेरी जेब में कभी एक पैसा नहीं रहता था। लेकिन आपको जानकरके गर्व होगा कि मेरे देश का हर परिवार कैसा है। कंधे पर एक झोला लटकता था और मैं देखता था, कोई ना कोई परिवार, कोई मां-बाप कोई बहन, पता नहीं क्या कारण- वो मुझे पूछ लेते थे कि भाई, बेटे, कुछ खाना खाए हो कि नहीं खाए हो? और आज मैं देशवासियों को बता रहा हूं, सालों तक मैं परिव्राजक रहा, कंधे पर झोला लेकर घूमता रहा हूं। जेब में एक पैसा नहीं रहा, लेकिन मैं एक दिन भी भूखा नहीं रहा।’
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर व्यक्तिगत हमला किया तो बीजेपी ने उसे चुनावी मुद्दा बनाने की ठान ली। पार्टी के बड़े-बड़े नेता, यहां तक कि केंद्रीय मंत्री भी अपने सोशल मीडिया हैंडलों पर अपने नाम के साथ ‘मोदी का परिवार’ लिखने लगे। दूसरी तरफ, पीएम मोदी भी अपनी रैलियों में देश की 140 करोड़ जनता को अपना परिवार बताने का सिलसिला तेज कर दिया। लालू प्रसाद ने पटना के गांधी मैदान में आयोजित विपक्षी गठबंधन की रैली में कहा था कि नरेंद्र मोदी का कोई परिवार क्यों नहीं है, उनकी कोई संतान क्यों नहीं है? उन्होंने पीएम मोदी से सवाल पूछते हुए बार-बार ‘तुम’ शब्द का प्रयोग किया और दावा किया कि मोदी हिंदू भी नहीं हैं। लालू के इस बयान पर बीजेपी बिफर पड़ी और प्रेस कॉन्फ्रेंस से लेकर सोशल मीडिया और रैलियों तक, हर जगह लालू को घेरा जाने लगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपनी रैलियों में कहने लगे कि लालू प्रसाद यादव ने उनके लिए जो कहा, बीत दो दशक में उससे भी कठोर बातें उनके लिए कही गई हैं। पीएम ने कहा कि विपक्ष के पास जमीनी मुद्दे नहीं हैं, इस कारण वो गाली-गलौज करते हैं। लालू ने जिस दिन पटना में हमला बोला, उसी दिन पीएम मोदी तेलंगाना के अदीलाबाद की रैली में जवाबी अभियान का आगाज कर दिया। पीएम परिवारवाद पर खूब बोले और तब से वो हर रैली में इस पर लंबे वक्त तक बोलते हैं। हालांकि, राजनीति में परिवारवाद का विरोध वो लंबे समय से कर रहे हैं। उन्होंने लाल किले के प्राचीर से भी कहा है कि परिवारवादी पार्टियां इस देश को दीमक की तरह चाट रही हैं।
खैर, लालू प्रसाद यादव और परिवारवादी राजनीति को एक तरफ रख दें तो कहा जा सकता है कि कोलकाता में पीएम मोदी का अपने त्याग की चर्चा करने के पीछे बड़ा मकसद ममता बनर्जी रही होंगी। ममता बनर्जी भी 2011 के बाद से पश्चिम बंगाल की सत्ता में आसीन हैं। उन्होंने पिछले तीन विधनसभा चुनावों अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को लगातार जीत दिलाती रही हैं। बाकी सभी कारणों के अलावा ममता बनर्जी की अपनी शख्सियत हर चुनाव में विरोधियों पर भारी पड़ती है। ममता बनर्जी एक महिला हैं, इस कारण महिला मतदाताओं का उनके प्रति विशेष अनुराग रहता है जो पिछले कुछ वर्षों से चुनावी नजरिए से काफी मुखर हो गई हैं। दूसरी तरफ, ममता बनर्जी की छवि एक जुझारू नेता की है।
प. बंगाल के मतदाताओं के सामने जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टियों के बीच चुनाव करना होता है तो उन्हें निर्णय लेने में बहुत मशक्कत नहीं करनी पड़ती है। कोई मोदी में त्याग देखता है तो कोई ममता में सादगी। जिस तरह मोदी की संतान नहीं है, उसी तरह ममता भी निःसंतान हैं। ममता ने तो शादी ही नहीं की है। इस कारण प. बंगाल के मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग है कि वो भ्रष्ट नहीं हो सकतीं, उनकी सरकार में किसी ने घपले-घोटाले किए भी तो निश्चित रूप से ममता उन कारगुजारियों से अनजान होंगी। ऐसे मतदाताओं का टीएमसी से मोहभंग करवाकर बीजेपी की तरफ रुख करवाना आसान नहीं। यह तभी संभव हो सकता है जब ममता बनर्जी की शख्सियत उनके विरोधियों के आगे छोटी पड़ जाए।
पीएम मोदी ने विपक्ष के करीब-करीब सभी दलों को इस रेस में बहुत पीछे छोड़ दिया है। ईमानदारी और निष्ठा के मामले में उनकी छवि देश में सबसे मजबूत है, लेकिन चुनावी जीत सिर्फ शख्सियतों की शर्त पर तय नहीं होती। प. बंगाल में बीजेपी ने पिछले कुछ वर्षों से विपक्ष की जगह पर अपनी दावेदारी मजबूत कर दी है। लेकिन जब लक्ष्य लोकसभा की 370 सीटें जीतने की हो तो बंगाल की 42 सीटें बड़ी हिस्सेदारी निभा सकती हैं। यही वजह है कि प. बंगाल में पीएम मोदी की विशेष नजर है। उन्होंने बारासात में न केवल अपने त्याग का जिक्र किया बल्कि वहां से करीब 100 किलोमीटर दूर संदेशखाली के पीड़ितों से भी मिले। संदेशखाली में टीएमसी नेता शाहजहां शेख और उसके सहयोगियों के खिलाफ महिलाओं ने ही मोर्चा खोला है। शाहजहां और सहयोगियों की कारगुजारियों ने ममता से महिला मतदाताओं को दूर करने की नींव रखी तो पीएम मोदी के पास अपना त्याग बताकर उस नींव पर दीवार खड़ी करने का मौका है।