शिवानंद तिवारी ने नीतीश कुमार पर क्या लगाया था आरोप? जानिए!

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चारा घोटाला तो आप सभी को याद ही होगा! भले ही बिहार में समझौते की सरकार बन गई है। जेडीयू और आरजेडी साथ आ गई है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आरजेडी के तरफ से किए गए हमलों को क्‍या नीतीश कुमार भूल गए हैं? पलटू चाचा हो या तेजस्‍वी यादव की ओर से नीतीश कुमार के बेटे को लेकर उठाए गए सवाल। भले नीतीश- तेजस्‍वी गले मिल रहे हों मगर गठबंधन के बाद भी ये सवाल तो उनका पीछा नहीं छोड़ने वाले। वहीं, दूसरी ओर शिवानंद तिवारी ने भी नीतीश कुमार पर चारा घोटाले का पैसा खाने का आरोप लगाया था। बिहार में सियासी समीकरण बदल गए हैं दुश्‍मन दोस्‍त हो गए हैं। पहले नीतीश कुमार लालू यादव से गले मिल रहे थे अब बेटे तेजस्‍वी ने कमान संंभाल ली है। मगर वो वाकया भी याद आता है जिस दौरान रांची में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद को पांच साल की कैद की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने उन पर 60 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया था। तब आरजेडी के उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार पर भी ये लगाया था कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी चारा घोटाले में शामिल हैं। और सरगना श्याम बिहारी सिन्हा से पैसे ले लिया था।

सुशील कुमार मोदी को दी थी चुनाैती

ये बात फरवरी महीने की है। प्रधानमंत्री मोदी ने नीतीश कुमार को सच्‍चा समाजवादी कहा था। इस पर हमला बोलते हुए तिवारी ने कहा था कि ‘नीतीश कुमार इन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से उन्हें समाजवादी नेता का प्रमाण पत्र दिए जाने के बाद मुखर हो गए हैं। उत्‍साहित हो गए हैं। शिवानंद तिवारी ने कहा कि बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने आरोप लगाया था कि नीतीश कुमार भी चारा घोटाले में शामिल थे और झारखंड (तब बिहार) के खजाने से अवैध निकासी के बाद पैसे लेते थे। तिवारी ने उस वक्‍त नीतीश कुमार को चुनौती देते हुए कहा था कि क्या नीतीश कुमार में सुशील कुमार मोदी की ओर से लगाए गए आरोपों को स्वीकार करने की हिम्मत है? मैं सुशील कुमार मोदी को भी चुनौती दे रहा हूं कि वह नीतीश कुमार पर फिर से लगाए गए आरोपों को दोहराएं।

तिवारी ने कहा यह भी कहा था कि, श्याम बिहारी सिन्हा चारा घोटाले के सरगना थे। क्या नीतीश कुमार इस बात से इनकार कर सकते हैं कि वह अपने पूरे जीवन में श्याम बिहारी सिन्हा से नहीं मिले हैं। मैं चुनौती दे रहा हूं कि श्याम बिहारी के साथ उनके करीबी संबंध थे और उन्होंने इस मामले में रिश्वत ली। तिवारी ने कहा कि उन्हें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि वह मामले की सीबीआई जांच की मांग करने वाले लालू प्रसाद के खिलाफ अदालत में याचिकाकर्ताओं में से एक थे। “चारा घोटाले का खुलासा सबसे पहले चाईबासा जिले (अब झारखंड में) के उपायुक्त-सह-जिला मजिस्ट्रेट ने 1996 की पहली तिमाही में किया था। इसे मुकदमा करने वालों ने नहीं उजागर किया। उन्‍होंने कहा था चाइबासा के ट्रेजरी से पैसे निकाले जा रहे हैं। ये पैसे अलॉटमेंट से ज्‍यादा निकासी हो रही है। जब वहां के पशुपालन विभाग की ओर से जिला कोषागार से कुछ अवैध निकासी की गई थी। मामला बिहार के वित्त सचिव बीएस दुबे तक पहुंचा। उस समय लालू प्रसाद सत्ता में थे। उन्होंने मामले की जांच के निर्देश दिए थे। उनके निर्देश के बाद, बीएस दुबे ने विभिन्न कोषागारों की जांच शुरू की और दुमका, डोरंडा से अवैध निकासी पाई और चाईबासा कोषागार से पैसों की अवैध निकासी पाई गई। उन्‍होंने कहा कि ये निकासी अनियमित तरीके से बड़े पैमाने से की जा रही थी।

जॉर्ज फर्नांडीसने शिवानंद तिवारी ने बीजेपी और जेडीयू के रिश्‍तों को खोलते हुए कहा था कि जॉर्ज फर्नांडीस ने नीतीश कुमार को याचिका पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा था। जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया। उनके इनकार के बाद, जॉर्ज फर्नांडीस ने मुझे याचिका पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा। मैं दिल्ली में था। उन्होंने मुझे एक हवाई टिकट भेजा, इस टिकट पर मैं पटना लौट आया और याचिका पर हस्ताक्षर किए। रविशंकर प्रसाद के घर पर मेरे अलावा, सरयू राय, सुशील कुमार मोदी ने याचिका पर हस्ताक्षर किए। मैं तब जदयू में था और पार्टी की ओर से हस्ताक्षर किए थे क्योंकि नीतीश कुमार ने इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था। शिवानंद तिवारी ने उस दौरान मीडिया से बातचीत करते हुए यह भी कहा था कि विपक्ष के नेताओं को इस अनियमितताओं का पता नहीं चला। यह चाईबासा के डिप्टी कलेक्टर की ओर से कराए गए जांच में पाया गया था। भाजपा और जद (यू) नेताओं ने लालू प्रसाद पर प्रभुत्व दिखाने के लिए इसे एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया था। तिवारी ने अपने पुराने इंटरव्‍यू में कहा था कि उस समय, जदयू के अध्यक्ष जॉर्ज फर्नांडीस थे। उन्होंने बताया कि अगर हमारी पार्टी चारा घोटाले में लालू प्रसाद के खिलाफ मामला दर्ज नहीं करेगी, तो बिहार के लोग उनकी पार्टी को लोग कैसे वोट देंगे? यह जॉर्ज फर्नांडीस की एक राजनीतिक रणनीति थी। उन्होंने इस मामले में आगे बढ़ने को कहा था। उन्‍होंने बताया था कि क्योंकि सुशील कुमार मोदी, रविशंकर प्रसाद और अन्य जैसे भाजपा नेता इसमें नेतृत्व करने की कोशिश कर रहे थे।