देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपना पहला भाषण लाल किले की प्राचीर पर दिया था! वो दिन कभी न भूलने वाला था। उसका हर सेकंड मानों ऐसा जो सदियों तक यादों के जेहन में कैद हो गया। वो रात ऐसी थी मानों जिंदगी की पहली रात हो जब मेरे मुल्क की आब ओ हवा भी कह रही थी वंद मातरम, भारत माता की जय, इंकलाब जिंदाबाद। बदन में कपड़े नहीं थे, पैरों में चप्पल नहीं थीं, पेट और पीठ का फासला भी मानों खत्म सा हो गया मगर चेहरे में चमक थी। आवाज में तेज था। हमारे वालिद साहब कभी-कभी अपने वालिद के जानिब से कुछ किस्से हमेशा हमसे साझा करते रहे हैं। वो किस्से सुनकर लगता था कि कैसा रहा होगा वो पल जब सालों की गुलामी के बाद वो पल आया जब हम अपने ही मुल्क में आजाद कहलाए। यादों का कारवां तीन दशक पहले लेकर जाता हूं तो मानों लगता है बचपन में इससे बड़ा महापर्व कभी होता ही नहीं था। तिरंगों और भारत माता के जयकारों से पूरा शहर जगमगता था। 1947 की 14-15 की रात कुछ ऐसा ही नजारा था। मिठाई न सही तो शक्कर ही सही। शर्बत न सही मगर पानी ही सही। यकीन मानिए उस पल हर कुछ अमृत लग रहा था।वो तस्वीर उस रात की जब भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का ऐतिहासिक भाषण हुआ था। पूरी दुनिया इस नजारे को देख रही थी। देखकर ये भी कह रही थी ये मुल्क बहुत ज्यादा वक्त तक आजाद नहीं रह पाएगा। इसी गफलत में फिरंगी भी थे। मगर उनको क्या पता था कि ये केवल एक मुल्क नहीं एक सभ्यता है। यहां पर अलग-अलग धर्म के लोग, अलग-अलग भाषाओं के लोग एक साथ रहते हैं। यहां पर हर महीने उत्सव होता है। यहां पर धरती, अंबर, पेड़ पौधे सभी को पूजा जाता है। उस रात पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जो भाषण दिया उससे मानों देशवासियों में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ।
भाषण को “ट्रिस्ट विद डेस्टिनी” के नाम से जाना जाता है। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का पहला भाषण जो उन्होंने 14-15 अगस्त की मध्यरात्रि में वायसराय लॉज मौजूदा राष्ट्रपति भवन से दिया था। उन्होंने अपने भाषण की शुरूआत कुछ यूं की थी। यह एक ऐसा क्षण है, जो इतिहास में यदा-कदा आता है, जब हम पुराने से नए में कदम रखते हैं, जब एक युग का अंत होता है, और जब एक राष्ट्र की लंबे समय से दमित आत्मा नई आवाज पाती है। यकीकन इस विशिष्ट क्षण में हम भारत और उसके लोगों और उससे भी बढ़कर मानवता के हित के लिए सेवा-अर्पण करने की शपथ लें।
इतिहास की शुरुआत से ही भारत ने अपनी अनंत खोज आरंभ की। अनगिनत सदियां उसके उद्यम, अपार सफलताओं और असफलताओं से भरी हैं। अपने सौभाग्य और दुर्भाग्य के दिनों में उसने इस खोज की दृष्टि को आंखों से ओझल नहीं होने दिया और न ही उन आदर्शों को ही भुलाया, जिनसे उसे शक्ति प्राप्त हुई। हम आज दुर्भाग्य की एक अवधि पूरी करते हैं। आज भारत ने अपने आप को फिर पहचाना है।
आज हम जिस उपलब्धि का जश्न मना रहे हैं, वह हमारी राह देख रही महान विजयों और उपलब्धियों की दिशा में महज एक कदम है। इस अवसर को ग्रहण करने और भविष्य की चुनौती स्वीकार करने के लिए क्या हमारे अंदर पर्याप्त साहस और अनिवार्य योग्यता है? स्वतंत्रता और शक्ति जिम्मेदारी भी लाते हैं। वह दायित्व संप्रभु भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाली इस सभा में निहित है। स्वतंत्रता के जन्म से पहले हमने प्रसव की सारी पीड़ाएं सहन की हैं और हमारे दिल उनकी दुखद स्मृतियों से भारी हैं। कुछ पीड़ाएं अभी भी मौजूद हैं। बावजूद इसके स्याह अतीत अब बीत चुका है और सुनहरा भविष्य हमारा आह्वान कर रहा है।
अब हमारा भविष्य आराम करने और दम लेने के लिए नहीं है, बल्कि उन प्रतिज्ञाओं को पूरा करने के निरंतर प्रयत्न से हैं जिनकी हमने बारंबार शपथ ली है और आज भी ऐसा ही कर रहे हैं ताकि हम उन कामों को पूरा कर सकें। भारत की सेवा का अर्थ करोड़ों पीड़ित जनों की सेवा है। इसका आशय गरीबी, अज्ञानता, बीमारियों और अवसर की असमानता के खात्मे से है। हमारी पीढ़ी के सबसे महानतम व्यक्ति की आकांक्षा हर व्यक्ति के आंख के हर आंसू को पोछने की रही है। ऐसा करना हमारी क्षमता से बाहर हो सकता है लेकिन जब तक आंसू और पीड़ा है, तब तक हमारा काम पूरा नहीं होगा।
पं नेहरू ने जब ये भाषण पढ़ा तो एक खामोशी छा गई। लोगों में एक ऊर्जा का संचालन हुआ। खुशी इतनी थी कि आंखों ने आंसू गिर रहे थे। नेहरू के इस भाषण ने जिम्मेदारी का एहसास भी दिलाया। भारत के सामने बड़ी चुनौती थी। बंटवारे के बाद देश के हालात नाजुक थे। दंगों की आग में देश जल रहा था। भुखमरी भी थी। मानों वो वक्त ऐसा था कि आपके सामने पहाड़ पार करना हो मगर आपको पास न तो रस्सी है, न जूते हैं, न ही कोई और साधन लेकिन आपको पहाड़ पार करना ही है। भारत के सामने एक तरफ खुशी थी आजादी की तो दूसरी तरफ चुनौती थी देश के हालात सुधारने की। भारत आज आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है। पूरा देश तिरंगे से पाट दिया गया है। जहां भी देखों सिर्फ केसरिया, सफेद और हरा रंग दिखाई दे रहा है। मगर यहां तक का सफर आसान नहीं रहा। इसके लिए हमारे शूरवीरों का बलिदान है। इसके लिए हमारी सरहदों में खड़े वो योद्धा हैं।