इंडो-पैसिफिक के लिए भारतीय नौसेना प्रमुख का नया बयान सामने आया है! हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए अमेरिका चीन के बीच जारी तनाव के बीच भारत के नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने सोमवार को कहा कि अमेरिका-चीन की प्रतिद्वंद्विता यहां रहने के लिए है। हालांकि दोनों देशों के लिए यह शॉर्ट स्पिन नहीं है, यह एक लंबी मैराथन होगी जिसमें वे लगे हुए हैं। विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन (वीआईएफ) में अपने संबोधन के दौरान एडमिरल आर हरि कुमार ने वैश्विक भू-रणनीतिक गणना में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में देशों के बढ़ते हस्तक्षेप पर चिंता जाहिर की। इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि इस क्षेत्र में वे देश भी हस्तक्षेप कर रहे हैं, भले ही उनका इससे कोई संबंध नहीं है। नौसेना प्रमुख ने कहा कि क्षेत्र में अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता ने हथियारों की दौड़ को जन्म दिया है।
नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने कहा कि इस दौड़ ने अनिवार्य रूप से पश्चिम और चीन के बीच प्रथम विश्व युद्ध के युग के समान नौसैनिक हथियारों की होड़ शुरू हो गई है। इसमें में कुछ वैसे ही हालात बन रहे हैं, जैसे प्रथम विश्व युद्ध के दौरान थे एक केंद्रीय शक्ति थी और उसके सहयोगी थे। नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने आगे उदाहरण देते हुए कहा कि चीन ने अपनी सेना में पिछले 10 वर्षों में 148 युद्धपोतों को शामिल किया है। उसकी यह प्रक्रिया अभी भी जारी है।
उन्होंने कहा कि हथियारों की इस दौड़ ने हमारे संसाधन संपन्न क्षेत्र को प्रभाव, बाजार, संसाधन और ऊर्जा समेत अन्य चीजों के लिए लड़ाई का अखाड़ा बना दिया है। नौसेना प्रमुख ने आगे कहा कि क्षेत्र में लड़ाई के बावजूद आर्थिक संबंधों का पेचीदा ताना-बाना इन्हीं राज्यों के बीच एक निश्चित स्तर के सहयोग को भी अनिवार्य करता है।
इस दौरान यूरोप के हालातों पर चर्चा करते हुए नौसेना प्रमुख ने कहा कि प्रतिस्पर्धा और सहयोग की प्रक्रिया साथ-साथ चलने से सुरक्षा की जटिलताओं को बढ़ती है। वहीं, यूरोप में चल रहे संघर्ष के बारे में बहुत कुछ कहा जा रहा है। तथ्य यह है कि रूस पर पश्चिम द्वारा व्यापक प्रतिबंधों के बावजूद अधिकांश यूरोप को रूसी ऊर्जा प्राप्त होती रहती है। इससे यह बात साफ होती है कि संघर्षों के दौरान भी यह संभावना नहीं है कि राज्य पूरी तरह से पारस्परिक निर्भरता से रहित हो सकते हैं।
इस दौरान नौसेना प्रमुख ने तीनों सेनाओं के आधुनिकीकरण पर भी चर्चा की। यूरोप में चल रहे संघर्ष के बारे में बहुत कुछ कहा जा रहा है। तथ्य यह है कि रूस पर पश्चिम द्वारा व्यापक प्रतिबंधों के बावजूद अधिकांश यूरोप को रूसी ऊर्जा प्राप्त होती रहती है। इससे यह बात साफ होती है कि संघर्षों के दौरान भी यह संभावना नहीं है कि राज्य पूरी तरह से पारस्परिक निर्भरता से रहित हो सकते हैं।एडमिरल कुमार ने कहा कि भारतीय सशस्त्र बल भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी ताकत बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं।यूरोप में चल रहे संघर्ष के बारे में बहुत कुछ कहा जा रहा है। तथ्य यह है कि रूस पर पश्चिम द्वारा व्यापक प्रतिबंधों के बावजूद अधिकांश यूरोप को रूसी ऊर्जा प्राप्त होती रहती है। इससे यह बात साफ होती है कि संघर्षों के दौरान भी यह संभावना नहीं है कि राज्य पूरी तरह से पारस्परिक निर्भरता से रहित हो सकते हैं। भारतीय सशस्त्र बलों ने खुद को भविष्य के लिए “पुनर्गठन और पुनर्संरचना” के पथ पर स्थापित किया है। उन्होंने सैन्य मामलों के विभाग की स्थापना, रक्षा कर्मचारियों के प्रमुख की नियुक्ति, अग्निपथ भर्ती योजना की शुरुआत और तीनों सेवाओं के बीच संयुक्तता सुनिश्चित करने की पहल को सही दिशा में कदम के रूप में उद्धृत किया।
नौसेनाध्यक्ष ने समुद्री क्षेत्र में भारत के बढ़ते प्रभाव पर भी चर्चा की।इसमें में कुछ वैसे ही हालात बन रहे हैं, जैसे प्रथम विश्व युद्ध के दौरान थे एक केंद्रीय शक्ति थी और उसके सहयोगी थे। नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने आगे उदाहरण देते हुए कहा कि चीन ने अपनी सेना में पिछले 10 वर्षों में 148 युद्धपोतों को शामिल किया है। उसकी यह प्रक्रिया अभी भी जारी है। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि हमारे देश का समुद्री प्रभाव और चरित्र अब हमारे समग्र दृष्टिकोण को आकार दे रहा है। साथ ही वैश्विक स्तर पर वब मान्यता प्राप्त कर रहा है जिसका वह हकदार है।