कुछ दिनों से लगातार रुपए में गिरावट आती जा रही है! डॉलर के मुकाबले रुपये का पतन लगातार जारी है और सरकारी अधिकारियों ने कहा है कि, केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) पूंजी प्रवाह को आकर्षित करने के लिए कदम उठा रहे हैं, ताकि डॉलर के मुकाबले रुपये का मूल्यह्रास सुचारू और क्रमिक हो। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी अधिकारियों ने कहा है कि, सिर्फ भारतीय रुपया ही नहीं, दुनिया के तमाम करेंसी डॉलर के मुकाबले कमजोर हुए हैं और अन्य मुद्राओं के मुकाबले डॉलर मजबूत हुआ है और सिर्फ रुपया ही एकमात्र करेंसी नहीं है, जो कमजोर हुआ है, लिहाजा, ऐसी बात नहीं है, कि भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ कोई समस्या है।भारतीय अधिकारियों ने बताया कि, वैश्विक घटनाक्रमों की वजह से दुनियाभर के निवेशक सतर्क हो गये हैं, जिसका असर अलग अलग देशों की करेंसी पर पड़ रही है और रुपये के कमजोर होने का कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ कोई समस्या नहीं है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, एक अधिकारी ने कहा कि, ‘भारतीय रुपये के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की मजबूती को एक अलग मामले के रूप में नहीं देखा जा सकता है।’ उन्होंने कहा कि, ‘यह विश्व स्तर पर अमेरिकी डॉलर की ताकत को दर्शाता है,और डॉलर सभी मुद्राओं के मुकाबले मजबूत हो रहा है, चाहे वो विकसित हो या उभरती हुई हों।’ उन्होंने कहा कि, डॉलर इंडेक्स में इस साल छह प्रमुख मुद्राओं, यूरो, पाउंड, येन, स्विस फ्रैंक, कैनेडियन डॉलर और स्वीडिश क्रोना के मुकाबले 13% की वृद्धि हुई है।
भारतीय अधिकारियों ने कहा कि, अमेरिकी मुद्रा डॉलर, रुपये के मुकाबले कम बढ़ी है, जो 2021 के अंत में 74.5 प्रति डॉलर से बढ़कर जून के अंत में 79.74 हो गई है, जो लगभग 7% मूल्यह्रास है। नतीजतन, यूरो, येन और पाउंड के मुकाबले रुपया मजबूत हुआ है। शुक्रवार को रुपया 79.88 प्रति डॉलर पर पहुंच गया था, जो पांचवीं सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली एशियाई मुद्रा के रूप में रैंकिंग में था। स्थानीय इकाई ने छह महीने में करीब 7.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की है। अधिकारियों ने कहा कि विदेशी निवेश का बहिर्वाह रुपये के मूल्यह्रास का एक प्रमुख कारण था। अधिकारियों ने कहा कि, वित्तवर्ष 2022 में 15 जुलाई तक विदेशी निवेशक भारत से 31.5 अरब डॉलर निकाल चुके हैं और यही वजह है, कि डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हुआ है।
पेट्रोलियम पदार्थों का बढ़ा आयात
भारतीय अधिकारी ने कहा कि, ‘फरवरी में यूक्रेन में संघर्ष छिड़ गया। जिससे तेल की कीमत बढ़ गई और अनिश्चितता भी बढ़ गई। इन दोनों कारणों से, निवेशक सतर्क हो गए’। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय अधिकारी ने कहा कि, ‘जब निवेशक सतर्क हो जाते हैं, तो वे भारत जैसे उभरते बाजारों से पैसा निकालना शुरू कर देते हैं।’ अमेरिकी फेडरल रिजर्व की मौद्रिक सख्ती ने भी विदेशी निवेशकों को उभरते बाजारों से हटने के लिए प्रेरित किया है। कच्चे तेल की कीमत में बढ़ोतरी ने इस साल भारत के आयात बिल को भी पिछले साल के मुकाबले बढ़ा दिया है। अधिकारियों ने यह भी बताया कि, अगल इतिहास से तुलना करें, तो डॉलर के मुकाबले रुपया 2008 में 2013 के मध्य में तेजी से गिर चुका है। जब, 2008 और 2013 में 28 प्रतिशत और 1997-98 में डॉलर के मुकाबले रुपया 22 प्रतिशत तक गिर गया था।
रुपया गिरने का क्या प्रभाव?
अधिकारियों ने कहा कि, आरबीआई विदेशी मुद्रा बाजार की बारीकी से निगरानी कर रहा है और जरूरत पड़ने पर अपने भंडार का उपयोग कर रहा है। हस्तक्षेपों के बावजूद यह सहज स्तर पर बना हुआ है। वहीं, आपको बता दें कि, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये का गिरना उद्योग जगत के लिए मिश्रित बैग बन रहा है, जिसका खामियाजा कुछ क्षेत्रों को भुगतना पड़ रहा है, जबकि कई उद्योग क्षेत्र, खासकर फ्टवेयर निर्यातक लगातार फायदा उठा रहे हैं। रुपया, जो डॉलर के मुकाबले मूल्यह्रास कर रहा है, वो एक डॉलर के मुकाबले 80 के मनोवैज्ञानिक बैंचमार्क के पास है और फेडरल रिजर्व द्वारा मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए ओवरटाइम काम करने की संभावना है, जो कि अमेरिका में एक ऐतिहासिक उच्च स्तर पर है। रुपये के मूल्यह्रास का सबसे अधिक प्रभाव आयातित वस्तुओं या आयातित घटकों का उपयोग करने वाले सामानों पर पड़ेगा, और इस श्रेणी में सबसे अधिक मांग की जाने वाली वस्तु मोबाइल फोन है। यानि, मोबाइल फोन की खरीदारी और भी ज्यादा महंगी होती जाएगी।रुपये गिरने के अलावा भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी लगातार कम हो रहा है और 8 जुलाई 2022 को खत्म हुए सप्ताह में भारतीय खजाने से 8.062 अरब डॉलर कम हो गया और अब भारत के पास 580.252 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा बचा है। इसका मुख्य कारण विदेशी मुद्रा एसेट्स का कम होना है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से जारी आंकड़ों के अनुसार 1 जुलाई 2022 को खत्म हुए हफ्ते के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार 5.008 अरब डॉलर घटकर 588.314 अरब डॉलर के स्तर पर आ गया था। हालांकि, इसके बाद भी भारत टॉप-5 देशों में बना हुआ है, जिसके पास सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा है। इस वक्त चीन के पास 3.24 ट्रिलियन डॉलर, जापान के पास 1.31 ट्रिलियन डॉलर, स्विटरलैंड के पास 1.03 ट्रिलियन डॉलर और भारत के पास 580,252 बिलियन डॉलरस, जबकि रूस के पास 572,700 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा है।
विदेशी मुद्रा भंडार घटने का असर सीधे तौर पर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है और जिस देश के पास मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार होता है, उस देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत माना जाता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि, अगर दुनिया में कोई दिक्कत आ जाए तो देश अपनी जरूरत का सामान कई महीने तक आसानी से मंगा सकता है। इसीलिए, दुनिया के बहुत से देश अपने विदेशी मुद्रा भंडार को काफी मजबूत बना कर रखते हैं। विदेशी मुद्रा भंडार में निर्यात के अलावा विदेशी निवेश से डॉलर या अन्य विदेशी मुद्रा आती है। इसके अलावा भारत के जो लोग विदेश में काम करते हैं, उनकी तरफ से भेजी गई विदेशी मुद्रा भी बड़ा स्रोत होती है। हालांकि अगर विदेशी मुद्रा भंडार घटता है तो यह अच्छा नहीं माना जाता है।
स्वर्ण भंडार भी हुआ कम
आरबीआई द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, आठ जुलाई को खत्म हुए हफ्ते में भारत के स्वर्ण मुद्रा भंडार के मूल्य में भी कमी आई है और यह 1.236 अरब डॉलर घटकर 39.186 अरब डॉलर पर आ गया है। वहीं, आईएमएफ के पास जमा विशेष आहरन अधिकार (एसडीआर) भी 12.6 करोड़ डॉलर कम होकर 18.012 अरब डॉलर हो हो गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय बैंक तेज गति को नियंत्रित करने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करता है। रुपये की गिरावट को रोकने के लिए पिछले कुछ महीनों में आरबीआई द्वारा विदेशी मुद्रा की भारी बिक्री के बावजूद, रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने के बाद से भारतीय मुद्रा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 4.6 प्रतिशत कमजोर हुई है। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास सहित आरबीआई के अधिकारियों ने बार-बार कहा है कि, आरबीआई रुपये में व्यवस्थित चाल सुनिश्चित करेगा। 6 जुलाई को, केंद्रीय बैंक ने कहा कि बाहरी झटके के खिलाफ बफर प्रदान करने के लिए उसके पास विदेशी मुद्रा भंडार का ‘पर्याप्त स्तर’ है।